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________________ २३६, वर्ष २४, कि०६ अनेकान्त विभाजित किया जा सकता है रहे । दीवान रामचन्द्र ने जयपुर व रामगढ़ के मध्य शाह१. धार्मिक तथा दार्शनिक साहित्य । बाद के प्रसिद्ध जैन मन्दिर का निर्माण कराया। राव २. वर्णनात्मक साहित्य । कृपाराम ने चाकसू तथा जयपुर में अनेक मन्दिर निर्मित ३. काव्य, महाकाव्य और मुक्तक काव्य । कराये । जयसिंह के शासनकाल मे सम्यक्ख कौमुदी तथा ४. वैज्ञानिक साहित्य । कर्मकाण्ड सटीक की भी रचना हुई। ५. ऐतिहासिक तथा राजनैतिक साहित्य । सवाई माधोमिह का शासन काल जैनधर्म के लिए मालोच्य काल में भी उपर्युक्त सभी प्रकार के उल्लेखनीय है। इनके समय मे बालचन्द्र छाबडा सन् पारिश की रचना राजस्थान के विभिन्न भागो में हुई। १७६१ मे राज्य के मुख्यमन्त्री बने । उन्होंने अनेकों जैन हम काल के कवियो में बीकानेर के श्री हर्षनन्दन' जयतसी, मन्दिगे का निर्माण तथा जीर्णोद्धार करवाया।" १७६४ भावप्रमोद, लाभवर्द्धन, लक्ष्मीवल्लभ, धर्ममन्दिर, जीव- (स० ९८२१) मे बालचन्द्र छाबड़ा के प्रयत्नो से यहाँ राज, वच्छ राज, उदयचन्द्र, गुणचन्द्र, क्षमाकल्याण, "इन्द्रध्वज पूजा महोत्सव' मनाया गया तब तत्कालीन शिवलाल, सावतराम. रघुपति, प्रादि जैसलमेर के जय जयपुर नरेश माधवसिंह जी ने "था के पूजाजी के अर्थि कीति, बदी के दिलराम, भरतपुर के नथमल बिलाला' जो वस्तु चाहि जे सो ही दरबार सं ले जायो" कह कर तथा अन्य कवियो में रामविजय, चरित्रनन्दन प्रादि सब प्रकार की सुविधा और सहायता प्रदान की थी।" साहित्यकारो के नाम उल्लेखनीय है । दीवान रतनचन्द, नन्दलाल, केसरीसिंह व नन्दलाल ने भी जयपुर राज्य में जैनधर्म जयपुर और सवाई माधोपुर में जिन मन्दिरों की स्थापना करवाई। सवाई जगतसिंह के दीवान बखतराम ने दुर्गाजयपुर राज्य मे जैनधर्म का व्यापक प्रसार मध्यकाल पुग तथा चौडा रास्ता जयपुर में यति यशोदानन्द जी के मे हुमा । जयपुर निर्माण से पूर्व प्रामेर राज्य के राजामो मे मानसिंह एव मिर्जा राजा जयसिंह के शासनकाल मे मन्दिर बनवाये । इस प्रकार प्रायः प्रत्येक राजा के शासन अनेक जैन मन्दिरो का निर्माण हमा। १६५४ ई० मे काल मे मन्दिरों का निर्माण जैनधर्म के प्रभाव को स्थायी बनाये रखने में बड़ा सहायक हुमा । सागानेर के प्रसिद्ध गोधो के मन्दिर का निर्माण मिर्जा गजा जयसिंह के शासन काल में ही हपा था। आमेर के जिस प्रकार प्रत्येक राजा के शासनकाल मे जैन प्रमित जैन मन्दिर विमलनाथ का निर्माण भी जयसिंह के मन्दिरों का निर्माण हुअा है उसी प्रकार यहां साहित्य समय में उनके प्रधानमन्त्री मोहनदास खण्डेलवाल (जैन) रचना भी हुई है । भारामल के शासन काल में पाण्डवके द्वारा १६५६ ई० मे हुमा था, जिस पर सोने का पुराण, हरिवंशपुराण, महाराजा भगवानदास के शासनकाल कलश था। मे वर्धमानपुराण, राजा मानसिंह के समय में हरिवंशजयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह के समय रामचंद्र पुराण की रचना हुई तथा इसी पुराण की सं० १६०४ व १६०५ मे दो प्रतिलिपियाँ राजमहल" तथा संग्रामपुर" छाबडा, राव कृपाराम और विजयराम छावड़ा दीवान में की गई । इन हस्तलिखित लिपियों को संग्रह करने की १. राजस्थान भारती, भाग १ अक ४ । ६.प्रशस्ति सग्रह-डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल । २. बीकानेर के जैन शिलालेख-अगरचन्द नाहटा पृ० १०. जैनिज्म इन राजस्थान बाई, के. सी. जैन पेज १८-२३ । ४६-४७। ३, ४, ५, ६, ७. निम इन राजस्थान बाई. के. सी. ११. वीरवाणी प० २६-३० । जैन । १२. प्रशस्ति संग्रह पृ०७३ । ८. एनयूअल रिपोर्ट, राजपूताना म्यूजियम, अजमेर १३. वही, प०७२ । १९२५-२६, नं. ११। १४. वही, पृ.७२।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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