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________________ साहित्य-समीक्षा १. पं० टोडरमल व्यक्तित्व और कृतित्व-ले० डा. प्रस्तुत ग्रन्थ में टोडरमल जी की कृतियों के सम्बन्ध हकमचन्द शास्त्री, प्रकाशक मंत्री टोडरमल स्मारक ट्रस्ट से अच्छा प्रकाश डाला है और उन ग्रन्थों की भाषा शैली ए-४, बापूनगर, जयपुर । पृष्ठ संख्या ३६८ मूल्य "। पर भी प्रकाश डालने का यत्ल किया है। उन्होंने इस प्रस्तुत ग्रन्थ का विषय उसके नाम से ही स्पष्ट है। ग्रन्थ का को सर्वाङ्ग सुन्दर बनाने का प्रयास किया है। यह एक थीसिस ग्रन्थ है, जिस पर लेखक को इन्दौर इसके लिए लेखक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं। राममल्ल विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की डिगरी प्राप्त हुई है। जी का उक्त चर्चा भी भवन से प्रकाशित होना चाहिए। इस ग्रन्थ से टोडरमल जी के सम्बन्ध में अनेक तथ्य साथ ही टोडरमल की गोम्मटसार टीका का अच्छा संशोप्रकाश में आये हैं। उनसे इस ग्रन्थ की महत्ता बढ़ गई धित सम्पादित संस्करण प्रकाशित करने की मावश्यकता है। सबसे पहले पं० टोडरमल जी का परिचय इन पंक्तियों हैं। क्योंकि वह अप्राप्य है, प्राशा ही नहीं विश्वास है कि में लेखक ने सन् १९४४ में अनेकान्त में प्रकाशित किया गोदिका जी इस ओर अपना ध्यान देगे। ग्रंथ मंगाकर था। जब जयपुर में एक महीना ठहर कर स्व०प० चैन- पढ़ना चाहिए । प्रकाशन सुन्दर है। सुखदास जी और महावीर तीर्थक्षेत्र के मंत्री रामचन्द्र जी २. पं० दौलतराम व्यक्तित्व और कृतित्व-सम्पादक खिन्दुका के सौजन्य से भामेर का शास्त्र भडार जयपुर डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल शास्त्री जयपुर, प्रकाशक लाया था। और उनसे १० ग्रन्थो की प्रशस्तिया तथा सोहनलाल सोगाणी, मंत्री प्रबन्धकारिणी कमेटी जी महाअनेक ऐतिहासिक नोट्स लिये थे। पं० चैनसुखदास जी वीर जी, महावीर भवन जयपुर, पृष्ठ संख्या ३१० मूल्य और जयपुर के अन्य विद्वानों का यह विचार का कि प० दश रुपया। टोडरमल जी २७-२८ वर्ष की अवस्था में ही शहीद हुए इस ग्रन्थ का विषय भी उसके नाम से प्रकट है। इसमें है। पर मेरा सुदृढ़ विचार था कि उनकी प्रायु लगभग प० दौलतराम जी कासलीवालका सांगोपांग परिचय दिया ५० वर्ष की होनी चाहिए; क्योकि उनकी सं० १८११ गया है। साथ में उनकी पद्यबद्ध मौलिक कृतियों का की रहस्यपूर्ण चिट्ठी में जो मुलतान के अध्यात्म रसिक प्रकाशन भी किया है, और शेष अन्य टीका जिनग्रन्थो का लोगों के प्रश्नों के उत्तर में अध्यात्म चर्चा के गूढ़ रहस्य भी परिचय दिया गया है। इससे यह ग्रन्थ दौलतराम जी को अनेक दष्टान्तों तथा वस्तु वत्व के विचारों द्वारा के व्यक्तित्व और कृतित्व का परिचायक है। • व्यक्त किया था। उस कोटि के प्राध्यात्मिक विचार अल्प- डा० कासलीवाल ने कवि की १८ रचनामों का परिवय में होना सम्भव नहीं है, वे प्रौढावस्था के विचार है। चय दिया है। इससे पंडित जी की राज्यकार्य का संचालन लेखक ने रामकरण जी के चर्चा ग्रंथ के पृ० १७३ के करते हए साहित्य निर्माण की अभिरुचि और लगन का माधार पर उनकी प्रायु संतालीस वर्ष पूर्ण करने का आभास मिलता है। जब वे जयपुर से प्रागरा गये, तब उल्लेख किया है। इससे हमारी उक्त कल्पना की पुष्टि उन्हे जैनधर्म परिज्ञान नहीं था। किन्तु प्रागरा की अध्याही नही हई, किन्तु भ्रान्त धारणा का निराकरण भी हो म शैली के विद्वान ऋषभदास जी के उपदेश से उनकी गया है। लेखक ने इस शोध प्रबन्ध द्वारा टोडरमलस्मारक जैनधर्म की ओर प्रतीति हुई। और उन्होंने रामचन्द्र भवन की महत्ता को प्रकट कर दिया है। और इससे ममक्ष के पुण्यास्रव कथाकोश की रचना सं० १७७७ में भवन निर्माता गोदिका जी की भावना को सफलता सम्पन्न की। उसके बाद उनकी जैनधर्म की श्रद्धा में मिली है। दृढ़ता और जैन सिद्धान्त के ग्रन्थों का मनन एवं परि
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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