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अपभ्रंश का एक प्रचित परितकाव्य काव्य रचना का ग्रन्थ प्रमाण लगभग ५००० हजार कहा ६. २७ कडेवकों की इस नोमी सन्धि में भ.शान्तिनाथ गया है : पांच सहस्र इलोकप्रमाण से रचना अधिक हो की दिव्य-ध्वनि एवं प्रवचन-वर्णन है। । सकती है, कम नही है। क्योंकि तेरह सन्धियों की रचना १०. दसवीं सन्धि में केवल २० करवक हैं। इसमें तिरे। अपने काय में कम,नही है।
सठ महापुरुषों के चरित्र को प्रत्यन्त संक्षिप्त वर्णन काव्य में निबद्ध तेरह सन्धियों में वणित संक्षिप्त है। विषय वस्तु इस प्रकार हैं
११. ३४ कडवकों को इस ११वी सन्धि भौगोलिक प्रायामों १. प्रथम सन्धि में मगध देश के सुप्रसिद्ध शासक राजा के वर्णन से भरित है, जिसमें केवल इस क्षेत्र का ही
श्रेणिक और उनकी रानी चेलना का वर्णन है। नहीं सामान्य रूप से तीनों लोकों का वर्णन है। राजा श्रेणिक पपने युग के सुविदित तीथङ्कर भ० १२. १८ कडवकों की इस १२वीं सन्धि में भ. शान्तिमहावीर के समवसरण (धर्म-सभा मे धर्म-कथा सुनने माथके द्वारा वणित चारित्र अथवा सदाचार का वर्णन के लिए जाते है । वे भगवान की वन्दना कर गौतम
किया गया है। गणघर से प्रश्न पूछते हैं। १२ कडवकों में समाहित १३. अन्तिम तेरहवी सन्धि में भगवान् शान्तिनाथ का प्रथम सन्धि मे इतना ही वर्णन है।
निर्वाण-गमन का वर्णन १७ कडवको में निबद्ध हैं । २. दूसरी सन्धि में विजयार्थ पर्वत का वर्णन, श्री प्रक
____ इस प्रकार इस काव्य का वर्ण्य-विषय पौराणिक है. लंककीर्ति की मुक्ति-साधना का वर्णन तथा श्री विजयांक का उपसर्ग-निवारण वर्णन है। इस सन्धि
जो लगभग सभी पौराणिकता से भरित रचनामों मे एक में कुल २१ कडवक है।
साचे मे रचा गया है। इसमें कथा-वस्तु उसी प्रकार ३. तीसरी सन्धि में भगवान शान्तिनाथ की भवावलि
सम्पादित है। उसमे कोई विशेष अन्तर परिलक्षित नही का २३ कडवकों में वर्णन किया गया है।
होता। ४. चतुर्थ सन्धि २६ कडवकों में निबद्ध है। इसमे भ० कथा-वस्तु की दृष्टि से भले ही कोई नवीनता लक्षित
शान्तिनाथ के भवान्तर के बलभद्र के जन्म का वर्णन न हो, किन्तु काव्य-कला और शिल्प की दृष्टि से यह किया गया है । वर्णन बहुत सुन्दर है।
रचना वास्तव में महत्वपूर्ण है। मालोच्यमान, रचना ५. पांचवी सन्धि मे १६ कडवक है। इसमे बजायुध
म १६ कडवक है। इसमें बजायुष प्राभ्रश के चरितकाक्ष्यों की कोदि की है। चरितकाव्य चक्रवर्ती का वणन विस्तार से हुआ है।
के सभी लक्षण इस कृति में परिलक्षित होते हैं। चरित. .. छठी सन्धि २५ कावको की है। श्री मेघग्य की काव्य कथा-काव्य से भिन्न है। प्रतएव पुराण की
सोलह भावनामो की मागधमा पौर सर्वार्थसिद्धि- विकसनशील प्रवृत्ति पूर्णतः इस काव्य में लक्षित होती
गमन का वर्णन मुख्य रूप से किया गया है। है। प्रत्येक सन्धि के प्रारम्भ में साधारण के नाम से 1. सातवी सन्धि मे भी २५ कडवक हैं। इसमें मुख्यतः अकित संस्कृत श्लोक भी विविध छन्दों मे लिखित मिलते
भ. शान्तिनाथ के जन्माभिषेक का वर्णन है। है। जैसे कि नवीं सन्धि के पाठवीं सन्धि २६ कडवकों की है। इसमें भगवान् सुललितपदयुक्ता सर्वदोष विभुक्ता शान्तिनाथ के कंबल्य-अप्ति-से ले कर समवसरण
जामतिभिरगम्या मक्तिमागे सुरम्या। विभूति-विस्तार, तक वर्णन है।
जितमवनमदानां चारवाणी बिनानी, रिसिबसु सर भुवि अंकालाई ।
परचरितमानी पातु साधारणानां । कत्तिय पढम पक्खि पंचमि रिणि,
१. कथाकाव्य मौर चरितकाव्य में अन्तर जानने के हुउ परिपुण्ण वि उग्गतह इणि ।। लिए लेखक का शोधप्रबन्ध दृष्टव्य है : 'भविसयत
-प्रस्व प्रशस्ति । कहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य', पृ० ७६-७६.
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