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जनधर्म के सम्बन्ध में भ्रांतियां एवं उनके निराकरण का मार्ग
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विस्तृत विवरण दिया गया है।
एक विश्व साहित्य मे जैन धर्म को यथोचित स्थान मिले । ___ इस विवरण का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है- इस सम्बन्ध में विद्वत् परिषद या संघ जैसी संस्थानों जैन धर्म हिन्दू धर्मों में से एक बहुत ही दिलचस्प एव बहु को पागे प्राकर योजनाबद्ध कार्य करना चाहिए। इस प्रचलित धर्म है फिर भी इसका सक्षिप्त विवरण हो योजना की रूप रेखा इस प्रकार हो सकती हैपर्याप्त है। ये भी सिक्खों की तरह, ब्राह्मणों द्वारा नास्तिक १ भारतीय एव अन्य भाषामों की उन पुस्तकों की माने जाते हैं किन्तु वे संभवतः सही रूप में स्वतंत्र माने सूची बनाई जावे जिनमें जैन धर्म, दर्शन, इतिहास, जाते हैं । यद्यपि इनके धर्म (जैन धर्म) का मूल ब्राह्मण कला, पुरातत्त्व प्रादि का विवरण है। धर्म में है। ईसा से लगभग ५ शताब्दी पूर्व हुए वर्धमान
२. प्रारंभ मे हिन्दी एवं अग्रेजी की उक्त पुस्तकों का द्वारा संस्थापित यह धर्म वेदों की मान्यता अस्वीकार
संकलन करवाया जाय। यथा सभव अन्य भाषाओं की करता है, पुनर्जन्म के सिद्धान्त को इस प्रकार परिवर्तित ।
प्रमुख पुस्तकों के संकलन का भी प्रयास रहना चाहिए। करता है कि साधु जीवन मृत्यु के बाद अमरत्व प्रदान करता है, समस्त ब्राह्मण देवी देवताओं को हटाता है,
३. इन पुस्तकों में प्रागत जैन विषयों से संबन्धित जाति भेद को अमान्य करता है। उनके पागम ग्रंथ इन।
सामग्री सकलित कर अलग से साइक्लोस्टाइल करवा कर सिद्धान्तों का स्वतत्रता पूर्वक उल्लेख करते हैं । उनके
विभिन्न विद्वानों को भेजी जावे । चौबीस अमर साधु अधिकतः ईश्वर का स्थान ग्रहण किए ४. जैन विषयों से सम्बन्धित संकलित सामग्री निम्न हुए हैं । कुछ वस्तुतः यह मानते है कि जैन धर्म व्यवहारतः प्रकार की होगीएकेश्वरवादी हैं, किन्तु पूर्वी धर्मों में जैसा प्रायः होता है, (क) सही विवरण हो और पर्याप्त भी हो। शास्त्रों की भाषा इस मत पर अस्पष्ट है ।
(ख) सही हो किन्तु अपर्याप्त हो। अनेक विषयों में वर्धमान अपने समकालीन युद्ध से (ग) सही न हो और पर्याप्त भी न हो। मिलते है । बुद्ध की तरह उन्होने ब्राह्मण धर्म का साथ ५. इन पर अधिकारी विद्वान अपने मत प्रस्तुत करें छोड़ा, और उन्हीं की तरह से जीवन की पवित्रता को और उनको इस प्रकार उपयोग किया जावे। मान्यता दी, यहां तक कि कीडे भी न मारे जाने चाहिए, (प्रा) यदि लेखक जीवित न हो तो प्रकाशक को सुधार पौधे भी मनुष्य जाति के भाई की तरह माने जाने चाहिए। करने की प्रेरणा दी जावे । वे शायद पुस्तक में परिवर्तन किन्तु कई विषयो मे स्पष्ट भेद भी है। विशेषतः साधुनों न कर सके किन्तु उन्हें उस मत को नवसस्काण मे उल्लेख के अन्तिम साध्य स्थान-निर्वाण-के सम्बन्ध मे।" कराने की प्रेरणा दी जावे।
उक्त विवरण में क्या भूले है या कितनी अपूर्णता है (इ) दोनो ही स्थितियों में उक्त अभिमतों को पत्र-पत्रि. उसे साधारण पाठक भी प्रासानी से जान सकता है । मैं कानों में या स्वतंत्र रूप से प्रकाशित कराते रहना चाहिए। समाज के विद्वानों विशेषतः शोघरत तथा पी. एच. डी. पाशा है विद्वान इस ओर ध्यान देगे। इस कार्य मे वे भाई उपाधि विभूषित विद्वानो से अनुरोध करता हूँ कि वे इन भी सहयोग दे सकते है जो अध्ययनशील हैं वे विभिन्न विषयों पर विदेशी पत्र-पत्रिकामों में लेख भेजें जिनमें पुस्तको या पत्र-पत्रिकामों में प्रागत जैन सम्बन्धी उल्लेखों जैन धर्म, इतिहास, दर्शन, कला प्रादि सम्बन्धी पूर्ण का संकलन करते रहें और उन्हें छपा दें ताकि अन्य विवेचन किया जावे ताकि तत्सम्बन्धी भ्रांतियाँ दूर हों विद्वान उन पर अपनी राय लिखें।