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प्रोम् महम
अनेकान्त
परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमवनं नमाम्यनेकान्तम् ॥
वर्ष २४
वोर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण संवत् २४६७, वि० सं० २०२७
अप्रेल
किरण १
१९७१
जिनवरस्तवनम्
दिठे तुमम्मि जिरणवर वज्जइ पट्टो दिरणम्मि प्रज्जयणे । सहलत्तणेग मज्झे सव्वदिपारणं पि सेसाणं ॥११॥ दिठे तुमम्मि जिरणवर भवरणमिणं तुज्झ मह महग्यतरं । सव्वाणं पि सिरोणं संकेयघरं व पडिहाइ ॥१२॥
-मुनि पपनन्दि अर्थ-हे जिनेन्द्र ! आपका दर्शन होने पर शेष सबही दिनों के मध्य में आज के दिन सफलता का पट्ट बांधा गया है । अभिप्राय यह है कि इतने दिनों में आज का यह मेरा दिन सफल हुआ है, क्योंकि, आज मुझे चिरसंचित पाप को नष्ट करने वाला आपका दर्शन प्राप्त हुआ है।
हे जिनेन्द्र ! आपका दर्शन होने पर यह तुम्हारा महा-मूल्यवान घर (जिनमन्दिर) मुझे सभी लक्ष्मियों के संकेत गृह के समान प्रतिभासित होता है । अभिप्राय यह है कि यहाँ आपका दर्शन करने पर मुझे सब प्रकार की लक्ष्मी प्राप्त होने वाली है।