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वीरसेवा मन्दिर का अभिनव
प्रकाशन
विषय-सूची क्र०
विषय १. स्तुतिकर्म २. श्री महावीर स्वामी और हमहीरालाल जैन 'कौशल'
। चिर प्रतीक्षित जैन लक्षणावली (जैन पारि३. महाराजाधिराज श्री रामगुप्त --
भाषिक शब्दकोश) का प्रथम भाग छप चुका है। मनोहरलाल दलाल
इसमें लगभग ४०० जैन ग्रन्थों से वर्णानुक्रम के ४. वर्धमानपुर : एक समस्या--मनोहरलाल दलाल ७|
अनुसार लक्षणों का संकलन किया गया है । लक्षणों ५. मुनि श्री विद्यानन्द : भुजंगी विश्व के बीच
के संकलन में ग्रन्थकारो के कालक्रम को मुख्यता __ चन्दन के विरछ---डा० नेमीचन्द जैन ८
दी गई है। एक शब्द के अन्तर्गत जितने ग्रन्थों के ६. चारित्र-चत्र वर्ती प्राचार्य श्री शान्तिसागर महा
लक्षण संग्रहं त उनमें से प्रायः एक प्राचीनतम राज का सौवा जन्म दिन समारोहपूर्वक मनाइये ११
ग्रन्थ के अनुसार प्रत्येक शब्द के अन्त में हिन्दी अनु७ चंदेरी-सिरोंज (परवार) पट्ट -
वाद भी दे दिया गया है। जहा विवक्षित लक्षण में पं० फूलचन्द शास्त्री, वाराणसी
कुछ भेद या होनाधिकता दिखी है वहां उन ग्रन्थों के ८. श्रीमती शान्ता भानावत को पी-च. डी की उपाधि
निर्देश के साथ २-४ ग्रन्थों के प्राश्रय से भी अनुवाद ६. भगवान महावीर का समाज-दर्शन -
किया गया है। इस भाग में केवल 'अ से औ' तक डा० कुलभूषण लोखडे
लक्षणों का सवलन किया जा सका है। कुछ थोडे १०. परमात्मप्रकाश टीका के कर्ता व जीवराज
ही समय में इसका दूसरा भाग भी प्रगट हो रहा नही, श्वे० धर्मसी उपाध्याय -
है, वह लगभग तैयार हो चुका है। प्रस्तुत ग्रन्थ अगरचन्द नारा
मशोधकों के लिये तो विशेष उपयोगी है ही, साथ ११. श्रमण जैन प्रचारक मघ
ही हिन्दी अनुवादके रहनेसे वह सर्वसाधारणके लिये १२. दादू थी संत गोबिददास रचित जैन धर्म मबधी अन्य चौबीस गुणस्थान चर्चा-अगरचन्द नाहटा २२
भी उपयोगी है। प्रस्तुत प्रथम भाग बड़े आकार में १३. द्राविड भाषायें और जैन धर्म --५० के० भुज
४०५ पृष्ठों का है । कागज पुष्ट व जिल्द कपड़े को बली शास्त्री
मजबूत है। मूल्य २५-० ० है। यह प्रत्येक १४. जैन दर्शन में कर्म सिद्धान्त
युनिव सटी, सार्वजनिक पुस्तकालय एव मन्दि गे में डा० कौशल्या वल्ली
सग्रहणीय है। ऐसे ग्रन्थ बार बार नहीं छप सकते। १५. राजषि देवकुमार की कहानी - सुबोधकुमार जैन
समाप्त हो जाने पर फिर मिलना अशक्य हो १६ वीर निर्वाणोत्सव - तेजपाल सिंह
जाता है।
प्राप्तिस्थान १७. घरौड़ा से प्राप्त चौमुखी जैन प्रतिमा---
वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंः कुमारी शीला नागर
दिल्ली-६ १८. आदिपुराणगत ध्यान प्रकरण पर ध्यानशतक का प्रभाव -प० बालचन्द्र सिद्धान्त-शास्त्री
सम्पादक-मण्डल १६. बुद्धिमान् पुरुषार्थी
डा० प्रा० ने० उपाध्ये २०. द्रोणगिरि-क्षेत्र--६० बलभद्र जी न्यायतीर्थ
डा. प्रेमसागर जन २१. सुजनता का लक्षण
श्री यशपाल जैन २२. बहोरीवन्द प्रतिमा लेग्य -- डा. कस्तूरचन्द 'सुमन'
मथुरादास जन एम. ए., साहित्याचार्य २३. साहित्य-समीक्षा-बालचन्द्र सिद्धान्त-शास्त्री ४८ अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपया
अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पाद एक किरण का मूल्य १ रुपया २५ पैसा मण्डल उत्तरदायी नहीं है।
--व्यवस्था
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