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साहित्य-समीक्षा
१. जैनधर्म का मौलिक इतिहास (प्रथम खण्ड) वे अचेलक का अर्थ नग्न कैसे कर सकते थे? जब महावीर लेखक एव निर्देशक प्राचार्य हस्तीमल जी, प्रकाशक जैन का अचेलक धर्म सचेल बन गया, तब भगवान पार्श्वनाथ इतिहास समिति प्राचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञानभंडार, लाल का सान्तोत्तर धर्म महा मूल्यवान वस्त्र धारण करने वाला भवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर - पृष्ठ संख्या ७३३, मूल्य हो गया इसमे पाश्चर्य की कौन सी बात है ? सवस्त्र सजिल्द प्रति का २५) रुपया।
मान्यता के समर्थन मे केशी गौतम सवाट की भी कल्पना की प्रस्तुत ग्रथ जैन धर्म के मौलिक इतिहास का तीर्थकर गई है । केशी ने गौतम का पचयाम तो स्वीकृत कर लिया नाम का प्रयम म्खण्ड है। इसमे २४ तीर्थडुकरो का परन्तु वस्त्र का परित्याग करना स्वीकार नही किया। ऐसी इतिवृत्त श्वेताम्बरीय पागम साहित्य के प्राधार पर दिया स्थिति में अचेल का वह साम्प्रदायिक अर्थ उचित ही है । गया है। श्वेताम्बर माहित्य मे उक्त सम्बन्ध मे जो प्रस्तुत ग्रन्थ मे बासुपूज्य, मल्लिनाथ और नेमिनाथ सामग्री मिलती है उमे इम ग्रथ मे सुन्दर ढंग से सजाया को तो अविवाहित माना है और पाश्वनाथ तथा महावीर गया है । ग्रन्थ मे यथा स्थान मतभेदो और दिगम्बर को विवाहित स्वीकृत किया है । जब कि पांचो ही तीर्थकर मान्यताप्रो का निर्देश किया है । लेखन शैली में कही भी कूमार अवस्था मे दीक्षित हुए है । कुमार शब्द का प्रसिद्ध कटुता और साम्प्रदायिक अभिनिवेश का उभार नही होने पर्थ कुमारा ही है किन्तु कुमार शब्द का अर्थ युवराज पाया है।
स्वीकृत कर पार्श्वनाथ और महावीर को तो विवाहिता ग्रन्थ के प्रारम्भ मे अपनी बात और सम्पादकीय मे घोषित कर दिया। भले ही कुमार शब्द का उक्त प्रथंकर अनेक सैद्धान्तिक मान्यताप्रो का स्पष्टीकरण कर दिया समवायाग तथ। ठाणांग सत्रो पौर अावश्यक नियुक्ति से है । भगवान महावीर के निर्वाण समय तक का इतिवृत्त विरुद्ध पडता हो । क्योंकि प्रावश्यक नियुक्ति की गाथा इस प्रथ मे अकित किया गया है । ग्रन्थ के प्राधे भाग मे २५१ मे स्पष्ट लिखा है कि कुमार अवस्था मे दीक्षा ऋषभेदवादि तेईस तीर्थकरो का जीवन परिचय संक्षिप्त एव धारण करने वाले महावीर, अरिष्ट, नेमि, पाव, मल्लि सरल रूप में जीवन घटनाप्रो के साथ दिया गया है। और और वासुपूज्य इन पांच तीर्थंकरो को छोडकर शेष १९ शेष प्राधे भाग में भगवान महावीर का जीवन परिचय अनेक तीर्थकरो ने ही विषयो का सेवन किया है। इससे स्पष्ट घटनाक्रमो के साथ निबद्ध है। तीर्थ करो के जीवन परि है कि श्वेताम्बरो मे महावीर के विवाह सम्बन्ध की दो चय लिखने में बहुत कुछ सावधानी बर्ती गई है । ब्रह्मदत्त मान्यताए है। चक्रवर्ती का जीवन परिचय तुलनात्मक रूप में दिया गया दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थो मे वासुपूज्य, मल्लि, नेमि है । जैन और जैनेतर ग्रथो के प्राधार पर तीर्थकर अरिष्ट और पार्श्वनाथ तथा वर्द्धमान को बाल ब्रह्मचारी और नेमि की वशावली भी दी है। तीन परिशिष्ट भी दिये कुमार काल मे दीक्षित माना गया है। इसका उल्लेख है । भाषा सरल और मुहावरेदार है। उसमे गति एवं भी किया है। परिशिष्टों में तीर्थ करो को लेकर विविध प्रवाह है।
मान्यता भेद श्वेताम्बर दिगम्बर ग्रन्थों के प्राधार पर चाटों प्रागमिक टीकाकारों ने 'अचेल' शब्द का जो अर्थ द्वारा प्रदर्शित किये है , जो बहुत उपयोगी है। सम्पादक अल्पमूल्य वाले जीर्ण-शीर्ण वस्त्र दिया है वही अर्थ इस मण्डल की शैली प्रशसनीय है। पुस्तक पठनीय मोर ग्रन्थ मे भी दिया गया है । टीकाकारी के समय में उनके सग्राह्य है। कागज, छपाई, वाइंडिंग और प्रकाशन सभी संभवतः सम्प्रदाय के सब मुनि वस्त्र धारण करते थे। अतः अाकर्षक और सुन्दर है। -परमानन्द जैन शास्त्री