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एक ऐतिहासिक खण्ड काव्य
अंजना-पवनञ्जय
भंवरलाल सेठी
(१
अतिशय उज्ज्वल, अतिशय सुन्दर,
परम रम्य है गिरि कैलाश । एक समय उस पर बैठे थे,
नृप महेन्द्र सद्गुण आवास ।।
बोले मंत्री एक एक कर,
अपनी अपनी मति अनुसार। इन्द्रजीत, विद्युत्प्रभ, आदिक, गिना गये बहु राजकुमार ॥
(८) पर प्रधानमंत्री ने सव में,
चुन चुन दूषण लगा दिये। कहा किसी को, है वह मानी,
वह क्रोधी, वह द्वेष लिये।
इनके आसपास मन्त्री सब,
बैठे थे चातुर्य-निधान। नीतिनिपुण, हितचिन्तक, कोविद,
सूक्ष्म-दप्टि, अच्छे मतिमान् ।।
महिप 'महेन्द्र' महेन्द्र पुरी के
मंत्री-मडल में भाये। मानों ताराओं के बिच है,
पूर्णचन्द्र छवि छिटकाये ।।
विद्युत्प्रभ के लिए कहा "वह,
है यद्यपि रमणीय महान् । रूपवान्, तो भी वह त्यागीहोगा जल्दी छोड़ जहान ।।
(१०) इसी लिए हे भूप शिरोमणि,
विनय ध्यान देसुन लीजे। बाई का सम्बन्ध सोचकर,
सर्वोत्तम वर से कीजे ।।
सोच रहे थे नृपवर मन में,
दुहिता हुई सयानी है। किसी योग्यतम राज-तनय को,
इसे शीघ्र परणानी है ।।
इतने में दोनों कर जोड़े,
बोले मंत्री, "श्री महाराज ! सोच रहे हैं क्या प्रमु मन में ?
जो चाहे फरमावें काज" ||
भूपरत्न आदित्यनगर के,
है 'प्रह्लाद' जगद्विख्यात । उनके तनय मनोज्ञ 'पवनजय',
रूपराशि है, है दृढ़ गात ।
कहा नृपति ने "तुम सब मिलकर,
वर बतलायो गुण की खान । राजकुमार अंजना-लायक,
जिसको दं मैं कन्यादान" ||
बुद्धिमान हैं श्रुतसागर,
नीति निपुण हैं, हैं बलवान् । सकल कलाओं में सकुशल हैं, तेजस्वी हैं, हैं गुणवान् ।
(१३) इनके से इस समय नहीं हैं,