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१४८, वर्ष २६, कि० ४-५
अनेकान्त
हैं। अत: गृहस्थो के लिए भी धर्मोपदेश श्रवणादि सामग्री सुलभ होकर धार्मिक प्रवृत्तिया साधन करने का विशेष अवसर उपलब्ध होता है। चातुर्माम का प्रारम्भ आषाढ शुक्ला १४-१५ होकर मिनी कार्तिक शुक्ला १५ को समाप्त होता है। भगवान ऋपभदेव के पौत्र द्रविड, बारिखिल्ल मनि तथा बहुसंख्यक मनिगण इस पुण्य दिवस मे तीर्थाधिराज सिद्धाचल पर मिद्ध गति को प्राप्त हुए है । अत इम दिन पालिताना में एक बड़ा भारी मेला होता है, जिसमे सहस्रो नर-नारी गिरिराज शत्रुजय की यात्रा करने के हेतु एकत्र होते है। वहाँ अत्यन्त उत्साह एवं समारोह पूर्वक रथयात्रादि महोत्सव मनाये जाते है। भारत के अन्य सभी स्थलों पर भी जैन संघ शत्रुञ्जय तीर्थाटन दर्शन-वदन-पर्व-व्याख्यान श्रवण, उपवास, रथयात्रा महोत्सादि द्वारा सोत्साह पर्वाराधन किया जाता है। महोत्सव कीप्राचीनता और इतिहास
श्री श्वेताम्बर जैन पञ्चायती मन्दिर के पुराने बहीग्वाते अनुसन्धान करने पर सवत् १८८३ से ३ ऑकडा बहियां मिली। जिनमे कात्तिक महोत्सव जी की सवारी का खरचा बाद जाकर बची हुई आमदनी का विवरण इस प्रकार मालूम होता है :
सवत् १८८३ मे संवत् ३८८४ मे
१७७ %3D) संवत् १८८५ में
२८५।। -। संवत् १८८६ में
४७६।।) सवत् १८८७ में
२०८1) सबत् १८८८ मे
५१) संवथ् १८८६ में
३८१॥)। संवत् १८६० मे
५१२ %3D)|| संवत् १८९१ मे
११४८11-)| संवत् १८६२ मे
१२५२॥ % ) संवत् १८६३ मे
१३६१)। संवत् १८९४ में
१७८५।।) संवत् १८६५ मे
२३५०।) संवत् १८९६ से १८०७ तक
१२ वर्षों में १७९६० % ) संवत् १९०८ में
१७६७ = )
संवत् १६०६ में
१४६१॥) सवत् १९१० मे
२७६१.।। = )m सवत् १९११ मे
१५१॥) सबत् १९१२ मे
२०४३।) सवत् १९१३ मे
३१३५ % ) सवत् १६१४ में
१६६१ -) संवत् १६१५ मे
२८४६ = ) संवत् १९१६ में
४७७५।। ) सवत् १९१७ मे
५१७६।।। 3 )। मंवत् १९१८ मे
३१८७)॥ मवत् २६१६ मे
२४४८1) सवत् १६२० मे
२६०८ = )। सवत् १९२१ मे
२६६२) सबन् १६२२ मे
२३७२ = )। मवत् १६२३ मे
१६१२।।।%3D) मवत् १६२४ मे
१७६६।।) मवत् १६२५ मे
१३८२१)॥ सवत् १९२६ मे
२०४७।।%3D )। मवत् १६२७ मे
३७२६।।।)। सवत् १९२८ में
२६८६ = )। उपर्युक्त विवरण मे ४६ वर्ष का हिसाब कलकत्ता में श्वे० जनो की सख्यावृद्धि के अनुपात से आमदनी का विकास क्रम उपस्थित करता है। साथ ही साथ यह प्रश्न तो उपस्थित ही रहता है कि इस महोत्सव का प्रारम्भ किस संवत् मे हुआ ? गत १३८ वर्षों से इस रथयात्रा महोत्सव-सवारी के अविच्छिन्नरूप से निकलने के प्रमाण तो है ही पर इससे यह अनुमान होता है कि इससे १०,१२ वर्ष पूर्व अर्थात् मन्दिर-प्रतिष्ठा के साथ-साथ ही महोत्सव का प्रारम्भ हो गया था क्योकि दादा साहब के बगीचे मे गुरुदेवके चरणो की प्रतिष्ठा स. १८६७ मिती प्राषाढ़ शुक्ला को तथा श्री शान्तिनाथ जिनालय (बढ़ा पचामती मन्दिर-नुलापट्टी) की प्रतिष्ठा सं० १८७१ माध शुक्ला ६ को हुई थी, अत पूर्व छेहरासर रूप मे आदिनाथ १. इसमे चैत (1) महोत्सव के खाते श्री रतनविजय
धार्या तारा जीवणदास घांधिया री.......... का ६००) शामिल जमा किया हुआ है।