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________________ प्रमेय रत्नालंकार एक परिचय --प्रकाशचन्द्र जैन - - - यह छोटी सी पुस्तक जैन दर्शन पर नव्य न्याय की उपलब्ध हैं । पहली टीका तो प्रभाचन्द्र की न्यायकुमुद है। शैली से श्रवण बेल गोला जैन मठ के श्री चारुकोति प्रभाचन्द्र का समय ६ वी शताब्दी का प्रथम चतुर्थाश माना पडिताचार्य स्वामी द्वारा मारिणक्य नन्दी के परीक्षा मुख के जाता है। दूसरी टीका अनन्तवीर्य या लघु अनन्तबीयं के सूत्रो को वस्तृत व्याख्या करने के लिये लिखी गई है। यह द्वारा लिखी गई है। इनका समय ग्यारहवी शताब्दी का कहा जाता है कि मारिणक्य नन्दी ने अपनी तर्कशास्त्र लिखने प्रारम्भ माना जाता है । प्रमाचन्द्र द्वारा रचित टीका प्रमेय की प्रेरणा प्रकलङ्क देव से ग्रहण की थी। प्रकलङ्क देव कमल मार्तण्ड के नाम से विख्यात है तथा प्रनन्तवीर्य की पाठवी शताब्दी के मध्य हुए थे। तस्वार्थ सूत्र के रचयिता टीका प्रमेय रत्नमाला और परीक्षामुख पत्रिका के नाम से उमा स्वामी के पश्चात् जैन दर्शन के सबसे महाम् विद्वान् प्रसिद्ध है। प्रकलङ्क देव ही माने जाते है। प्रकलङ्क देव के सपय तक प्रस्तुत प्रमेय रत्नालङ्कार पुस्तक, परीक्षामुख के सूत्रों जैन दर्शन रचना-प्रणाली में पर्याप्त परिवर्तन आ चुका को टोका, प्रमेय कमल मार्तण्ड को अपना मुख्य माधार था भोर उस समय को रचनायें बड़ी मात्रा में हिन्दू और मानते हुए लिखी गई हैं। जैसा कि प्रारम्भिक परिचयात्मक बौद्ध पद्धतियों से प्रभावित हुई है। तत्त्वार्थ सूत्र से ये रच- इलोको मे मे छठे श्लोक के द्वारा प्रगट होता है। लेखक नाये बहुत ही भिन्न थी। तत्कालीन जैन दर्शन ग्रन्थों में बार-बार उमा स्वामी, मकलङ्क देव. प्रभा चन्द्र और मनन्त प्राप्त प्रत्यक्ष और परोक्ष की परिभाषाएं उमा स्वामी की वीर्य का निर्देश करके अपने विचारों का समर्थन करता है परिभाषामों से एकदम भिन्न हैं तथा हिन्दू तर्क शास्त्रियों तथा सांख्य, न्याय, वैशेषिक भट्ट, प्रभाकर मुरारि मिश्रीय की परिभाषाओं के प्रति सन्निकट है । प्रत्यक्ष ज्ञान की रामानुजीय अध्व पोर अवस भादि भजनो द्वारा प्रतिपापरिभाषा इस समय के ग्रन्थकारो ने यह दी है कि "वह दित सिद्धान्तों का खण्डन करता है। ज्ञान प्रत्यक्ष है जो इन्द्रियो के विषय से सम्बन्ध रखता है प्रमेय रस्नालङ्कार के रचयिता श्री चकीत पंडितातया अप्रत्यक्ष ज्ञान वह है जो इन्द्रियातीत विषयो को चायं मद्रास राज्य के वन्दीवाश तालुका के सतमङ्गमा के ग्रहण करता है।" ठीक इसी प्रकार ज्ञान का वर्गीकरण समीपवर्ती एलादु ग्राम के मूल निवासी थे। वे एक जैन भी उसी प्रकार किया गया है जैसा कि हिन्दू तर्कशास्त्रों में ब्राह्मण थे तथा जिनम्या के नाम से विच त थे। इन्होने किया गया है। उमा स्वामी द्वारा किये गये शान के वर्गी- अपने ग्राम में रहते हुए ही विशेष पण्डितों से व्याकरण करण से उसका तालमेल नही बैठता है। और साहित्य की शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद वे उस माणिक्य नन्दी के परीक्षामुख सूत्र की दो टोकाये शिक्षा प्राप्त करने के लिये जैन शिक्षा विद्यापीठ, मैसूर
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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