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खजुराहो के जैन मन्दिरों के डोर-लिटल्स पर उत्कीर्ण
जैन देवियां
मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
चदेलो के शासनकाल में निमित खजुराहा के पाव. के उपयुक्त तीन प्राचीन जैन मदिरों से प्राप्त कुल ५ नायव प्रादिनाथ जैन मंदि। और अन्य कई नवीन जैन डोर-लिटल्स के प्रतिरिक्त अन्य १७ डोर-लिटल्स खजुराहो मदिर, जिनमे स्थित मूर्तियाँ चदेलो के काल की ही है। के पुरातात्विक सग्रहालयों (नवीन व जोर्डन) पौर एक विशाल किन्तु नवीन परकोटे मे स्थित है। चदेलो के प्रदिनाथ मदिर के पीछे बावली से सटे संग्रहालय में शासन काल में निमित एक अन्य जैन मदिर घण्टाई, स्थित है, और कई नवीन मदिरों के निर्माण में प्रवेश जिमका प्रब केवल अर्घमण्डप मोर महामण्डप ही शेष है, द्वार के रूप में प्रयुक्त हुए हैं । कुल २२ डोर-लिटल्स में से नवीन परकोटे से कुछ ही दूर पर पश्चिम की भोर स्थित १५ पर जैन सम्प्रदाय को विशिष्ट देवियो, यथा चक्रेश्वरी है। खजराहो के जैन जिला के अध्ययन की दृष्टि से विका, सरस्वती, लक्ष्मी पौर पद्यावती को अनेकशः समस्त जैन मंदिरो के डार-लिटल्म पर उत्कीण जैन उत्कीर्ण किया गया है, जब कि शेष ७ मे से ५ पर देवियो का अध्ययन विशिष्ट महत्व रखता है । खजुराहो तीर्थकरो की संक्षिप्त प्राकृतियाँ प्रकित है। अन्त दो भभा– भली भांति छतरी [वणों लग बतीसूं ख ।।
डार-लिटल्स हिदू सम्प्रदाय के तीन प्रमुख देवो ब्रह्मा, बीठल की छतरी वहां, प्रति सोहत रणथव ॥ ४॥
विष्णु और हिश का चित्रण करते है। ये डोर-लिटल्स ममा--मीदर छतरी महल है, केती ही महजीत ।
शातिनाथ मदिर (मंदिर न. १) के प्रवेश द्वार में पौर को लग वरणो या छवी, सब देवन को रोति ।।२।।
प्रादिनाथ मदिर के पीछे स्थित संग्रहालय (नं० के १०८)
मे देखी जा सकती है। ये उदाहरण निश्चय रूप से हिन्दू यया-या सोभा रणथभ की, वरणी प्रकल विचार ।
मदिरो के डोर-लिटल्स प्रतीत होते है, क्योकि जैन मदिरो यो किल्नो सुवस बसो रणत भवर जग जाह।॥ ६॥
के डोर-लिटल्स पर सर्वदा इन्ही देवो का अकन प्राप्त ररा- रण के डूंगर शीतला, पूजत नारि सुधीर ।
होता है। इस प्रकार जैन मदिरो से सम्बन्धित २० डोरनर नारी पूजत सबा भामो भाणको पार । २७॥
लिटल्स, जिनमें से तीन तो पार्श्वनाथ मदिर मे देखे जा लला- लागत गढ प्यारो सवा, गंग बिहारी दास ।
मकते है, निश्चित रूप से खजुराहो में १७ जैन मदिरों के रोना भोना है वोऊ, सकल सुधारत काम ॥२८॥
अस्तित्व का मकेत करते है, जो पाश्र्वनाथ, घण्टई, पौर ववा-वहां मेला कई ज, होत धमाधम भीर ।
प्रादिनाथ मदिरों के समान विशाल न होकर छोटे छोटे सोल से गणपति पुजं, सदर दीन श्री पीर ।।२६।।
देवालय रहे होये । प्रस्तुत लेख में हम पार्श्वनाथ व घण्टई शशा-शेरपुरी खिलची पुरो, बसत किला की बोट ।
मंदिरों के डोर-लिटल्स के अतिरिक्त कुछ अन्य विशिष्ट माधोपुर मालण पुरो, चहदिसि डूंगर कोट ॥३०॥
डोर-लिटल्स की मूर्तियों का भी प्रध्ययन करेगे । प्रादिनाथ षषा--साईतर बन कियो, कवल धार जग नेर -
मंदिर के प्रवेश द्वार की मूर्तियों का अध्ययन हम अनेकान्त चसमा की सुन्दर हवा, वषा जाल की मेर ॥३१॥
के पिछले अंक में कर चुके हैं। डोर-लिटल्स की समस्त ससा-सीताराम सुत मोहनो विरामण गजर गोड ।
प्राकृतियों को ललितासन मुद्रा में एक पैर नीचे लटकाये नाती बेणी राम को, कको बणायो जाति ॥३२॥
और दूसरा मोडकर प्रासन पर रखे हुए चित्रित किया हहा-है नरपति जैस्यंध बली किलोवर ॥३३॥
गया है। सभी प्राकृतियां ग्रीवा मे हार, स्तनहार, कुण्डल, केयर, पायजेब, धोती प्रादि से सुसज्लित हैं। सभी