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________________ २४, वर्ष २६, कि० २ अनेकान्त चित्र अच्छा पाता है, किन्तु जब एक ही रील पर एक आवश्यकता इन्द्रियों की अन्तम खता की है, जिसे चित्र खीच चुकने पर दूसरा चित्र खीचा जाएगा, तो कोई प्रात्म-संयम कहा जाता है। मन की शिथिलता संयम की भी चित्र ठीक नहीं बन पाएगा। इसी प्रकार यह हमारा घातक होती है। यही धारणा और स्थिरता पर आघात मस्तिष्क है। एक साथ बहुत सारे कार्य सामान्यतया करती है। ऋपियों ने इसके लिए एक व्यवस्थित पद्धति ग्रहण नहीं किए जा सकते। मस्तिष्क की तुलना इसी दी है। उसके अनुसार सबसे पहले अपने मस्तिष्क की विचार प्रकार टेपरिकार्डर से की जा सकती है। शून्य और चिन्ता-मक्त करने की आवश्यकता होती हैं । अवधान का तात्पर्य है, सावधानीपूर्वक धारण करना। किमी व्यक्ति के प्रति लगाव, शारीरिक तनाव, मानसिक यह अवस्था ग्रहण के बाद की है। धारणा मे यह दुगव, व्यवसाय या कार्यालय के काम को निपटीने का स्वभावतः ही अनुस्यूत रहता है कि ग्रहीत पदार्थ को उतावलापन आदि धारणा और स्थिरता को पूर्ण नहीं कल्पना के ताने-बाने के साथ सम्यक्तया अधिष्ठिन कर होने देते। इस स्थिति को गीताकार ने 'नं किंचिदपि स्थिरता की तिजोरी मे उसे सजा दिया जाए। पारणा चिन्तयेत्' कहा है। अस्वास्थ्य भी इसमें बाधक होता है। के बाद स्थिरता में यदि न्यूनता होती है, तो किसी भी उन्मुक्त और एक स्थान-स्थित नेत्र तथा मुंह में समय विपर्यय या उसकी समाप्ति भी हो सकती है। फिर ममुच्चारित होने वाली पार्ष-मुक्तियाँ मानसिक एकाग्रता वहाँ हाथी और नीबू में कोई अन्तर नही रह जाता। को विशेष हेतु बनती है। एक आदमी किसी अपरिचित देश मे गया। वहाँ उसने कि इस युग में संयम का प्रभाव विशेषतः खटकता है। विचार स्वातन्त्र्य के नाम पर इन्द्रियों को भी इतनी स्वतन्त्रता 'हाथी' और 'नीबू' ये दो चीजे पहली बार देखी। दोनों मिल गई है कि मन की एकाग्रता समूल ही भंग हो चुकी नामों को उसने अपनी सकेत-पुस्तिका (डायरी) में अकित म कर लिया। बहुत वर्षों के बाद उसके गाव मे हाथी पाया। है। स्मृति प्रखरता के इच्छुक व्यक्ति को सर्वप्रथम संयम गांव के लोग सैकडो की संख्या में एकत्र होकर उसे का साधक वनना होगा। प्राचार्य श्री तुलसी ने मन की विस्मयपूर्ण दृष्टि से देखने लगे। उस व्यक्ति ने कहा --- चंचलता के नियमन के लिए प्रणबत-आन्दोलन का एक यह प्राणी मेरे लिए नया नही है । मैंने पहले भी इसे देखा विशेष मग दिया है। प्राचार्य श्री तुलसी के समक्ष एक और इसका नाम भी मेरी सकेत-पुस्तिका मे अकित है। पार जा ओर जहाँ शैलेशी-अवस्था प्राप्त ऋषियों का आदर्श है, अज्ञात वस्तु को जानने की उत्कण्ठा सहज होती है। वहीं दूसरी ओर याज के मनुष्य का विक्षिप्त मानस भी लोगो ने पूछा--भाई ! इसका नाम हमे शीघ्र बतायो। है । इसके लिए मैं यह कह सकता हूँ कि महषि जनक के चट से वह संकेत-पुस्तिका लाया। उममे लिखा था-- एक हाथ पर जैसे चन्दन का विलेपन था और दूसरे हाथ 'नीबू; हाथी' । वह असमंजस मे पड़ गया । क्योकि उसकी पर जली हुई अग्नि, उसी तरह स्वयं समाधिस्थ रहते हैं, बुद्धि स्थिर नही थी। वह मोचने लगा---नीबू कौन-सा विक्षिप्त-चेता मनुष्य के रोग का निवारण करते जा रहे था और हाथी कौन-सा? लोगो से बोला-बन्यो । है। इमालिए उनका घोष है.-'संयमः खलू जीवनमा इस पशु का नाम या तो नीबू है या हाथी । सयम ही जीवन है और असंयम ही मृत्यु । संयम का ह प्रश्न यह है, मनुष्य धारणा और स्थिरता को कम माग जीवन की अनेक समस्यायों का समाधान ta बढाए? इन्द्रियाँ ज्ञान की साधन है और इन्द्रियाँ ही करता हुआ मनुष्य को स्मृति-प्रगाढ भी बनाता है। अपेक्षा र विस्मृति की साधन । अन्तर्मुखता और बहिर्मुखता इसमे यही है, कि संयम जीवन के प्रत्येक व्यवहार का अंग बनें । विशेष सहायक होती है। प्रत्येक व्यक्ति स्मृति प्रगाढ़ सभी महानुभाव यह चाहते ही होंगे कि उनकी स्मृति बनना चाहता है, किन्तु, इन्द्रियों को अन्तर्मुखता की ओर विशेष प्रखर हो। वकील, पत्रकार और विशेषतः योजनाओं से सम्बद्ध व्यक्तियों की यह चाहं और अधिक नहीं; अपितु बहिर्मुखता की ओर ही बढ़ाता है। हो सकती है। मेरा इस अंवसर पर वही विशेषतः कहना यहीं से स्मृति नाश का प्रारम्भ हो जाता है । धारणा हैं कि संयम के द्वारा मानसिक एकाग्रता प्राप्त करें और और स्थिरता की शक्ति बढ़ाने के लिए सबसे पहली उसके आधार पर अपनी स्मरण-शक्ति को बढ़ाएं। पाहाथा।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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