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वीरशासन-जयन्ती
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काल स० १८२७ है यह ग्रन्थ भी उक्त भंडार में अब ११ नेमिपुराण-० नेमिदत्त, पद्यानुवादकर्ता स्थित है । कवि की बनाई हुई अन्य अनेक रचनाएं अजमेर वखतावरमल रतनलाल, रचना समय १९०६, प्रस्तुत के शास्त्र भंडार में सुरक्षित हैं।
ग्रथ का मूल संस्कृत पद्यों में है। वह अभी तक प्रकाशित ८ धन्यकुमार चरित्र-इस ग्रन्थ का पद्यानुवाद भी नही हुआ है किन्तु इसका हिन्दी अनुवाद सूरत से खुशालचन्द्र काला ने किया है । कवि खंडेलवाल जाति में प्रकाशित हो चुका है। पद्यानुवाद अभी अप्रकाशित है, उत्पन्न हुआ था। यह ब्रह्मनेमिदत्त के संस्कृत धन्यकुमार प्रति नयामन्दिर धर्मपुरा की है । कविता साधारण है। चरित्र का पद्यानुवाद है। नया मन्दिर धर्मपुरा में अव- १२ श्रीपालचरित्र-के कर्ता पंडित अतिसुख है। स्थित है।
ग्रथ का रचनाकाल सं० १६१८ है। कविता साधारण महीपाल चरित्र-इस ग्रंथ के रचयिता रत्ननन्दि है। ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। के शिष्य चरित्रभूषण हैं। इस ग्रंथ के टीकाकार नथमल १३ सीताचरित-इसके रचयिता कवि रायचन्द्र है, विलाला है । ग्रंथ की रचना सं० १६१८ मे हुई है। ग्रन्थ का रचनाकाल सं० १७१३ है। कविता कहीं-कहीं रचना माधारण है।
चुभती सी है, उसमें प्रवाह है, परन्तु वह सामान्य दर्जे १० यशोधर चरित्र-यह भट्टारक देवेन्द्रकीति को की है। रचना है, इसके पद्यानुवादकर्ता भी वही खुशाल काला इसी तरह अन्य अनेक ग्रंथ ग्रन्थभडारों में पड़े हैं । है, जिनका ऊपर उल्लेख किया है। प्रथ का रचनाकाल कोई महानुभाव इन ग्रन्थों का प्रकाशन कर पुण्य का स०१७८१ है।
अर्जन करें।
वीरशासन-जयन्ती
परमानन्द शास्त्री
भारतीय इतिहास मे श्रावण कृष्णा प्रतिपदा एक नाथ रेउ के 'राजा भोज' नामक ग्रन्थ से निम्न वाक्य से अनि प्राचीन ऐतिहासिक तिथि है। इसी तिथि से भारत प्रकट है-'राजपूताना के उदयपुर राज्य में विक्रम संवत वर्ष मे नये वर्ष का प्रारम्भ हुआ करता था। नये वर्ष की का प्रारम्भ श्रावण कृष्ण एकम से माना जाता है । इसी खशिया मनाई जाती थीं और वर्ष भर के लिये शुभकाम- प्रकार मारवाड के सेठ-साहूकार भी वर्ष का प्रारम्भ इसी नाए की जाती थी। प्राचार्य यतिवृषभ की तिलोण दिन से मानते हैं। पणती और धवला जैसी प्राचीन टीकानों में-'वासस्स
___ इससे यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि उदयपुर पढममासे सावणणामम्मि बहुल पडिवाए तथा वासस्स
राज्य और मारवाड़ में पहले से वर्ष का प्रारम्भ श्रावण पढम मासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले। पाडिवद पुम्ब
कृष्णा प्रतिपदा से ही होता था। विक्रम संवत् को अपनाते दिवसे' जैसे वाक्यों द्वारा इस तिथि को वर्ष के प्रथम
हुए यहा के निवासियों ने अपनी वर्षारम्भ की तिथि को मास का प्रथम पक्ष और पहला दिन सूचित किया है। भी छोड दिया, और अनुरूप विक्रम संवत को भी परिदेश में सावनी-पाषाढी के विभाग रूप जो फसली साल वर्तित कर दिया। प्रचलित है वह भी उसी प्राचीन प्रथा का सूचक जान
युग का प्रारम्भ और सुषम-सुषमादि के विभाष रूप पड़ता है जिसकी संख्या आजकल गलत रूप में प्रचलित
कालचक्र का-उत्सपिणी अवसपिणी कालों का-प्रारम्भ हो रही है। कहीं-कही विक्रम संवत का प्रारम्भ भी श्रावण कृष्णा एकम से माना जाता है जैसा कि विश्वेश्वर १. राजा भोज पृ० ५४