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________________ हिन्दी-भाषा के कुछ अप्रकाशित ग्रन्थ पन्नालाल अग्रवाल दि. जैन शास्त्र भंडारों मे हिन्दी भाषा का विशाल पुरा दिल्ली के शास्त्रभडार की है। और प्रकाशन के साहित्य अभी तक अप्रकाशित पड़ा है अनेक गुच्छक ग्रंथों योग्य है। में अनेक सुन्दर रचनाएं प्रचुर परिमाण में मिलती है। २ वर्षमान पुराण-भ. सकलकीति, पद्यानुवादकर्ता उनके प्रकाशित होने पर हिन्दी साहित्य के इतिहास पर पं. बंजनाथजी माथुर है। रचना विक्रम की १६ वीं विशद प्रकाश पड़ेगा। जैन कवियों ने प्राकृत संस्कृत शताब्दी की है। मूल ग्रथ अभी तक अप्रकाशित है, और साहित्य के साथ अपभ्रश और हिन्दी भाषा मे जो अनूठी उसका पद्यानुवाद भी। इसका प्रकाशन शीघ्र होना रचनाएं लिखी हैं, वे बहुत ही महत्वपूर्ण है। अब से चाहिए। कोई ३०-४० वर्ष पहले पं. नाथू रामजी प्रेमी बम्बई और ३ उत्तर पुराण-मूलग्रथ, प्राचार्य गुणभद्र प्रणीत बाबू ज्ञानचन्द्रजी लाहौर ने अनेक ग्रथ प्रकाशित किये है। है। पद्यानुवादकर्ता १० खुशालचन्द है । ग्रन्थ मे कवि ने दिल्ली के शास्त्र भंडारो मे भी हिन्दी भाषा की गद्य- दोहा, सवैया, अंडिल, चौपाई आदि विविध छन्दो का पद्य अनेक रचनाएं अभी तक अप्रकाशित पड़ी है । समाज प्रयोग किया है। जिसे पढने से मन सन्तुष्ट होता है । का लक्ष्य पुराने साहित्य के प्रकाशन की ओर नहीं है। रचना सामान्य है । यह ग्रथ अनेक भण्डारों मे सगृहीत और न उसके समुद्धार की भावना ही है। यदि भावना है। परिचय वाली प्रति नयामन्दिर धर्मपुरा दिल्ली की होती तो भडारों की सभी सुन्दर रचनाएं कभी की है। खशालचन्द्र काला ने अनेक ग्रन्थो के पद्यानुवाद किये प्रकाशित हो गई होती। मेरा विचार बहुत अर्से से इन है। वे प्रायः सभी ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। इस ग्रंथ सभी प्रथों के प्रकाशन की भावना एवं प्रेरणा करने में का प्रकाशित होना आवश्यक है। लगा रहा है, पर मुझे उसमें कोई सफलता नहीं मिली। ४ शान्तिनाथ पुराण-मूल ग्रन्थ के रचयिता भ. माज इस छोटे से लेख द्वारा समाज से प्रकाशन की सकलकीति हैं । मूल ग्रन्थ हिन्दी अनुवाद के साथ कलकत्ता प्रेरणा करता हुमा प्रकाशन योग्य कुछ ग्रथों का परिचय से छप चुका है। पद्यानुवाद के कर्ता कवि सेवाराम है। प्रस्तुत कर रहा हूँ। प्राशा है, साहित्य प्रेमी जन इस ओर इनकी अन्य कई रचनाए हैं। चौबीस तीर्थकर पूजा अपना ध्यान देंगे। और जिनवाणी की महत्वपूर्ण सेवा इन्होंने स०१८२४ मे बनाई है। करेंगे। ५ हरिवंश पुराण-(पद्यानुवाद) इस प्रथ का १पाण्डव पुराण-मूल लेखक भट्टारक शुभचन्द्र है पद्यानुवाद कवि खुशाल ने सं० १७८० में किया था । यह मूल अथ हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित हो चुका यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। प्रस्तुत प्रति दि. जैन है। किन्तु इस का पद्यानुवाद पं० बुलाकीदास (बूलचन्द्र) नया मन्दिर धर्मपुरा की है। अग्रवालकृत है, अभी तक अप्रकाशित है और प्रकाशन ६ मुनिसुव्रतनाथ पुराण-इस ग्रन्थ का पद्यानुवाद की बाट जोह रहा है। पद्यानुवादकर्ता ने अपने सामान्य व्र. इन्द्रजोत द्वारा स. १६४५ मे सम्पन्न हुआ था। यह परिचयादि के साथ उसको प्रशस्ति लिखी है। जिससे प्रति भी उक्त भडार मे अवस्थित है। रचना सामान्य है। उसका रचनाकाल संवत १७५४ बतलाया गया है। पद्य ७ श्रेणिक चरित-के पद्यानुवादकर्ता भ० विजयविविध छन्दों में दिए हए है। प्रति नया मन्दिर धर्म- कीति है। जा अजमेर गद्दी के पट्टघर थे। इसका रचना
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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