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पावापुर
भो बलभद्र जैन
[माणकल 'पावा' के सम्बन्ध में विवाद उठ खड़ा हुमा है, कि भगवान महावीर का परिनिर्वाण पावा में हमा है । श्वेताम्बरीय कल्पसूत्र के अनुसार वह मध्यमा पावा है, जो वर्तमान में निर्वाणभूमि माली माली है। परन्तु कुछ लोग केवल बौद्धप्रन्थों के प्राधार पर महावीर की निर्वाण भूमि पावाको पहरोना या सठियांव में मानने के लिए बाध्य कर रहे हैं। परन्तु अभी तक ऐसे कोई ठोस प्रमाण उपस्थित नहीं हुए हैं। जिनसे उत्तरप्रदेश वाली पाबा को मान्यता दी जा सके। ऐसी स्थिति में विद्वान लेखक ने प्रस्तुत नियम में इस पर सप्रमाण विचार किया है।
पाशा है विद्वान उस पर गहराई से विचार करेंगे। प्रोर निर्वाणमि पाबा के सम्बन्ध में ऐतिहासिक ऐसे ठोस प्रमाण प्रस्तुत करेंगे, जिनसे पावा-सम्बन्धि विवाद समाप्त हो जाय और वस्तुस्थिति पर यथार्थ प्रकाश पर सके।
सिवनेत्र-पावापुर अत्यन्त पवित्र सिरक्षेत्र है। देवतारक्तचन्दनकालागुरुसुरभिगोशीय: ॥१८॥ यहाँ पर अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर ने निर्वाण अग्नीन्द्राग्जिनदेहं मकुटानलसुरभिपवर मास्पैः। प्राप्त किया था। प्राचार्य यतिवृषभ ने "तिलोयपण्णसी' पम्पयं गणधरानपि गता दिवंबनभवने ॥१९॥ में इस सम्बन्ध में लिखा है कि :
मर्थात् वह मुनिराज महावीर कमल वन से भरे हुए 'कातियकिण्हे बोद्दसिपच्चसे साविणामणक्खते। और नासा वृक्षों से सुशोभित पात्रा नगर के उद्यान में पावाए णयरीए एपको वीरेसरो सितो।।४।१२०८॥ कायोत्सर्ग ध्यान में प्रारूद हो गये । उन्होंने कार्तिक कृष्ण
भगवान वीरेश्वर (महावीर) कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के अन्त मे स्वाति नक्षत्र में सम्पूर्ण प्रवशिष्ट कर्म कलंक के दिन प्रत्यूषकाल मे स्वाति नक्षत्र के रहते पावापुर से का नाश करके अक्षय, अजय पौर अमर सौरव्य प्राप्त अकेले ही सिद्ध हुए।
किया । देवतानों ने जैसे ही जाना कि भगवान का निर्वाण . प्राकृत 'निर्वाण भक्ति' में प्रथम गाथा मे निम्न पाठ हो गया, वे अविलम्ब वहाँ पर पाये और उन्होंने पारिमाया है
जात, रक्त चन्दन, काला गरु तथा अन्य सुगन्धित पदार्थ 'पावाए णिन्दो महावीरो' अर्थात् पावा में महावीर पोर धूप, माला एकत्रित किये। तब अग्निकुमार देवों के का निर्वाण हुआ।
इन्द्र ने अपने सुकुट से अग्नि प्रज्वलित करके जिनेन्द्र प्रभु सस्कृत 'निर्वाण भक्ति' मे भगवान महावीर के की देह का सस्कार किया तब देवों ने गणधरों की पूजा निर्वाण के सम्बन्ध में विस्तृत सूचना उपलब्ध होती है की और अपने-अपने स्थान पर चले गये । जो इस भाति है :
___ इसी सस्कृत निर्वाण भक्ति मे इसी सम्बन्ध में एक 'पवनवाधिकाकुलविविध मखण्डमण्डिते रम्ये। श्लोक और भी दिया गया है :पावानगरोद्याने व्युत्सर्गेण स्थितः स मुनिः ॥१६॥ 'पावापुरस्य वहिरुन्तभूमिवेशे, कातिककृष्णस्यान्ते स्वातावृक्षो निहत्य कमरजः ।
पोत्पला कुलवता सरसां हि मध्ये। अवशेष सम्प्रापदम्पनरामरमायं सोख्यम् ॥१७॥
श्री वर्धमान जिनदेव इति प्रतीतो परिनितं जिनमहात्वा विबुधा दयाशु चागम्य ।
निर्वाण माप भगवान्प्रविधुतपाम्पा ॥२४॥