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२३८, वर्ष २६, कि०६
अनेकान्त
हुए, ये भद्रपरिणामी पहिले तीर्थंकर थे।
ऐतिहासिक सामग्री से सिद्ध हसा कि आज से ५ -श्री तुकाराम कृष्ण जी शर्मा लठ्ठ हजार वर्ष पहिले भी जैनधर्म की सत्ता थी। ___B.A. P. Hd. M. R.A S. Etc.
--डा. प्राणनाथ इतिहासज्ञ ईया द्वेषके कारण धर्म प्रचारक वाली विपत्ति के रहते
महाभारी प्रभाव वारे परम सुहृत् भगवान ऋषभदेव हुए भी जैनशास्त्र कभी पराजित न होकर सर्वत्र विजयी जी महाशील वारे सब कर्म से विरक्त महामुनि को भक्तिहोता रहा है। अहंत परमेश्वर का वर्णन वेदों में पाया ज्ञान वैराग्य लक्षणयुक्त परमहंस के धर्म की शिक्षा करते जाता है।
भये।
-भागवत स्कन्ध ५ ० ५ --स्वामी विरुपाक्षवडियर एम. ए.
शुकदेव जी कहते है कि भगवान ने अनेक अवतार जैनधर्म सर्वथा स्वतन्त्र है, मेरा विश्वास है कि वह
धारण किये, परन्तु जैसा संसार के मनुष्य कर्म करते है किसी का अनुकरण नहीं है।
वसा किया। किन्तु ऋषभदेव जी ने जगत को मोक्षमार्ग -डा. हर्मन जेकोबी, एम. ए. पी-एच. डी.
दिखाया, और खुद मोक्ष गये। इसीलिए मैंने ऋषभदेव जैनियों के २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ ऐतिहासिक महा
को नमस्कार किया है। -भागवत् भाषाटीका पृ. ३७२ पुरुष माने गये हैं।
--डा० फुहार
स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्ट नेमिः स्वस्ति! वृहस्पतिर्दधातु ॥ अच्छी तरह प्रमाणित हो चुका है कि जैनधर्म बौद्ध
-यजु० अ० २५ मत्र १६ धर्म की शाखा नहीं है।
ऋषभं मा समानानां सयज्ञलानां विषा सहिम् । -अंबुजाक्ष सरकार एम. ए. बी. एल.
हन्तारं शत्रूणां कृषि, विराज गोपितं गवाम् ।। जैन बौद्ध एक नहीं है हमेशा से भिन्न चले आये है।
-ऋषभदेव अ०८ मंत्र ८ मूत्र २४ राजा शिवप्रसाद जी "सितारे हिन्द"
जैनधर्म विज्ञान के आधार पर है, विज्ञान का उत्तरीयह भी निर्विवाद सिद्ध हो चुका है कि बौद्धधर्म के
तर विकास विज्ञान को जैन दर्शन के समीप लाता जा सस्थापक गौतम बुद्ध के पहिले जैनियो के २३ तीर्थकर
रहा है।
-डा. एल. टसी टौरी, इटली और हो चुके है।
महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं थे, किन्तु उन्होंने -इम्पीरियल गजेटियर आफ इण्डिया पृ. ५४
उसका पुनरुद्धार किया है। वे संस्थापक की बजाय सुधायह बात निश्चित है कि जैनमत बौद्धमत से पुराना है।
रक थे।
-इवर्टवारन, इंगलैन्ड -मिस्टर टी. डब्ल्यू रईस डेविड
मैं आशा करता हूं कि वर्तमान संसार भगवान महास्याद्वाद जैनधर्म का अभेद्य किला है, उसके अन्दर वादी प्रतिवादियों के मायामय गोले प्रवेश नहीं कर सकते।
वीर के आदर्शों पर चल कर आपस में बंधुत्व और समामुझे तो इस बात में किसी तरह का उज्र नहीं कि जन
नता का भाव स्थापित करेगा। डा. सतकौड़ी मुकर्जी धर्म वेदान्त आदि दर्शनो से पूर्व का है।
साहित्य का शृंगार तो वह नैसर्गिक भाषा है, जिस -पं० राममिश्र जी प्राचार्य रामानुज सम्प्रदाय
भाषा मे भ० महावीर ने आशीर्वाद दिया था।
-~-डा. कालिदास नाग नेमिनाथ श्री कृष्ण के भाई थे।
-श्रीयुत् वरवं
भ. महावीर द्वारा प्रचारित सत्य और अहिंसा के एकाकी निस्पृहः शातः, पाणिपात्रो दिगम्बरः ।
पालन से ही संसार संघर्ष और हिसा से अपनी सुरक्षा कदा शभो ! भविष्यामि, कर्म निर्मूलनक्षमम् ॥
कर सकता है। --भर्तृहरि
-डा. श्यामाप्रसाद मुकर्जी, अध्यक्ष हिन्दु महासभा नाहं रामो न मे वाछा, भावेषु न च मे मनः ।
जैन संस्कृति मनुष्य संस्कृति है, जैन दर्शन मनुष्य शान्तिमासितुमिच्छामि, स्वात्मन्येव जिनो यथा ॥ दर्शन ही है। जिन 'देवता' नहीं थे, किन्तु मनुष्य थे। -योगवशिष्ठ, गीता
-प्रो० हरिसत्य भट्टाचार्य