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________________ अनेकान्त २५२, बर्ष २४,कि.. भाकृतियां मस्तक पर या तो प्रलंकृत मुकुट या घम्मिल पार्श्वनाथ मदिर के गर्भगृह के प्रवेशद्वार की प्राकसे युक्त है। तियां वस्तुतः डोर लिंटन के दाहिने पोर बाये दीवार पर सर्वप्रथम हम पर्श्विनाथ मंदिर (९५४ ईसवी) स उत्कीर्ण हैं । फलतः इसे डोर-लिटल का प्रकन स्वीकार प्राप्त होर-लिटल्स की देवियों का अध्ययन करेंगे । पाश्वं. नहीं भी किया जा सकता है, पर उनके प्रवेश द्वार की नाथ मंदिर से प्राप्त तीन डोर-लिटल्स में से दो मदिर के देवियां होने में कोई संदेह नहीं है । बायी मोर की चतुमण्डप और गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर और तीसरा मदिर भंज देवी को ऊर्ध्व भुजामो मे सनाल कमल प्रदर्शित है। के पश्चिमी भाग में सयुक्त अतिरिक्त छोटे मंदिर, जो मूल देवी की निचली दाहिनी व बायी भुजामों में क्रमशः प्रभयमंदिर मे सभवत: बाद मे जोड़ा गया था, के प्रवेश द्वार मुद्रा और कमण्डलु उत्कीर्ण है । भुजामों में पारित कमल पर देखे जा सकते हैं। पार्श्वनाथ मंदिर के मण्डप के डोर के ऊपर दोनों भोर गज प्राकृतियां उत्कीर्ण हैं । गज भाकलिटल के मध्य में (ललाट-बिंब) दस भुजामों से युक्त तियों और कमल के प्राधार पर इस प्राकृति की निश्चित चक्रेश्वरी को मान रूप में प्रदर्शित गरुड़ पर मासीन पहचान लक्ष्मी से की जा सकती है । दाहिनी मोर की चित्रित किया है । यहां यह ज्ञातव्य है कि ललाट-बिंब की भाकृति के ऊपरी दाहिने व बायें हाथों में क्रमशः सनाल चक्रेश्वरी प्राकृति, जो प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ की कमल और पुस्तक प्रदर्शित है, जबकि निचली दोनों भुजाओं यक्षी है, और साथ ही गर्भगृह में स्थापित मूल प्रतिमा में देवी ने वीणा धारण किया है । पुस्तक पौर वीणा के के सिंहासन पर उत्कीर्ण बैल चिन्ह के माधार पर इस माधार पर इस माकृति को निश्चित पहचान सरस्वती के मंदिर का ऋषभनाथ को समर्पित होना निश्चित है। की जानी चाहिए। पार्श्वनाथ मंदिर के पीछे सयुक्त एक १९वीं शती मे निर्मित काले प्रस्तर की पार्श्वनाथ अतिरिक्त छोटे मंदिर के डोर-लिटन के मध्य की प्राकृति प्रतिमा के माधार पर ही इसे मल से पार्श्वनाथ के ऊपरी दोनों हाथों में सनाल कमल स्थित है, जबकि मंदिर समझा जाने लगा। देवी की दाहिनी भुजाओं निचली दाहिनी भुजा भग्न है, मोर बायीं में देवी ने कममे क्रमशः ऊपर से नीचे, पद्म (१), चक्र, गदा, डल धारण किया है । हाथों में प्रदर्शित पद्म इसके लक्ष्मी खड्ग और वरदमुद्रा प्रदर्शित है, और वाम भुजामों में से पहचान की पुष्टि करता है । बायीं मोर की प्राकृति के उसी क्रम से चक्र, धनुष, खेटक, गदा और शंख। खजुराहो परी दाहिनी व बायौं भुजामों में क्रमशः सनाल कमब में चक्रेश्वरी का यह अकेला चित्रण है, जिसमें देवी को मोर पुस्तक चित्रित है, जबकि निचली दोनों भुजामों मे दस भजामों से युक्त प्रदर्शित किया गया है। डोर-लिटल वीणा प्रदर्शित है । दाहिनी भोर की प्राकृति के हाथों में के बायें कोने पर चतुर्भुज ब्रह्माणी की त्रिमुख मूर्ति भी पूर्ववत सनाल कमल और पुस्तक प्रदर्शित है, जबकि उत्कीर्ण हैं। देवी का वाहन हस अनुपलब्ध है। देवी निचली दोनो भुजामों मे वीणा के स्थान पर वरद मुद्रा की ऊपरी दाहिनी व बायीं भुजामो क्रमशः शक्ति और और कमण्डलु चित्रित है। उपर्य क्त दोनों ही प्राकृतिया पुस्तक चित्रित है, जबकि निचली भुजामों में मभयमुद्रा(?) (दाहिनी) भोर (बायीं) देखा जा सकता है। दाहिनी निःसंदेह सरस्वती का अंकन करती हैं। योजना मे पार्श्वनाथ मंदिर के सदश घन्टई मन्दिर को भोर को आकृति भी चतुर्भ ज भोर त्रिमुख ब्रह्माणी का अंकन करती है। देवी के समीप ही उसका वाहन हस स्थापत्य. मूतिकला और स्तंभों पर उत्कीर्ण लिपि संबधी चित्रित है । देवी की ऊवं भुजायों में पूर्ववत् शक्ति और साक्ष्य के माधार पर दसवी शती के अंत में निर्मित माना पुस्तक प्रदर्शित है, जबकि निचली दाहिनी भुजा मे बीज- जा सकता है । प्रवेश द्वार के ललाटबिब में चक्रेश्वरी की पुरक (फल) और बायों में कमण्डलु अकित है। यहां यह अष्टभुजी मूर्ति उत्कीर्ण है, जिसमे देवी को मानब रूप में उल्लेखनीय है कि उक्त डोर-लिटन के अतिरिक्त अन्य किसी उत्कीर्ण गरुड़ पर आसीन व्यक्त किया गया है । चक्रेश्वरी भी डोर-लिटन पर ब्रह्माणी को उत्कीर्ण नहीं किया गया की ऊपरी चार भुजामों में चक्र प्रदर्शित है, जबकि शेष तीसरी चौथी दाहिनी भुजामों में षण्ट और मातुलिंग
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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