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________________ ४, २६ कि.. अनेक १. साहित्यिक स्रोतों में जात रामगुप्त एक गुप्त मानना निम्न कारणो से असंगत है :शासक था तथा लिपि से ये सिक्के गुप्त कालीन १. यह क्षासक जैन मतावलम्बी था तथा इसने लु प्रतीत होते हैं। क्षमण के उपदेशों से प्रभावित होकर ये जिन प्रति२. समुद्रगुप्त ने पूर्वी मालवा विजित कर एरण को माएं स्थापित करवाई थी, जबकि गुप्त शासक प्रान्तीय शासन का केन्द्र बनाया था, सम्भवतः ब्राह्मण मतावलम्बी थे। रामगुप्त को समुद्रगुप्त ने यहाँ का शासक नियुक्त २. रामगुप्त का विरुद महाराजाधिराज है, जिससे किया होगा। कालान्तर में राजकुमार को पूवीं यह स्वतन्त्र शासक विदित होता है। विदिशा मालवा में गवर्नर बनाने की परमरा गुप्त एरण क्षेत्र ५१० ई. तक गप्त साम्राज्य का सम्राटों ने जारी रखी थी यथा-चन्द्रगुप्त अंग था तथा उसके पश्चात् हूण सम्राट तोरमाण विक्रमादित्य ने गोविन्द गुप्त को तथा कुमारगुप्त एवं मिहिर कुल का। प्रथम ने घटोत्कच गप्त को एरण का शासक ३. रामगप्त के सिक्के उज्जयिनी क्षेत्र में भी मिले नियुक्त किया था। हैं, जबकि इस क्षेत्र को सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त द्वितीय ३. रामगुप्त के सिक्कों पर गरुड़ गप्त सम्राटों का या कुमारगुप्त प्रथम ने जीता था, प्रतएव यह लांच्छन है तथा सिंह मिलने का सम्बन्ध ध्रुवदेवी रामगुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय का पूर्वगामी कैसे हो की वैशाली से प्राप्त मुद्रा के सिंह से जोड़ा जा सकता है ? सकता है। ४. मालवा में स्थानीय प्रकार के ताम्र सिक्के सर्व४. 'देवी चन्द्र गुप्त' नाटक में उल्लेखित शक शासक प्रथम चन्द्र गुप्त द्वितीय ने प्रचलित किये थे, से ध्र वदेवी के लिये हुए युद्ध की घटना विदिशा प्रतएव यह रामगुप्त बाद का है। ५. मूर्तियों के अभिलेखों से रामगुप्त के गुरु चेलुके निकट को होगी, क्योंकि इस क्षेत्र में शक क्षमण को चक्षनाचार्य क्षमाश्रमण का प्रशिष्य शासकों के सिक्के एवं प्रभिलेख मिले हैं। कहा गया है, जबकि जन प्राचार्यों में क्षमाश्रमण दिनेशचन्द्र सरकार', ए. के. नारायण' एवं निसार विरुद सर्वप्रथम बल्लभी संगिति के अध्यक्ष देवएहमद' का विचार है कि सिक्कों से ज्ञात रामगुप्त घिमणि का मिलता है, जिनका समय ४५३ ई. पांचवीं शताब्दी का मालवा का एक स्थानीय शासक था, ज्ञात है, अतएव चन्दक्षमाचार्य उनसे परवर्ती हैं । जिसका उत्थान गुप्त साम्राज्य के पतनावस्था में हमा होगा, क्योंकि सिक्कों के प्रकार, वजन, बनावट एवं प्रच महाराजाधिराज श्री रामगुप्त मालबा क्षेत्र के प्रथम लन से वे स्थानीय प्रतीत होते हैं। शात जैन शासक थे, जिनके राज्य क्षेत्र में सम्पूर्ण मालवा विदिशा से प्राप्त तीन तीथंकर प्रतिमामों के पाद-क्षत्र सिक्की से विदित होता है. यद्याप पूवा मालवा में पीठ पर उल्लेखित जन शासक महाराजाधिराज श्री इनके सिक्के बड़ी तादाद मे मिले हैं। इस जैन शासक रामगुप्त को सिक्कों से ज्ञात रामगप्त से प्रभिन्न मानना का समय निर्धारित कर स्वतन्त्र शासक के रूप में प्रतिउचित है। क्योंकि सिक्के एवं मूर्तियां मालवा क्षेत्र में ही ष्टित करना काठन है पूर्वी मालवा में गुप्त सम्राटों का मिली है तथा इनके लेखों की लिपि भी गुप्त ब्राह्मी है। शासन प्रभिलेख एवं सिक्कों से बुद्ध गु त तक ज्ञात होता यद्यपि इस रामगुप्त को समुद्रगुप्त के पुत्र से भिन्न है जिनकी तिथि गत संवत १६५ (४८४ ई०) है।' १.जनल माफ इंडियन हिस्ट्री त्रिवेन्द्रम ४०,०५३३ । एरण से प्राप्त भानुगुस्त गोपराज के प्रभिलेख से ११० २. जर्नल माफ दि म्यूमिसमेटिक सोसायटी माफ इंडिया, ३. एपिग्राफिया इडिका-२१, पृष्ठ १२७ एवं फ्लीत भाग १२, पृष्ठ ४१ कत गुप्त मभिरोख, पृष्ठ ८८ । ३. बही, भाग २५, पृ.१.५। ४. पनीट कृत गुप्त अभिलेख, पृष्ठ ६२ ।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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