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शोषण
२१२ की मोर कोई कदम नहीं उठाया जाता, और न उनका प्रस्तुत हेमराज गोदिकाने प्रागरे वाले हेमराजकी टीका को निर्णय करने वाले विद्वान उन निबन्धों का आद्योपान्त देखकर प्रवचनसार का पद्यानुवाद बनाया है। प्रथम हेम. अध्ययन ही करते है इसलिए परिमार्जन की पोर उनका राज की रचना प्रवचनसार टीका, भक्तामर स्तोत्र पद्यानुध्यान जाता ही नही। ऐसी स्थिति में उन निबन्धो मे वाद, श्वेताम्बर चौरासीबोल, ममयसार टीका, कर्मप्रकृति निहित भूलों का परिमार्जन नहीं हो पाता, और वे भूलें टीका आदि ग्रन्थों की रचना की है। और दूसरे हेमराज बराबर बनी रहती है। यहाँ एक ऐसे ही निबन्ध की भूल ने प्रवचनसार पद्यानुवाद, दोहा शतक प्रादि ग्रथ लिखे की पोर पाठको का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं जो है। इम सक्षिप्त परिचय पर से डा. वासुदेवमिह अपनी दिबन्ध 'अपभ्रश और हिन्दी में जैन रहस्यवाद' पर भूल का परिमार्जन करने में समर्थ हो सकेगे। लिखा गया है । जिसके लेखक है डा० वसुदेव सिह एम० यह तो थीसिम की सबसे स्थूल भूल का नमूना मात्र
यह शोध प्रबध सं. २०२२ मे प्रकाशित भी हो चुका है। जिसमें दो विभिन्न जातीय विद्वानो के माताहै। मैंने उसकी एक प्रति प्रभी मुन्शीलाल, मनोहरलाल पितामों, स्थानो और कृतियों को एक ही बतलाया गया नई सडक से खरीदी है। उसके तृतीय अध्याय के पृष्ठ है, जिससे स्पष्ट जान पडता है कि लेखक ने इस पर १२२ पर (१६) पाडे हेमराज शीर्षक के नीचे उनका और शोध करने का प्रयत्न नहीं किया। अन्यथा ऐसी स्थल उनकी कृतियों का परिचय कराया गया है। जिसमे भूल नही हो सकती थी। अब लेखक की दूसरी भल का हेमराज नाम के दो विभिन्न जानियो के विद्वानो को एक परिचय देखिए। हेमराज के रूप मे संकलित कर लिया है और दोनो की इसी प्रबन्ध के पृष्ठ ८६-८७ पर भगवनीदास का रचनामों को भी एक हेमराज की रचना मान ली गई है। परिचय देते हुए लिखा है कि-"प० परमानन्द शास्त्री ने
साथ ही प्रागरावासी पाडे हेमराज अग्रवाल का भगवतीदास नाम के चार विद्वानों की कल्पना की। परिचय और सागानेर तथा कामावासी हेमराज खंडेल- आपके मन से प्रथम भगवतीदास पाण्डं जिनदास के शिष्य थे बाल गोदिका परिचय दोनों को एक रूप मे सम्बद्ध कर दूसरे बनारसीदास के मित्र थे। तीसरे अम्बला के निवासी दिया है। अनेकान्त पत्र में द्वितीय हेमराज ने अपने और प्रसिद्ध कवि तथा अनेक ग्रंथो के रचयिता थे और निसार के पद्यानुवाद में लिखा है कि इसके सम्बन्ध चौथे भैया भगवतीदास १८वी शताब्दी के कवि थे शास्त्री
नेमकेत भी किया जा चुका है लेखक ने इस संबंध जी का यह अनुमान प्रस्पष्ट और कथन परस्पर विरोधी में कोई अन्वेषण नहीं किया, और न यह सोचने-समझने है। बनारसीदास के मित्र भगोतीदास और कवि भगोतीका प्रयत्न ही किया है कि आगरावासी हेमराज की दास को भिन्न-भिन्न व्यक्ति क्यों माना गया शास्त्री प्रवचनसार की गद्यटीका' (सं० १७०६) को देखकर जो जी ने इसका कोई कारण नहीं बतलाया।" भाई उसे देखकर कामावाले हेमराज गोदिका ने इस प्रबन्ध के लेखक डा. वासूदेवसिंह जी ने जो 7 का पद्यानवाद' करने का उल्लेख किया है। निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न किया है, वह युक्त यक्ति नही
है। क्योंकि मैने अपने भगवतीदास नाम के चार विद्वान १. सत्रहस नव प्रौतर माघमास सित पाख ।
नामक के लेख मे उनका प्राधार भी दिया है और लिखा पंचमि प्रादितवार को पूरन कीनो काम ।
है एक पाण्डे जिनदास के गुरु ब्रह्मचारी भगवतीदास थे। २. सत्रह पच्चीसको वरतै सवत सार ।
मैंने अपने लेख में यह कही नही लिखा कि-"प्रथम कातिक सुदि तिथि पचमी पूरन सभी विचार । -प्रवचनसार पद्यानुवाद टीका
पाडे हेमराज उपगारी नगर पागरे मे हितकारी। ३. पांडे हेमराज कृत टीका पढ़त बढ़त सबका हित नीका
गोपि प्ररथ परगट करि दीनो, सरल वचनि का तिन यह प्रथसटीक बनायो बालबोधकरि प्रगट दिखायो। रचि सुख लीन्हों।
वही प्रवचनसार टीका प्रशस्ति प्रवचनसार टीका हेमराज गोदिका स. १७२५ में १. देखे भनेकान्त वर्ष ७किरण ..
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