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________________ छठी शताब्दी का प्रज्ञात जैन शासक : महाराजाधिराज श्री रामगुप्त मनोहरलाल बलाल मालवा प्रदेश में जैन वास्तु एवं मूर्ति शिल्प के उदा- पादपीठ पर उत्कीर्ण लेखों से FORT हरण पांचवीं शताब्दी के पूर्व के नहीं मिलते, परन्तु इसके चार्य क्षमा-श्रमण के प्रशिक्षण पश्चात इनकी एक विकास श्रृंखला ज्ञात होती है। जन चेलू क्षमग के उपदेश से महाराज तोता कि उज्जयिनी एव विदिशा प्रतिमाए स्थापित करवाई थीं। इन लेखों की लिपि गुप्त तथा पश्चिमी भारत में जैन धर्म के ब्राह्मी है, भतएव इनका निर्माण काल छठी शताब्दी के प्रचार एवं प्रसार का मौर्य सम्राट अशोक के पौत्र बाद का नहीं हो सकता। इस जैन सम्राट रामगात का सम्प्रति ने योजनाबद्ध प्रयत्न किया था। कालकाचार्य काल एवं राज्य क्षेत्र निर्धारित करना विवादास्पद है। कथानक से उज्जयिनी में जैन धर्म के लोकप्रिय होने का विदिशा, एयण, उज्जयिनी प्रादि क्षेत्रों में रामगुप्त अवश्य होता है, परन्तु पुरातात्विक प्रमाण नहा के ताम्र-सिक्के भी मिले हैं, जिन पर गुप्त ब्राह्मी में मिलते । गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम के राज्य काल के __ 'रामगुप्त' लेख है, जिसे इन मूर्तियों के महाराजाधिराज गुप्त संवत् १०६ (४२५ ई.) के उदयगिरि गुहा लेख से की। श्री रामगुप्त से अभिन्न मानकर गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त विदित होता है कि शंकर नामक व्यक्ति ने सप फणा युक्त विक्रमादित्य का अग्रज मानने का सुझाव दिया जाता श्रेष्ठ पार्श्वनाथ की प्रतिमा गुफा द्वार पर निर्मित करवाई है', जिसे 'देवीचन्द्र गुप्त' नाटक में उस्लेखित ध्र वदेवी थी, जिसके सर्प फण चिह्र मात्र शेष बचे हैं। बेस नगर के प्रथम पति एवं समुद्रगुप्त के पुत्र रामगुप्त से सम्बसे एक विशाल तीर्थकर प्रतिमा और मिली थी, जो न्धित किया जाता हैं। ग्वालियर संग्रहालय मे सुरक्षित है, परन्तु जैन धर्म को मूर्तियों के प्रकाश में पाने के पूर्व मालवा क्षेत्र में माश्रय देने वाले किसी शासक का बोध नहीं होता। प्राप्त सिंह तथा गरुड़ प्रकार के ताम्र सिक्कों से ज्ञात विदिशा संग्रहालय मे महाराजाधिराज रामगुप्त के रामगुप्त का काल एवं राज्य क्षेत्र निर्धारित करने में द्वारा स्थापित तीर्थकर प्रतिमाए पद्मासन मुद्रा में हैं, जिनमें विद्वानों में मतभेद था। परमेश्वरीलाल गुप्ता, मनम्त एक चन्द्रप्रभ एवं दूसरी पुष्पदन्त भगवान की है, यद्यपि सदाशिव मल्लेकर' एवं कृष्णदत्त बाजपेयी इस रामगुप्त तृतीय प्रतिमा पहिचानना सम्भव नहीं है। इन तीनों को साहित्यिक स्रोतों से ज्ञात गुप्त शासक रामगुप्त से प्रतिमानों की पादपीठ पर तिथिविहीन लेख है, जिनका अभिन्न मानते हैं तथा अपने मत के समर्थन में निम्नमाशय समान है : लिखित तर्क देते हैं :___"भगवतोहतः चन्द्रप्रभस्य प्रतिमेयं कारिता महाराजा. बिराज श्री रामगुप्तेन उपदेशात् पाणिपात्रिक चन्द्रक्षमा ३. साप्ताहिक हिन्दुस्थान दिनांक ३० मार्च १९६६ चार्य क्षमा-श्रमण प्रशिष्य माचार्य सर्पसेन-क्षमण शिष्यस्य ई०, पृष्ठ १०। गोलक्यान्त्यसात्पुत्रस्प चेल क्षमणस्येति ।" ४. जर्नल प्राफ दि न्यूमिसमेटिक सोसायटी माफ इंडिया, १. फ्लीट कृत गुप्त अभिलेख पृष्ठ २५८ । भाग १२, पृष्ठ ३। . २. जर्नल मॉक भोरियन्टल इंस्टिट्यूट, १८, भाग ३, ५. वहीं पृष्ठ १०६। . पृष्ठ २४७-५१ । ६. वही, भाग १८, पृष्ठ ३४०.४४
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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