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________________ जैनधर्म के संबंध में भ्रांतियां एवं उनके निराकरण का मार्ग श्री वंशीधर शास्त्री एम. ए. विश्व भर मे दर्शन, इतिहास एव धर्म के सम्बन्ध मे को पढ़ा और उसी के आधार पर वे लिखते रहे हैं । प्रकाशन होते रहते है। । विश्व की विभिन्न भाषाम्रो मे इस प्रसगमे मैं पाठकों का ध्यान श्री अरनेस्ट एडवर्ड जैनधर्म, जैनदर्शन एव जैन इतिहास के सम्बन्ध में क्या कोलट द्वारा लिखित 'ए शार्ट हिस्टरी पाव रिलीजन्स' मे लिखा जाता है जैन लोग बहुत कम जानते हैं । जो जानते जैन धर्म सम्बन्धी विवरण की ओर आकर्षित करना चाहत्ता हैं वे उसे प्रकाश में नहीं लाते। इसमें कोई संदेह नही है कि जैन धर्म का समस्त यह पुस्तक विश्व भर के प्रमुख धमों का इतिहास घों में एक स्वतत्र एवं महत्वपूर्ण स्थान है किन्तु उसका प्रस्तुत करती है एव प्रामाणिक समझी जाती है। एक पूर्ण तथा सही विवरण पाठकों तक नहीं पहुँचता है। मैं समालोचक ने लिखा है यह पुस्तक प्रत्येक विचारशील समझता है कि इसका उत्तरदायित्व उन प्रकाशनों से व्यक्ति, भले ही वह प्रास्तिक हो या नास्तिक के लिए सम्बन्धित व्यक्तियो के अतिरिक्त जैन विद्वानों, प्रकाशकों एव समाज पर अधिक है जो जैन वाङ्मय को पूर्ण रूप से इस पुस्तक मे ५७३ पृष्ठ है। सुदूरपूर्व के धर्मों प्रकाश में नहीं ला सके है और विश्व के कोने-कोने में नही संबन्धी अध्याय ६४ पृष्ठो में लिखा गया है-जिनमे पहुँचा सके है। इस दिशा मे दिगम्बर जैन समाज का हिन्दू धर्म पर २० पृष्ठ, जैन धर्म पर १ पृष्ठ, बौद्ध धर्म प्रयास तो बहुत ही प्रा रहा है । बैरिस्टर चम्पत राय जी पर २६ पृष्ठ एवं शेष पृष्ठ कान्फ्यूसियज्म, लामोइज्म एव जैसे कुछ ही विद्वानो ने जैन सिद्धान्तों आदि की जान- थियोसोफी पर है। इस पृष्ठ राशि से स्पष्ट हो जाता है कारी पश्चिम वालो को दी है। अन्य देश वालो ने कि जैन धर्म का कितना सक्षिप्त विवरण दिया गया है। अजैनो द्वारा लिखित अपूर्ण एव कही-कहीं भ्रामक सामग्री अन्य धर्मों के परिचय में उनके प्रवर्तको एवं सिद्धान्तो का का प्राचार हो और जनसेवा के कार्यों द्वारा हम महावीर व्यक्ति, गुरु, प्राचार्य अथवा सम्प्रदायो के नामो पर को वाणी का प्रचार करे। चलती है। हमारा लक्ष्य रहे कि निर्वाण महोत्सव तक सेवा कार्य की योजना की दृष्टि के साथ-साथ साहित्य- अब जो भी नई सस्था जैन समाज द्वारा बने, उसमें निर्माण, सेमिनार, व्याख्यान, कला, प्रदर्शनी, प्रायोजन, भगवान महावीर का ही नाम रहे। जुलूश प्रादि के कार्य-क्रम हो तो दोनों पक्ष सबल हो जाते हमारा हमने इन पंक्तियों द्वारा केवल चिन्तकों का है । हमें तो यह ध्यान में रखना ही है कि उत्साह के ध्यान आकृष्ट किया है कि इस महान अवसर के पीछे मावेश में हम इस प्रसंग पर जैसा-तेसा कुछ भी कार्य उददेश्य एवं दृष्टि क्या हो ? यह तो समाज के मनीषियों, करने में अर्थ और शक्ति बर्बाद, न करे क्योकि जो कुछ चिन्तकों एवं नेतामों का कार्य है कि इस प्रोर सही दिशा भी किया जाय वह महावीर की गरिमा के अनुकूल होना दर्शन करें। प्राशा है कि २५वी निर्वाण शताब्दि का चाहिए। महोत्सव मनाते समय प्रात्मचिन्तन पूरक यह दृष्टि रहेगी जैन समाज द्वारा आज भी उनकी संख्या के अनुपात कि स्वयं के जीवन में जैनत्व का विकास किया जाय। मे सेवाके अनेक कार्य होते है किन्तु उसके पीछे योजना और एवं सेवा द्वारा उसका संसार में प्रचार करने की योजव्यापक दृष्टि का प्रभाव रहता है। अधिकाश सेवा संस्थाएं नाएं प्रारम्भ की जांय ।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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