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________________ खजुराहो की अद्वितीय जैन प्रतिमायें शिवकुमार नामदेव मध्यप्रदेश का प्रसिद्ध कलातीर्थ खजुराहो चन्देल आयुधों से युक्त, विभिन्न वाहनों पर प्रारूढ़ जैन शासन नरेशों की धार्मिक सहिष्णुता का परिचायक है। यह देवी-देवताओं की मूर्तियाँ है। सभी प्रतिमायें प्रतिशास्त्रीय नगर पन्ना से २५ मील उत्तर एवं छतरपुर से २७ मील दृष्टिकोण से निर्मित की गई है। पूर्व तथा महोबा से २४ मील दक्षिण में स्थित है। खजु- जैन देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के अतिरिक्त हिन्दू राहो मे चन्देलों की कृतियों की कलाराशि उपलब्ध है। धर्म की रामचरित से सम्बन्धित मूर्तियो में त्रिभंगी मुद्रा यहाँ लगभग ३० मन्दिर है जो शिव, विष्णु तथा जैन मे राम एवं सीता का चित्रण है। पार्श्व में राम, कृष्ण, तीर्थङ्करो की उपासना मे निर्मित हुए है। इन देवालयों हनुमान जी को भी अंकित किया गया है। इसके अतिको हम ९५० से १०५० ई. के मध्य रख सकते है। रिक्त सीता जी को अशोक वाटिका मे दिखाया गया है। खजुराहो देवालयो का पूर्वी समूह जैन देवालयों का भित्ति का दूसरा पट्ट भी अलंकृत है। ऊपर के पट्ट समूह कहलाता है। इन देवालयों में पार्श्वनाथ मन्दिर, मे विद्याधर युगल पुष्पमाला लिए हुए तथा वाद्य बजाते प्रादिनाथ मन्दिर, घण्टाई मन्दिर प्रादि अपनी मनोहारी हुए गंधर्व एव किन्नरों का अंकन है। जंघा मे ऊपर और भव्यतम कलाराशियों से युक्त है। दिक्पाल, धनुषधारी एवं चारभुजी देवियों का सुन्दर इस समूह के विशालतम एवं रमणीक जैन मन्दिर अकन है। पार्श्वनाथ का है। इस देवालय के भीतर और तीन बाह्य भित्ति तथा प्रदक्षिणा पथ के प्रतिमा पट्टों पर आगार है। इस देवालय की वाह्य भित्ति पर चतुर्दिक अङ्कित ये सौन्दर्यमयी प्रतिमायें उस युग के कलाकारों के एक के ऊपर एक तीन पट्टों में विभिन्न मूर्तियो का अंकन सधे हुए हाथों की यशोगाथा, छेनियों के संयम तथा है। प्रथम पंक्ति मे तीर्थङ्कर प्रतिमानों के अतिरिक्त उनके सूझ-बुझ एवं परिष्कृत एकाग्र मन की अमिट कुबेर, द्वारपाल, गजारूढ़ एव अश्वारूढ जैन शासन देव- तस्वीर है। तामों का अंकन है। प्रियतम के पत्र को पढने मे अति- इस मन्दिर की कलाकारिता से प्रभावित होकर लीन स्त्री प्रतिमा, पर से कांटे को निकालती हुई, नेत्र में प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ डा० अर्ग्युसन महोदय ने कहा है कि अंजन प्रांजती हुई, शिशु को स्तनपान का सेवन कराती सम्पूर्ण मन्दिर की रचना इतनी दक्षता के साथ हुई है हुई माता एवं पाद मे नृत्य हेतु नुपुरो को बांधती हुई कि सम्भवतः हिन्दू देवालय की स्थापत्य के दृष्टिकोण से बालाओं की मूर्तियां भी दर्शनीय है। इन पट्टों पर अनेक इनकी तुलना में नहीं है। लिखने को तो है बहुत किन्तु, देवालय के मण्डप के ऊपर बाह्म और देव-देवियों थोड़े में सार बताता है ।। तथा अप्सरानों की प्रतिमाओं की पंक्ति तीनों भोर बनी वह वर्णन अपनी ही मति के, हुई है । जिसमें एक स्नान से निवृत्त बाला को अपने भीगे अनुरूप किया अब जाता है। हुए केश से जल बिन्दुओं को अलग करते हुए दिखाया मन के भावों को भाषा का, गया है । हंस उस बाला की केशराशि से टपकते हुए जल यह रूप दिया अब जाता है। बिन्दु को मोती समझकर झपटते हुए प्रदर्शित किया है। (क्रमशः) कलाकारों की सूझ-बूझ एवं सूक्ष्म छनियों से निर्मित इन
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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