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कारीतलाई की अद्वितीय भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमाएँ
__शिवकुमार नामदेव
कारीतलाई, मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले मे कटनी भगवान का शासनदेव गोमुख एवं वाम पार्श्व पर उनकी से लगभग २६ मील उ० पू० मे, कैमुर पर्वत की पूर्वी शासनदेवी चक्रेश्वरी ललितासन मे बैठी हुई है। मालाओ में स्थित है। प्राचीन समय में यह स्थान कर्णपुर इसी स्थल से प्राप्त अन्य प्रतिमाये यद्यपि उपरि वणित के नाम से विख्यात था । कारीतलाई की जिन अग्रलिखित प्रतिमा की ही भाँति है किन्तु इस प्रतिमा का मस्तक प्रतिमाओं का यहाँ उल्लेख किया गया है वे मध्यप्रदेश के वडित नहीं है। प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा में है। केश घुधयशस्वी एव वैभवशाली वश कलचुग्किाल की है। गले दिखाये गये है। अष्टप्रतिहार्य यक्त इस प्रतिमा के प्रतिमाशास्त्रीय दृष्टिकोण से इन मूर्तियो का काल १०वी एक पार्श्व पर शासन देव गोमुख एव दूसरे छोर पर ११वी सदी ज्ञात होता है। इससे यह ज्ञात होता है कि शासनदेवी चक्रेश्वरी अपने वाहन गरुड़ पर आसान है। १०वी ११वीं शती के समय यहाँ जैन धर्म अपनी चरमो
सफेद बलुआ पत्थर से निर्मित २'३" एक प्रतिमा त्कर्ष सीमा पर था।
ध्यानस्थ पद्मासनारूढ दिखाई गई है। कधो से लटकने __ कारीतलाई से प्राप्त भगवान तीर्थकर ऋषभनाथ की
हए केशगुच्छ कलाकारो के मधे नपे तुले हाथ के परिये प्रतिमायें सफेद बलुआ पत्थर से निर्मित की गई है।
चायक है। भगवान ऋषभनाथ की इस प्रतिमा के दक्षिण ये सभी प्रतिमायें सम्प्रति मध्यप्रदेश के रायपुर संग्रहालय व वाम पार्श्व मे अन्य तीर्थकरी सी लघु प्रतिमाये अकिन मे संग्रहीत है।
है। दक्षिण पार्श्व मे उत्कीर्ण लघ तीर्थकरी की मूर्तियां प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभनाथ की इस स्थल से पद्यासन मे एवं वाम पाम पार्श्व की प्रतिमाये कायोत्सर्ग प्राप्त एक प्रतिमा ४३ फीट ऊंची है। भगवान आदिनाथ अथवा खडगासन में है। चौकी की झूल पर भगवान का एक उच्च चौंको पर पद्मासन मे ध्यानस्थ बैठे हुए है। लाछन वृषभ अकित है। लाछन के नीचे धर्मचक्र एव उनकी दक्षिण भुजा एवं वाम घुटना खंडित हो गया है। इसके दोनों पार्श्व पर एक-एक सिंहाकृति है। सिहासन के हृदय पर श्री वत्स एवं मस्तक के पृष्ठ भाग मे प्रभामण्डल दाहिने कोने पर गोमुख एवं चक्रेश्वरी उत्कीर्ण है । है। प्रभामण्डल के ऊपर निक्षत्र सौन्दर्यपूर्ण ढंग से बना कारीतलाई की एक अन्य प्रतिमा जो रायपुर संग्रहुया है। जिसके दोनों पार्श्व पर एक-एक महावतयुक्त हालय की निधि है ३'" ऊँची है। इस प्रतिमा में हस्ति उत्कीर्ण है। छत्र के ऊपर दुदभिक एवं हस्तियो के भगवान ऋषभनाथ को पद्मासन मे ध्यानस्थ दिखाया नीचे युगल विद्याधर है जो नभ मार्ग से पुष्प वृष्टि कर गया है। कला की दष्टि से कारीतलाई में प्राप्त जैनधर्म रहे हैं । विद्याधरों के नीचे दोनों पार्श्व पर भगवान के की प्रतिमाओं में यह प्रतिमा कलात्मक सौन्दर्य मे सर्वश्रेष्ठ परिचारक सौधर्मेन्द्र एव ईशानेन्द्र अपने हाथों मे चवर है। कलाकारो की तीक्ष्ण छेनियो के आघातो से निर्मित लिए हुए खड़े है।
भगवान की अद्वितीय इस प्रतिमा की विशेषता यह है कि प्रतिमा की अलंकृत चौकी की पड़ी भूल पर भगवान इसके सिंहासन पर सिहो के जोड़े के साथ हस्तियो का ऋषभनाथ का लांछन वृषभ चित्रित है। वृषभ के नीचे भी एक जोडा दिखलाया गया है। चौकी के ठीक मध्य मे धर्मचक्र अंकित है जिसके दोनों कलचुरि कालीन १०-११वी सदी मे निर्मित उपर्युक्त ओर एक-एक सिह है। सिहासन के दाहिने पार्श्व पर प्रतिमाओ की कारीतलाई से प्राप्ति इस ओर इंगित करती