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________________ १६४, वर्ष २६, कि० ४-५ बातें कर जाना यह तो है, सती अंजना मेरी बाल ॥ (१०२) अपना परिचय देकर बोले, तमामा प्रतिसूरज हूँ । बेटी, घर को चलो, चले अब, चलने को मैं उद्यत हूँ ।। (१०३) 'अच्छा चलिए' कह सब बैठे, जल्दी चलने लगा विमान । रास्ते के भीतर हाथों से, छिटक पड़ा बालक बलवान ॥ ( १०४ ) हा हा कर सब नीचे आये, देखा तो खुश था बालक । चोट न उसको कुछ आई थी, फुट गया गिरि पत्थर तक ॥ (१०५) बच्चे को कर प्यार साथ ले, प्रतिसूरज निज घर आया । सती अजना ने निज शिशु का, यहाँ प्राय आनद पाया ॥ ( १०६) आनंद मना रही थी कुछ कुछ, पर यह क्या श्राया सवाद । जिसको सुन हो गई अजना, मूर्च्छित मन में पाय विषाद ॥ ( १०७) "विजयश्री को पाकर श्राये, वीर पवनजय निज घर पर । नही अजना को जब पाई, चले गये वन, घर तजकर ॥" (१०८) अपनी भगिनी की तनया को, प्रतिसूरज ने किया सचेत । अनेकान्त कहा प्रजना मत घवरा तू, जाता हूँ मै खोजन हेत ॥ (१०) होंगे जहाँ वहाँ से उनको, ले आऊँगा तेरे पास । चिन्ता न कर जरा भी मन में, प्रभु पर पूरा रख विश्वास ॥ ( ११० ) यों कहकर प्रतिसूरज नृप ने, प्रादितपुर को किया प्रयाण । केतुमती प्रह्लाद भूप को, समाचार जा दिये महान् ॥ ( १११) सती अंजना मेरे घर है, हुआ पुत्र उसके शुचिगात । पर वह पति के दर्शन को है, कुलाती रहती दिन रात ॥ ( ११२) दीनवदन राजा रानी ने, कहा. आपका है उपकार । भ्रम में पड हमने ही उसका, किया बड़ा ही है अपकार ॥ ( ११३ ) जीती है, पुत्र हुआ है, अच्छे है सब, अच्छा है । मिल जावे व पवन हमारा, तब यह जीवन अच्छा है || ( ११४) बार बार ऐसा कह कह कर, पछताते थे नृप प्रह्लाद । केतुमती प्रसू बरसाती, रोती थी कर बातें याद ।। ( ११५ ) हाय शुद्धशीला को हमने, घर के बाहर दिया निकाल । वह
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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