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.६८, वर्ष २६, कि०२
तो सुनने वाले अपना होश गंवा बैठते थे। अपनी इसी पर्युषण पर्व के दिनों में एक दिन उदयन ने उपवास किया वीणा की बदौलत वह अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत की पुत्री और वह रात में धर्मागार मे ही सोया। वहीं पर वह वंचक बासवदत्ता से प्रणय विवाह करने में सफल हुमा था। साधु और गुरु भी ठहरे हुए थे। रात्रि में जब राजा गहरी बाद में राजनैतिक कारणों से मगध की राजकुमारी पद्मा- नींद में सो रहा था, उस समय वह धूतं चुपचाप उठकर वती तथा अन्य दो राजकुमारियों का भी विवाह उसके साथ राजा के पास पहुँचा और एक चाकू (अथवा कटार) से हुमा था। किन्तु बासवदत्ता के प्रति उसका जो अनुराग राजा की हत्या करके कटार वही फेंक कर भाग गया। था, उसको लेकर अनंगहर्ष, कात्यायन, वररुचि, गुणाढ्य, गुरु की नीद खुली। उन्होंने देवा, राजा निर्जीव पड़ा है, श्रीहर्षदेव, क्षेमेन्द्रदेव आदि अनेकों कवियो ने काव्य चारों ओर रक्त बह रहा है और शिष्य लापता है। वे रचना की है। महाकवि भास ने उदय न-बासवदत्ता के सारी स्थिति समझ गये । उन्होने मोचा कि एक जैन साधु कथानक को लेकर तीन नाटकों की रचना की है। राजा का हत्यारा है, इस अपवाद को सुनने-देखने के लिए
उदयन ने कौशाम्बी को कला केन्द्र बना दिया था। मैं जीवित नही रहना चाहता। उन्होंने उसी कटार से उस समय के जन-जीवन में सौन्दर्य और सुरुचि की आत्मघात कर लिया। भावना का परिष्कार हुआ था । उसके समकालीन नरेशों उदयन की कोई सन्तान नहीं थी। तब बासवदत्ता में इतिहास प्रसिद्ध प्रसेनजित, चण्डप्रद्योत, श्रेणिक बिम्ब- ने अपना भतीजा गोद ले लिया। उसका राज्याभिषेक सार, अजातशत्रु, हस्तिपाल, जितशत्रु, दधिवाहन आदि किया गया। कुछ वर्ष बाद उसने अवन्ती पर भी अधिमुख्य थे जिन्होंने तत्कालीन भारत के इतिहास का निर्माण कार कर लिया। इसके कुछ वर्षों बाद मगध सम्राट नन्दिकिया।
वर्धन ने उससे वत्स राज्य छीन लिया। ____ इस नगरी में कई बार महात्मा बुद्ध भी पधारे थे
प्राचीन साहित्य से यह पता चलता है कि यह नगरी किन्तु जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म का प्रचार उस समय
उस समय अत्यन्त समृद्ध थी। यातायात की यहाँ सुबियहाँ कम ही हुआ था। भगवान महावीर के प्रभावक
धाएं थी। फलत. देश-देशान्तरो के साथ उसका व्यापाव्यक्तित्व की ओर ही यहाँ की जनता अधिक आकृष्ट
रिक सम्बन्ध था। यह श्रावस्ती से प्रतिष्ठान जाने वाले हई। उदयन भी महावीर का भक्त था। महात्मा बुद्ध
मार्ग पर एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र थी। मौर्य, शुग, उदयन के समय जब कौशाम्बी पधारे, तब उदयन
कुपाण और गुप्त काल में भी यह कला और वाणिज्य का उनके पास एक बार भी दर्शनार्थ नहीं पाया। सम्भवतः इससे क्षुब्ध होकर बौद्ध ग्रन्थकारों ने उदयन के चरित्र
केन्द्र रही। को कुछ निम्न ढंग का चित्रित करने का प्रयत्न किया है।
यह शताब्दियो तक मृण्मूर्तियों तथा मनको के निर्माण किन्तु जैन कथा साहित्य में उदयन का चरित्र-चित्रण
का प्रसिद्ध केन्द्र रही। किन्तु मुस्लिम काल मे इसकी भद्र शब्दों में किया गया है।
समृद्धि समाप्त हो गई; कला का विनाश कर दिया गया;
मूर्तियाँ, मन्दिर, स्तूप, शिलालेख तोड़ दिये गये। आज उदयन की मृत्यु स्वाभाविक ढंग से नहीं हुई। उदयन के कोई सन्तान नहीं थी। वह अपना अधिकांश समय
कौशाम्बी का स्वर्णिम अतीत खण्डहरो के रूप मे बिखरा जैन धर्म की क्रियाओं में --धर्माराधना में व्यतीत किया
पुरातत्वे-कौशाम्बी में प्रयाग विश्वविद्यालय की करता था । एक बार उसने एक कर्मचारी को किसी अप- .
ओर से खुदाई हुई थी। फलतः यहाँ से हजारों कलापूर्ण राध पर पृथक् कर दिया। उस कर्मचारी ने उदयन से इसका बदला लेने की प्रतिज्ञा की। वह अवन्ती पहुँचा।।
मृण्मूर्तियां, और मनके प्राप्त हुए, जो प्रयाग संग्रहालय में वहाँ केवल प्रतिशोध के लिए ही वह जैन मुनि बन गया।
सुरक्षित हैं। कुछ समय बाद वह अपने गुरु के साथ कौशाम्बी माया। १. भरतेश्वर-बाहुबली वृत्ति, पृ० ३२५ ।