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विषय-सूची
विषय
९ धर्म का स्वरूप
२ धर्म का जीवन में स्थान
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- मथुरादास जैन एम० ए०, साहित्याचार्य
३ डाक्टर दरबारीलाल जी कोठिया का अध्यक्षीय भाषण
४ अनेकान्त के स्वामित्व तथा अन्य व्योरे के विषय मे
५. प्रसिद्ध उद्योगपति साहू शान्तिप्रसाद जी जैन का उद्घाटन भाषण
६ जैन दृष्टि मे मोक्ष एक विश्लेषण
७] लाइन की एक महत्वपूर्ण जिन प्रतिमा
७ जियो और जीने दो' के सिद्धान्त पर एक वैज्ञानिक प्रकाश "फूल भावुक होते है" C स्व० ला० राजकिशन जी - मथुरादास जैन १० वैराग्योत्पादिका अनुप्रेक्षा
-- सकलनकर्ता श्री बन्शीधर शास्त्री ११ गाथा सप्तसती की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
१२ भगवान महावीर की साधना पद्धति
- मुनि श्री महेन्द्रकुमार ( प्रथम ) १३ दान की महिमा - मथुरादास जैन एम. ए.
१३] अनेकार वर्ष २५ को वार्षिक सूची
पृ०
२२७
२२८
अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपया एक किरण का मूल्य १ रुपया २५ पैसा
२२६
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- डा० प्रेम सुमन जैन एम. ए., पी-एच. डी. २५७
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सम्पादक मण्डल
डा० आ० ने० उपाध्ये
डा० प्रेमसागर जैन श्री यशपाल जैन
श्री मथुरादास जैन एम. ए. साहित्याचार्य
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समवेदना
वीर सेवा मन्दिर परिवार जैन समाज के उद्भट विद्वान् डा० हीरालाल जी जैन एम० ए०, डी० लिट० के असामयिक निधन पर हार्दिक शोक और समवेदना प्रकट करता है। डाक्टर साहेब की जिन वाणी सम्बन्धी सेवायें परमादरणीय एवं अनुकरणाय है । भगवान् से प्रार्थना है कि डाक्टर साहब की आत्मा को सुगति को प्राप्ति हो तथा उनके वियोग सन्तप्त परिवार को धैर्य लाभ हो । महेन्द्र सेन जंगी महासचिव वीर सेवा मन्दिर, २१. रियाज दिल्ली।
न्यायाचार्य डा० दरबारीलाल जी कोठिया का अध्यक्षीय भाषण
अखिल भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्परिषद् के शिवपूरी (मालियर) मे हुए अधिवेशन में डा० कोठिया जी ने जो ग्रध्यक्षीय भाषण प्रस्तुत किया है एक विशेष महत्व का लेख निबन्ध है । यह भाषण जहा जैन समाज व जिनवाणी के उत्थान के अनेक सभाओ का प्रदर्शन करता है वहा परिषद् के इतिहास की रूप रेखा पर भी पर्याप्त प्रकाश डालता है । आपका भाषण जैन समाज एव जैन वाङ्मय की स्थिति का एक सुन्दर चित्र बन गया है । जैन सिद्धान्त और दर्शन के तत्वों को भी भली भाति समझाया गया है ।
सभाध्यक्षो के भाषण प्रायः समाचार पत्रो की तरह सामयिक साहित्य के महत्व तक ही पहुंचते हैं लेकिन श्रावका भाषण अनेक विषयों के अनुसन्धान पूर्ण विवेचन के कारण निश्वय ही स्थायी साहित्य की कोटि मे परि गणनीय हो गया है। जैनधर्म एवं जैन माहित्य की उन्नि वीषा वाले व्यक्ति के लिए भाषण ध्यान से पढ़ने, मनन करने एवं प्राचरण में लाने की बस्तु बन गया है।
अनेकान्त में प्रकाशित मण्डल उत्तरदायी नहीं हैं ।
-सम्पादक
विचारों के लिए सम्पादक - व्यवस्थापक प्रनेकाल