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________________ २६४, वर्ष २४, कि० ६ भगवतादास पाण्डे जिनदास के शिष्य थे ।" यह वाक्य आपने कैसे? मैंने ब्रहाचारी भरतीदास को पाण्डे जिनदास का शिष्य नहीं गुरु लिखा है । अतः यह ग्रापकी दूसरी भूल है। मैंने तो पाण्डे जिनदास के जयू स्वामी चरित की प्रशस्तिका निम्न वाक्य भी प्रस्तुत किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि पाण्डे जिनदान बह्म भगantares frog थे। "ब्रह्मचारी भगोतीदास, ताको शिष्य पाण्डे जिनदास ।" अतः स्पष्ट है कि ब्रह्मचारी भगवनी दाम के शिष्य जिनदास थे न कि जिनदास के शिष्य भगवतीदास | ऐसी उल्टो मान्यता की कल्पना आपने कैसे करली, इसका कोई प्रमाण उपस्थित नही किया । लेखक को चाहिए कि वह अपने इस विप रीत कयन की पुष्टि में कोई ठोस प्रमाण उपस्थित करे । अन्यथा अपनी भूल स्वीकार करें । दूसरे यह भी विचारणीय है कि पाडे जिनदास के गुरु भगवतीदाम सं० १६४० से पूर्व के विद्वान है । उनका कोई परिचय अभी तक नहीं मिला । सम्भवतः इन ब्रह्मचारी भगवतीदाम से बनारसीदास का परिचय भी नहीं हुआ जान पड़ता। क्योंकि इनके शिष्य जिनदास ने स० १६४०] जम्बूस्वामी चरित बताया तब बनारसीदास का जन्म भी नहीं हुआ था । दूसरे भगवतीदास जिन्हे बनारसीदास ने नाटक समयसार प्रशस्ति में 'सुमति भगोतीदास' लिखा है । भोर १० हीरानन्द जी ने पचास्तिकाय की प्रशस्ति मे 'वहाँ भगोतीदास है ज्ञाता' रूप से उल्लेख किया है । वे कौन से भगोनीदास है, और कहाँ के निवासी है, कुछ कुछ ज्ञात नहीं होता । बूढ़ियावाले तृतीय भगवतीदास का सम्बन्ध आगरा से जरूर रहा है। धनेकान्त रहे तीसरे भगवतीदास जी बूड़िया विधा के निवासी थे उनकी जाति अग्रवाल थी, उनके पिता का नाम किसनदास था। यह दिल्ली के भट्टारक महेन्द्रसेन के शिष्य थे । पर इन्होने बनारसीदास का उल्लेख तक नहीं किया । १. सवत्सर सोरह भए चालीस तास ऊपर ह्न गए । भादोवदि पांचमि गुरुवार, ता दिन कियो कथा उच्चार | श्रीर न धन्य सूत्रो से ही ज्ञात हो सका कि प्रस्तुत भग वतीदास बनारसीदास की गोष्ठी के विद्वान हैं। भट्टारक विद्वान होने के नाते इनसे उनका साक्षात्कार भी नहीं हुना जान पडता । यह भगवोदास आगरा में जरूर रहे है'। स. १६५१ मे उन्होने श्रर्गलपुर जिन वन्दना नाम की रचना बनाई थी, वहाँ के मन्दिरों का दर्शन किया। उनके साथ रामनगर के अनेक सज्जन उस यात्रा मे साथ थे। स० १३९६ में आगरा में उन्होंने कोई प्रथ भी लिखायें। इनकी रचनाएँ सं० १६५१, १६६४, १६८०, १६८७ १७०१ और अन्तिम रचना म० १७०४ मे सुलतानपुर (आगरा ) में लिखी गई यह दीर्घजीवी विद्वान थे । यह भट्टारकीय विद्वान थे तथा कवि थे । इन्हें डाक्टर साहब ने है, यह अम्बाला के निवासी अम्बाला का निवासी लिखा नहीं है । यह जगाधरी के पास बूढिया के निवासी हैं पहले यह सम्पन्न कस्बा था । अब यह खंडहरों में परिणत होगया है । यह कस्वा पंजाब मे था, और उसका जिला अम्दाला है। जिला मे रहने स कवि अम्बाला के निवामी नहीं कहे जा सकते । चतुर्थ भगवतीदास ग्रोसवाल थे। और अध्यात्म विषय के अच्छे विद्वान थे, उनकी कविता है और अध्यात्म रस से सराबोर है । यह १८वी शताब्दी के विद्वान है और ब्रहादिनास के कर्ता है। इनका गोष कटारिया या बिनास में इनकी १७ रचनाओं का सं० १७३१ से १७५५ तक का संकलन है । पाठक देखे इनके परिचय मे क्या असमंजस श्रीर असम्बद्धता है यह पाठकों पर ही छोड़ा जाता है। वे इसे पढ़कर डा० वासुदेवसिंह को सम्बद्धता का अच्छा परिषय पा सकेंगे । और इससे उनका भी समाधान हो सकेगा । २. नगर बूडिए वसे भागोती, जन्मभूमि है प्रासि भगोती । अग्रवाल कुलवंसल गोती, पडित पद जन निरख भगोती सीतास प्रवास्ति इनका विशेष परिचय के लिए देखे । - अनेकान्त वर्ष २०, किरण २, पृ० १०४ ३. इनके परिचय के लिए देखें । - अनेकान्त वर्ष १४, किरण १० १० २२७ मोर ३५६
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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