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अनेकान्त
पणि वाकरहिउ वाचल्लहि।"
१६ वर्ष २४, कि.४ रोय सरीर असुंदरु जायउ।
भज्ज समेउ विसंवल कायउ। कर चरणई थक्कइ णउ चल्लहि।
__ करहिउ वाउ तहय मण सल्लाहिं।। वणि वरिंदु अप्पाणउ णिदइ ।
वयणु सयं पह केरउ चिंतइ ।। पत्ता-ता गलिय काल पावसहि पुणु ।
वणि पिहिनासव प्रागमणु ॥ धणयत्तु सयं पह जुत्तु तहिं ।
___ वंदण भत्तिए गयउ पुणु ॥४॥ मुणि वंदिवि अप्पाणु हु गुंच्छिउ ।
वहि हरणु धणयत्ते पुंच्छिउ।। मुणिवरिंदु भासइ मुणि वणि वर ।
णरयउतारी विहि किज्जइ वर ।। तो तण रोउ सयलू खणि खिज्जइ ।
भणइ वणीस केम विहि किज्जइ। धवलिय वारसि भादवमासहि ।
बारह संवच्छर उववासहि ॥ जिणवर पडिमा पयण्हा विज्जइ ।
अह णिसि धम्म पहावण किज्जइ॥ वित्त सरिसु उज्जवणु विहिज्जइ।
दाणु चउव्विह संघ हो दिज्जइ॥
इय विहाण विहि सुणि धणयत्तें।
घरि आइ वि किण्णिय सुपयत्ते ।। गयउ रोउ सुंदरु तण जायउ ।
घरिणि सयं पहव वय फलु पायउ॥ धणयत्तु वि जिणवर वय पालिवि ।
गउ णिव्वाण हो कलिमलु खालिवि ।। जिणवर दंसण वयहं पहावें।
सग्गु-मोक्खु लब्भइ सुहभावें॥ अण्णु वि जोइय विहि पालेसइ ।
णरु तिय सो सुर लोटा गमेसइ ।। जिणवर दंसण मूल गुणायर । _ 'पोमणंदि' 'हरिभूसण' भायर ॥ सीस 'रिद कित्ति' भवतारण ।
'विज्जाणंदि' बंभ साहारण । पयडिय एह कहा जण मणहर ।
णंदउ ताम जाम रवि ससहर ।। घता-जे पडहि पडाविहि भव्वयण ।
णियमणि णिच्छउ भावहिं। ते बंभ साहारण वय फलेण।।
___ अमर लोय सु हु पावहिं ।। इति नरेन्द्र कीति शिष्य ब्रह्मसाधारण कृत मूल कथा भाग समाप्त: ॥३॥
राग-ख्याल
उस मारग मत जाय रे !
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मन मूरख पंथी, उस मारग मति जाय रे ।। कामिनि तन कांतार जहां है, कुच परवत दुखदाय रे ॥१॥ काम किरात वसै तिह थानक, सरवस लेत छिनाय रे । खाय खता कोचक से बैठे, अरु रावन से राय रे ॥२॥ और अनेक लुटे इस पड़े, चरने कोन बढ़ाय रे । वरजहों वरज्यो रह भाई, जानि दगा मति खाय रे ॥३॥ सुगुरु दयाल दया करि 'भूषर', सीख कहत समझाय रे। मागे जो भावं करि सोई, दोनी बात बताय रे ॥४॥
कविवर भूषरदास