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________________ साहित्य-समीक्षा १. जैन धर्म में अहिंसा-लेखा डा० वशिष्ट नारा हालन मे स्वय किसी पशु का वध करके उमका मांस यण मिन्हा सोहनलाल जैनधर्म प्रचारक समिति अमृत भक्षण करे ताकि पशु की हत्या करते समय उसके मन मे भर । पृष्ठ सः ३१२ प्राप्ति स्थान पाश्वनाथ विद्या- दया भाव जग सके । गुरु ग्रंथ साहब में कहा गया हैश्रम शोध सस्थान, हिन्दू यूनिवमिटी, वाराणमी । मूल्य जो रत लोग कपडे जाया होए पलीत । बीस रुपया। जो रत पीवे मासा तिन क्यों निर्मलचीत । प्रस्तुत पुस्तक एक शोध प्रबन्ध है, जो बनारस हिन्दू प्रति जो रक्त या खुन लग जाने से वस्त्र गन्दा हो यनिवसिटी से पी. एच. डी. के लिये स्वीकृत हो चुका है। जाता है. तब रक्त से सना मास खाने से चित्त निर्मल कसे पुस्तक पाच प्रध्यायो में विभक्त है। १ जेनेनर परम्पायो हो सकता है? यह कथन अहिंसा का पोषक है। मे अहिमा, २ अहिमा सम्बन्धी जैन साहित्य, ३ जैन दृष्टि इस अधिकार में लेखक ने निष्पक्ष भाव से सभी धमों मे दिमा, ४ जैनाचार और हिमा, ५ गाधीवादी हिसा का विश्पण किया है। जैन दृष्टि से हिसा के विवेचन और जैन धर्म प्रतिपादित अहिमा । मे लेखक ने अनुकम्पा दान के सम्बन्ध म तेरा पथी श्वेतालेखक ने प्रथम अध्याय में जनेतर परम्पगो में हिमा म्बरो के मत का निर्देश किया है। कि वे अनुकम्पा दान का विवेचन किया है। इसमें महाभारत ग्रथ की महत्ता में एकान पाप मानते है । किन्तु जवाहरलाल जी महाराज ज्ञान होनी है । लेखक ने लिखा है कि शाति पर्व में एक ने उसका खडन किया है और बतलाया है कि अनुकम्पा जगह का है कि क्षत्रिय को: गृहस्थ हिमा का त्याग कर दान एकान्त पाप का मावन नहीं है किन्तु पुण्य का साधन है। ही नही मकता। मुखशान्ति प्राप्त करने के अर्थ यह महावीर के उत्तर कालीन अहिंसा का विवेचन करते ग्रावश्यक है कि दूसरे को कष्ट दिया ही जाय, किन्तु इसी हातखक ने कहा है कि महावीर के बाद अहिमा में बहुत पर्व म अन्यत्र अहिमा के सिद्धान्त की पुष्टि की है । लेखक अपवाद पा गए । निशीथ भाष्य या चणि मे कहा है कि ने यह भी लिखा है कि शान्ति पर्व उस हालत में मास कोई मात्र प्राचार्य का वध या साध्वी के साथ बलाभक्षण की अनुमति देता है जब प्राण सकट में हो । किन्तु कार करना चाहे तो उसकी हत्या करके प्राचार्य की रक्षा किमी भी हालत में धर्म के नाम पर यज्ञ मे पशु बलि करना चाहिये । का विधान शान्ति पर्व मे नही है। गाधीवादी अहिंसा का विश्लेषण करते हुए लेखक ने लेखक ने यह भी लिखा है कि यद्यपि सभी वैदिक गाधी जी के वचनों को उद्धत करते हुए दया और अहिंसा दर्शनी ने वैदिकी हिंसा हिसा न भवति, इस सिद्धान्त को के सम्बन्ध में लिखा है कि गाँधी जी ने दया और अहिंसा अपनाया है। परन्तु माख्य ने इसकी कड़ी मालोचना की है उतना ही अन्तर बतलाया है जितना सोने और उससे है। वैष्णव परमरा के रामानुजाचार्य बल्लभाचा प्राद बने गहनो मे या बीज पोर वृक्ष में है। दया के बिना ने भी वैदिक यज्ञो को शुद्ध माना है क्योकि टन मे मारा अहिंसा नहीं हो सकती। या पशु स्वर्ग जाता है लेखक ने सभी धर्मों की अहिंसा पर मध्यस्थ दृष्टि सिक्खो में भी महाप्रसाद में माम चलता है । लेखक कोण से विचार किया है। विषय की दृष्टि से पुस्तक का मतव्य है कि माँस लोलुप सिक्खो ने गुरु साहव का पठनीय है अभिनन्दनीय है पाठको को मगाकर अवश्य प्राशय ठीक नही समझा। गुरु माहब का अभिप्राय था पढना चाहिये। कि यदि कोई मास खाये बिना नहीं रह सकता तो ऐसी -परमानादशास्त्र
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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