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आचार्यधरसेन के चरण एवं सरस्वती की प्राचीनतम मूर्ति की खोज
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी के साहित्य शोध विभाग की ओर से राजस्थान का पाठ दिवसीय खोज यात्रा मे डा. कस्तूरचन्द जी कासलीवाल एवं पं० अनुपचन्द जी न्यायतीर्थ को जयपुर से पचास मील पश्चिम की ओर स्थित नारायणा ग्राम में संवत् ११०२ की सरस्वती की प्राचीनतम मूर्ति उपलब्ध हुई है। प्राचार्य धरसेन के चरणों पर जो लेख अकित है वह पूर्णतः स्पष्ट है। इसी तरह सरस्वती की संवत् ११०२ की मूर्ति के मस्तक पर तीर्थंकर की मूर्ति है जो श्वेत पाषाण की है।
इसी खोज यात्रा मे डा० साहब एवं श्री न्यायतीर्थ जी को बारह वीं १३ वी एवं १४ वी शताब्दी के और भी कितने हो लेख मिले है जिन पर शीघ्र ही डा० साहब द्वारा प्रकाश डाला जायेगा। सवत् ११३५ की भव्य मनोग्य एवं विशाल प्रतिमाए भी इस नगर के जैन मन्दिरों में विराजमान है। मूर्ति कला की दष्टि से भी ये मूर्तियां उत्कृष्ट कला कृतियां हैं ।
उभयविद्वानों ने अपने पाठ दिवसीय शोध भ्रमण मे नारायणा के अतिरिक्त साभर, उछियारा, अलीगढ, रामपुरा, सवाई माधोपुर एवं शेरपुर प्रादि स्थानो के शास्त्र भण्डारों के सात सौ से भी अधिक हस्तलिखित ग्रन्थों का विवरण तैयार किया है जिसमें संवत् १४६६ को एक पाण्डुलिपियों की उपलब्धि के अतिरिक्त कुछ ऐसी भी प्रतियां मिली हैं जिनके बारे में साहित्यिक जगत अभी तक अपरिचित था। ऐसी कृतियों में हेमराय पाडे की समयसार की हिन्दी गद्य टीका विशेषतः उल्लेखनीय है।
चिर प्रतीक्षित लक्षणावली का प्रथम भाम
प्रकाशित हो गया
जैन लक्षणावली (जैन पारिभाषिक शब्दकोष) यह कोश में दिये गए लाक्षणिक शब्दों को दिगम्बरश्वेताम्बरों के चार सो ग्रन्थों पर से सकलित किया गया है। उनमें एक-एक लक्षण को हिन्दी भी दे दी है। जिससे सर्वसाधारण को उनका परिज्ञान हो सके। इस कोष का सम्पादन सिद्धान्त शास्त्री प० बालचन्द जी ने किया है। उन्होंने प्रस्तावना मे १०२ ग्रन्थों और उनके कर्तामो का भी सक्षिप्त परिचय दे दिया है। जिससे यह ग्रन्थ उन जालनात्मक अध्ययन करने वाले विद्वानों, रिसर्च स्कालरों, प्रोफेसरों, लायब्रेरियों, पूस्तकालयों और स्वाध्याय प्रेमियों के लिए बहत उपयोगी भोर काम की चीज है। यह कोश ३२ पौण्ड के कागज पर छपा है। जल्दी से प्रार्डर देकर अपनी पस्तक बक करा लीजिये । कपड़े की पक्की जिल्द है। ग्रन्थ का मूल्य २५) रुपया है।
बीर सेवा मम्मिर, २१ हरियागंज,
बिल्ली