________________
मध्य प्रवेश का जैन पुरातत्व
में की गई स्पष्ट रूप से प्रतीत होती है।
(१६) मारङ्ग-जिला रायपुर में पारङ्ग में स्थिति दि० २० जन के प्रक में लिखा है कि विदिशा जिले भग्न जैन मन्दिर जिसे भाण्ड देवल कहा जाता है, मृमिज के ग्यारसपर ग्राम मे स्थित माला देवी मन्दिर प्रतिहार शैली के मध्यप्रदेश में विद्यमान भनेक उदाहरण है। स्थापत्य कला का सबसे परिपक्व दृष्टान्त है। इसमे गर्भ- अभी सागर विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग में गृह, अन्तराल मण्डप तथा अर्थ मण्डप है । गर्भ-गृह के अधिकारी विद्वान श्रीकृष्णदत्त जी वाजपेयी हैं जो पहले चारों ओर प्रदक्षिणा-पथ है। इसका शिखर पंचरथ है मथुरा म्यूजियम के क्यूरिटर थे जहा कंकाली टीले से तथा उसके चारो मोर पाठ अन्य लघु शिखर है । मण्डप प्राप्त जैन पुरातत्व से उन्हें बड़ा प्रेम रहा है। उन्होंने तथा गर्भ-गृह दोनो के बीच मे पचशाखाये है । गर्भ-गृह जैन पुरातत्व सम्बन्धी अनेकों लेख लिखे है अतः उनसे द्वार का ललाट (lintel) स्थानक जैन प्रतिमाओ से उत्तर और मध्य प्रदेश की जैन पुरातत्व सम्बन्धी एक अलकृत है । मण्डप द्वार के ललाट पर प्रदर्शित गरुडारुढा सचित्र ग्रन्थ तैयार करवा के प्रकाशित किया जाना यक्षी चक्रेश्वरी इसके जैन मन्दिर होने की सूचना देती आवश्यक है। है। यह मन्दिर पाशिक रूप से सरचनात्मक तथा प्राशिक मध्यप्रदेश के श्री नीरज जैन आदि कई बन्धुनों का रूप से शिला मे काटा हुआ है।
भी पुरातत्व से गहरा प्रेम और अच्छा अध्ययन है । (१०) उदयगिरि गुफायें-इन मे जैन मूर्तिया भी है। उनसे भी एक ग्रन्थ लिखवाया जाय, भगवान महावीर की
(११) भोजपुर-जन मन्दिर तथा गाँव से तीन २५वी जयन्ती की चर्चा काफी चल रही है पर इन ठोस मील दूर विद्यमान जैन तीर्थकर शान्तिनाथ की मति के कार्यों की प्रोर किसी का अभी तक ध्यान नही गया मैने लिए भी प्रसिद्ध है। शिव मन्दिर के पूर्व में जो जन भारत जैन महामण्डल के सुयोग्य कार्यकर्ता श्री ऋषभदास मन्दिर है वह भोज के समय का ही है ऐसा राज मन्दिर जी राका को अनेकों बार लिखा कि २५ सौवी जयन्ती के के शिलालेख से प्रतीत होता है। शान्तिनाथ की मूर्ति उपलक्ष में जो साहित्य प्रकाशनार्थ तैयार हो रहा है उसमे पाशापुरी नामक गाँव मे है।
एक ग्रन्थ 'जैन कला' के सम्बन्ध में भी अवश्य प्रकाशित (१२) ऊन-जैन मन्दिरो मे सबसे प्रसिद्ध चौबारा- हो। जैन मन्दिर, मूर्ति चित्रकला आदि के कला पूर्ण डेरा नाम का दूसरा मन्दिर है। इसको कला लगभग चित्रों का एक एलबम भी अवश्य प्रकाशित किया जाय । वैसी ही है जैसी इस नाम के पहले मन्दिर की है। सड़क वास्तव मे जैन कला बहुत उच्च स्तर की रही है। भारके पार और निकट ही दूसरा मन्दिर है जिसका नाम है तीय कला में उसका महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे पूर्वजों ग्वालेश्वर मन्दिर ।
__ ने लाखों करोड़ों रुपये उन कलानों के उन्ननयन में खर्च (१३) मुक्तागिरि-के मन्दिर-बैतूल जिले मे किया है। सर्वाधिक लोगों को आकर्षित करने का माध्यम मुक्तागिरि स्थान जैन सम्प्रदाय के लोगों के लिए मुख्य कला ही है। बालक से लेकर वृद्ध तक सभी सुन्दर है। यहाँ ५२ मन्दिर है जिनमे से अधिकाश आधुनिक मन्दिर, मूर्ति और चित्रों को देख कर आकर्षित होते हैं। जैन स्थापत्य-कला के नमूने है। एक मन्दिर चट्टान मे है जैन कला की भव्यता का दर्शन करके जनसाधारण और जो एक वन-घाटी मे चट्टानों पर बने हैं । यहाँ एक सुन्दर बड़े-बड़े विदेशी विद्वान जैनधर्म के प्रति प्राकर्षित हुए हैं। प्रपात ऊँचाई से गिरता है।
जैन पुरातत्व से जैनधर्म की प्रचीनता सिद्ध होने के (१४) मरवर-अनेक जैन मूर्तियाँ टूटी पड़ी है साथ-साथ जैन साहित्य का महत्व भी विद्वानों के समक्ष जिन पर चौदहर्वी शताब्दी के अनेक वर्ष खुदे हुए पड़े हैं। प्राया है । जैन इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण बातें जैन
(१५) प्रजयगढ़-सड़क के ठीक दूसरी ओर पुरातत्व से ही प्रकाश मे पा सकीं। अत: उसकी खोज तलाब के समीप ही जैन तीर्थंकर की तीन विशाल मूर्तियां सग्रह एवं प्रकाशन का कार्य जोरों से किया जाना प्रावहैं जो कला का अनुपम उदाहरण है।
श्यक है।