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________________ सम्पादकीय नोट 'गोमापूर्व जाति पर विचार' नाम के लेख में श्री नगरों और कार्यादि पर से किया गया है। उनमें अनेकों 'यशवन्तकुमार जी मलैया ने कुछ बातें ऐसी लिखी है का उल्लेख मिलता है, वे जाति अब नही मिलतीं। पर जिनसे दूसरों को मतभेद हो सकता है। फिर प्रमाण न । किसी समय वे महत्व की रही हैं, सहल बाल जाति के देने से वह प्रामाणिक नहीं बन सका । प्रतः उस पर यहाँ अनेक मूर्ति लेख मिलते है। पर मुझे उनके अस्तित्व का कुछ विचार किया जाता है। पता ज्ञात नहीं है। धर्कट जाति बड़ी धर्मात्मा रही है, अग्रोहा से अग्रवालों का निकास हुआ है। अग्रसेन पर आज कोई धर्कट जाति का व्यक्ति दिखाई नही देता, अग्रोहा के राजा थे, उनके १८ पुत्रों के नाम से १८ गोत्र इसी तरह अन्य अनेक रप जातिया है, जिनका अस्तित्व होते बतलाये जाते है। वे लोहाचार्य के उपदेश से जैनधर्म मानने हुए भी उनका इतिवृत्त नहीं मिलता। लगे थे। ये काष्ठा संघ के अनुयायी थे । उन्होने राजा का उप जातियाँ कैसे बनी? यह विचारणीय है। नाम बाद में कल्पित नहीं किया। किन्तु अग्रोहा उनका अधिकतर उप जातियों का निकास भट्टारकों, साधुओं या निकास स्थान था। उसे कल्पित नही कहा जा सकता। महापुरुषो के निमित्त से उपदेशादि द्वारा धर्म परिवर्तन गोलापूर्वो की उत्पत्ति के सम्बन्ध मे विचार वारते हुए, तथा बिना किसी परिवर्तनादि के द्वारा ग्रामों, नगरो व जो यह कल्पना की है कि इक्ष्वाकु वशी होने से गोलापूर्व, कार्यों आदि पर से हुआ है। जैसा कि कविवर बनारसीमोलालारे और गोल सिंघारे तीनों एक है। गोलालारे दास के अवं कथानक से स्पष्ट है :पौर गोलसिंधारे दोनों गोला पूर्वो की शाखा है याही भरत सुखेत मैं मध्यवेश शुभ ठॉब । उचित नहीं कहा जा सकता, यदि इक्ष्वाकुवंश को बस नगर रोहतगपुर निकट विहोली गांउ ।। उपजातियों ने अपनी प्रतिष्ठा एवं गौरव के लिए अपना गांउ विहोली में बस, राजवंश रजपूत । लिया हो, तो इक्ष्वाकुवंशी मात्र कहने से उनका एकत्व ते गुरुमुख जैनी भए, त्यागि करम अपभूत ।। सिद्ध नहीं होता और न वे गोलापूों से कभी मिले वा पहिरी माला मंत्र को पायो कुल श्रीमाल । अलग ही हुए हैं। वे तीनों उपजातिया स्वतन्त्र है। कोई थाप्यो गोत्र विहोलिया, बीहोली रखपाल ॥ किसी का अंश नही है, ऐसा उपलब्ध सामग्री के प्राधार -अर्घ कथानक पृ० २ से कहा जा सकता है। बिना किसी पुष्ट प्रमाण के यह रोहतक के निकट विहोली नामक एक गांव था, कल्पना निराधार जान पड़ती है। किसी उपजाति का उसमे राजवशी राजपूत रहते थे। वे गुरु के उपदेश से संख्या कम होना भी इस बात का द्योतक नहीं हो सकता प्रघभूत कर्म छोड़कर जैनी हो गये और नमोकार मन्त्र कि अमुक बड़ी जाति का भेद है, या उससे वह की माला पहिन कर उन्होने श्रीमाल कुल और वोहोलिया पृथक हुई है। दूसरे गोलालारे, गोलसिंघारो की संख्या गोत्र प्राप्त किया। का कोई निर्धारण नहीं किया गया जिससे उनकी अल्पता प्रतः हमें उप जातियों के सम्बन्ध मे विस्तृत अध्ययन का प्रामाणिक चित्र खीचा जा सके । उनके मरूप होने कर उनके सम्बन्ध मे प्रामाणिक माघार देकर विचार की कल्पना प्रानुमानिक है। दूसरे गोलापूर्वादि किसी करना चाहिए। प्राशा है मलया जी इस सम्बन्ध में अनुजाति में ऐसी कोई शक्ति भी नहीं दिखाई देती, जिससे सन्धान करेगे और उस पर ऐतिहासिक दृष्टि से विचार वह किसी दूसरी उप जाति को अन्तभक्त कर सके। कर लिखेगे। लिखने से पहले अपने विचारों के अनुकूल देश में अनेक उप जातियां रही हैं, जिनके निकास प्रमाणों का संकलन प्रामाणिक रूप से करना उचित होगा, का इतिवृत्त भी अनुपलब्ध है। उनका पठन भनेक ग्रामो, झट-पट कल्पना करने से उनकी प्रामाणिकता नहीं रहती। -परमानन्द शास्त्री
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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