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________________ तीर्थकर भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव का उद्दश्य एवं दृष्टि श्री रिषभदास रांका तीर्थङ्कर भगवान श्री महावीर ने प्राणीमात्र को व्यक्ति अपने विचार, इच्छा और शक्ति के अनुमार उसकी प्रात्मा की अनन्त शक्ति का बांध कराते हुये उत्साहपुर्वक सुझाव प्रस्तुत कर रहे है और इन सुझावो विषय-वासनामों एवं विकारो से मुक्त बनकर पवित्र को क्रियान्विति के लिये प्रयत्नशील भी है। जीवन की महान् प्रेरणा दी। उन्होंने जगत को कल्याण- मुख्य प्रश्न यही है कि भगवान महावीर और जनकारी स्वावलबन एव पुरुषार्थ का उद्बोधन देते हुए जीने धर्म के इस प्रसंग पर अधिकाधिक प्रभावना हो । प्रभावना की वह कला सिखाई जिसके द्वारा सामान्य मात्मा भी का हमारे यहाँ जो प्रचलित रूप है वह सब जानते ही है क्रमशः अपना विकास कर परमात्मा बन सकता है। प्राचार्यों के पदार्पण अथवा धार्मिक उत्सवों पर प्रभावना अहिंसा, अनेकान्त, सयम और त्याग की जो दृष्टि जगत की दृष्टि से हम स्वागत समारोह, भव्य जलश, भाषण, को महावीर ने दी है वह अढाई हजार बरसों के बाद सह-धार्मिक-भोजन कराना अथवा नारियल, मिठाई, वर्तमान युग की अनेकानेक समस्यामों को सुलझाने में बताशे या अन्य सामग्री बांटकर हम प्रभावना करते है। पूर्ण सहायक बन सकती है। महावीर का उपदेश देश, हम यह नहीं कहना चाहते कि ये कार्य प्रभावना की दृष्टि काल अथवा जाति-सम्प्रदाय तक ही सीमित नहीं था। से उचित नहीं है। हमारा सकेत यही है कि क्या केवल उनकी दृष्टि विशाल थी। इतना मात्र करना ही तीर्थङ्कर भगवान महावीर बि ऐसे महान तीर्थङ्कर की २५वी निर्वाण शताब्दी के जनधर्म की प्रभावना जैसी हानी चाहिए वैसी सम्भव है ? अवसर पर सारे संसार में उनके अमर उपदेशों एवं यदि नही तो इनके अतिरिक्त अन्य कौन से माग या जीवन-साधना की स्मृति श्रद्धा, कृतज्ञता एव भक्तिभाव कार्य है जिनसे अधिक प्रभावना हो सकती है-सच्ची से होनी ही चाहिए और उसमे भी उनके भक्त जनों द्वारा प्रभावना की जा सकती है। इस अवसर पर उत्साह, जागृति एवं उल्लास होना स्वा- हमारी नम्र राय में किसी महापुरुष क प्रति अपनी भाविक है। जैन समाज मे इस महान उपलक्ष के लिए सच्ची भक्ति एव थद्वा व्यक्त करने तथा उनकी स्मृति अनेक योजनाएं, कार्यक्रम और चिन्तन चल रहा है। को अधिक तीव्र एवं ताजा बनाने के लिये दो मुख्य मार्ग करोडों रूपयों की धनराशि एकत्र की जा रही है जिसमे हो सकते है-एक मार्ग है, उनके उपदेशो का बाह्य महोत्सव सारे संसार मे धूमधाम से मनाया जाय और साधनों द्वारा प्रचार और दूसरा मार्ग है तत्वों को जीवन भगवान महावीर तथा जैन धर्म की प्रभावना बढ़े। इसके में उतार कर जीवन एवं व्यवहार उदाहरण से प्रचार लिये जैन पत्र-पत्रिकाओं, सम्मेलनों एव सभाओं मे करना । सुझावों, विचारों एव योजनाओं की बाढ़ पा रही है। प्रचारात्मक साधनों का अपना विशेष महत्व है किन्तु सभाएं, जलूश, स्वागत-समारोह, भाषणमालाएं फिल्म- केवल प्रचार स्थायी नहीं होता उसकी नींव रचनात्मक निर्माण, संस्थानों की स्थापना, मन्दिर निर्माण, साहित्य आधार पर होनी आवश्यक होती है। हम भगवान महाप्रकाशन, विश्वविद्यालय, शोध-संस्थान, स्मारक, डाक- वीर के जीवन एवं सिद्धान्तों की सभाओं, व्याख्यानों, टिकिट आदि एवं डांडिया-नृत्य प्रायोजित करने तक के संस्थाओं अथवा अन्य साधनों से चाहे जित्नी व्याख्य विविध सुझाव पा रहे है। इसमे सन्देह नहीं कि प्रत्येक क्यों न करे वह हमारे लिये तब तक अधरी है जब तक
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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