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वर्षमानपुर : एक समस्या
प्राप्त मुनियों वे पादपीठ पर उत्तीर्ण तीन अभिलेखों का स्थापित करवाने वाले व्यक्ति को बवाण का निवासी विशिष्ट महत्व है :
मान लेना उचित नहीं होगा क्यं कि इ.भिलेख संख्या-२ १. सबत् १२६ वैशाख बढी ६ स प्रथ हे वर्ष मे उल्लेखित 'श्री वर्ध पूरान्वय का भी फिर यही अर्थ नापुरे श्री शान्तिनाथ चंन्ये सा. श्री सलन मानना होगा, बी स्थिति में बढ़व ण के मन्वय को सा० गोशल भा०ब्रह्म दि भा० बड़देवादि कुण्ड-बमानपराम्बय और बदनावर के अन्वय का वधनावसुहितेन निजगोत्र देव्या श्री प्रच्छुप्ता: रवि पूरान्वय मानकर दोनों नगरों के भिन्न-भिन्न अन्त्य की कीति कारिता:।
कल्पना करनी होगी। यह लेख प्रवराही देवी के पादपीठ पर है। यह इन लेखों में अभिलेख क्रमांक-१ विक्रम संवत् १२२६ मूर्ति ४१" ऊँचे एदं २६" चौड़े प्रतिमा फलक पर वनी का है जबकि क्रमांक-३ विक्रम संवत् १२१६ का है, है। इसमें नगर का नाम स्पष्ट रूप से वर्षनापुरे लिखा जिनमें केवल १३ वर्ष का अन्तर है, यद्यपि अभिलेख है यद्यपि डा० हीरालाल जैन ने त्रुटि वश इसे वर्धमान. क्रमाक करीब १२ वर्ष बाद का हे विक्रम संवत् १३०८ पुर पढ़ लिया है, जिसकी अोर किसी ने ध्यान ही नहीं का। बढ़वाण से कोई अभिलेख नहीं मिले है, जिनसे उस दिया। यह मूर्ति दिगम्बर जैन संग्रहालय, उज्जैन मे नगर का प्राचीन नाम वर्द्धमानपुर' माना जा सके । रखी है।
मालवा में धार जिले के अन्तर्गत तहसील नगर बद२. संवत् १३०८ वर्षे माघ सुदी ६......श्री वर्षना. नाबर को जैन हरिवंश पुराण एवं कथाकोष में उल्लेखित पुरान्वय पडित रतनुभार्या साधुसुत साइगभार्या वर्द्धमानपूर का गौरब देना उचित प्रतीत होता है जिसका कोड़े पुत्र सा० असिभार्या होन्तू नित्य प्रणमति । प्राचीन नाम पाठवीं शताब्दी में विद्धमानपुर' था, इस प्रभिलेख मे वर्धनापुरान्वय का उल्लेख है, परन्तु कालान्तर में इस नगर को 'वर्धनापुर' कहा जाने परन्तु इससे भी प्रभिलेख संख्या १ के अनुसार ही बद. लगा था। यद्यपि वर्द्धमानपूर नाम भी लोकप्रिय बना नावर का नाम 'वर्धनापुर' ज्ञात होता है, यद्यपि केवल रहा. जिसकी पूष्टि विक्रम सबत् १२२६ एव १२१६ में एकमात्र निम्नलिखित अभिलेख मे 'वर्धमानपुरान्वय' का स्थापित मूर्ति लेखों से होती है। उल्लेख है :
हरिवंश पुराण में उल्लेखित भौगोलिक स्थिति, प्राप्त ३. संवत् १२१६ चैत्र सुदी ५ बुघे रामच द्र प्रणमति मूति लेख, पुरातात्विक अवशेष प्रादि विशाल जैन केन्द्र
वर्षमानपुरान्वय सा० सुमोदित सुत वाला सीपा के रूप मे वदनाबर का प्राचीन गौरव प्रकट करते हैं, भार्या राया सुत विल्लाभार्या वायणि प्रणमति । जिसका मूल्याँकन डा. हीरालाल जैन ने किया था, उपयुक्त उल्लेख को वर्धमानपुर के अन्वय का परन्तु अभिलेखो के मालोचनात्मक अध्ययव के प्रभाव में उल्लेख मात्र मानकर इस अभिलेख युक्त प्रवेश द्वार को विद्वत् समाज ने इसे स्वीकार नही किया था।
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