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________________ भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य जीवनियां ऐसी दी गई हैं कि जिनको देवों, मनुष्यों और नायाधम्मकहानो मे राजकुमार मेघ को, जब कि वह बहुत नीच प्रात्मानों के हाथों अत्यन्त कठोर परिषह सहने पड़े ही अस्थि रमना हो रहा था, महावीर ने वैरागी जीनव के और घोर तपश्चरण करते हुए जिनने मृत्यु के अन्तिम प्रति उसकी श्रद्धा उसके पूर्वभव की ही कथा सुना कर क्षणों में अपनी आध्यात्मिक-समाधि को स्थिर रखा एव दृढ़ की थी। महावीर ने कहा था कि कैसे उसने हाथी के पुनर्भव में वर्तमान से उच्च स्थिति का जीवन प्राप्त किया पूर्वभव में एक शशक को अपना पैर उठाए रखकर शांति या बिताया। बहुत ही संभव है कि अनेक कथाएं मूलतः के साथ रक्षा की थी। धन्न सार्थवाह को उसके वास्तविक ही हों; क्योकि वे ऐतिहासिक वैरागियों का ही पुत्र के घातक के साथ ही कारागृह में बेड़ी से बांध दिया उल्लेख करती है परन्तु समय पा कर जिनका विवरण गया था और अपनी शारीरिक आवश्यकताओं के विचार जटिलता को प्राप्त हो गया होगा। कभी-कभी तो उनके से ही उस घातकी को अपने भोजन का प्राधा प्रश उसे नाम मात्र का ही कथा मे निर्देश है और टीकाकारों ने देना पड़ता था। इसी प्रकार भिक्ष को भोजन आदि उनके जीवन का प्रावश्यक विवरण बाद में अपनी ओर से केवल जीवन निर्वाह के, न कि जिह्वा स्वाद के लिए और बढ़ाया या जोड़ दिया है। गरीर पोषण या दृढ करने के लिए लेना चाहिए ताकि शिशपाल, द्वैपायन, पाराशर प्रादि के आकस्मिक संयम का पालन भली प्रकार किया जा मके । राजा उल्लेख के अतिरिक्त, सूयगडाग में आद्रक की कथा भी सेलग की जिसे भगवान अरिष्टनेमि के धर्म का बोध प्राप्त है। परन्तु उसके सम्बन्ध में नियुक्ति और टीकाग्रो मे हा था, मद्यपी होने के कारण धर्माचार की उपेक्षा करने बहुत कुछ मनोरंजक वर्णन है। सूत्र में यह बताया गया लगा था। परन्तु उसी के प्राज्ञानुवर्ती शिष्यो द्वारा फिर है कि पाक ने गोशाला, एक बौद्ध, एक वेदान्ती और से उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति हई। इस कथा मे भिक्षु को एक हस्ति-तापस को कैसे निरुत्तर किया था? प्रति- वैरागी जीवन के कर्तव्यो के पालन में सदा सजग रहने वादियो को निरुत्तर कर वह महावीर वो वंदन करने जब का अनुरोध किया गया है। किसी पूर्वभव मे धर्माचार मे जा रहा था तो एक हाथी बधन तोड़कर उसकी पोर । कपटाचरण करने के परिणाम स्वरूप मल्ली का जन्म स्त्री झपटा। परन्तु निकट पहुँचते ही उसने उसके सामने सपना । विवाह करने के इचटक नमस्कार करने को घुटने झुका दिये । राजा श्रेणिक जिसने कि जो पूर्वभव में भी उसके ही साथी थे, अपनी सुवर्ण यह सब दृश्य देखा था। आश्चर्य विभूत हो कर सोच मूर्ति मे भरे भोजन की दुर्गन्ध द्वारा अपनी प्रत्यक्ष दीखती रहा था कि उस हाथी ने साकलों के बंधन स्वतः कैसे अत्यन्त सुन्दर देहकी प्राभ्यन्तरिक घृण्यता को उनने उद्बोध तोड़ लिए ? माईक कुमार ने उसकी जिज्ञासा शांत कराया और उन्हे भी अपने साथ ससार-त्याग करने को करते हुए कहा, इससे तो यह अधिक आश्चर्यकारी बात कटिबद्ध किया एवम् सातो ही मोक्ष गए । राजा जियसत्तु है कि मनुष्य अपने सांसारिक बंधनों को कैसे तोड़ फेंकता को उसके मंत्री सुबुद्धि ने सद्धर्म मे श्रद्धा कराने के लिए है ? हम बहुधा पाव और महावीर के श्रमणों के बीच गदे पानी के बारम्बार निर्मलीकरण द्वारा स्वच्छ पेय पानी हुए विवाद अोर सैद्धान्तिक स्पष्टीकरण का विवरण बना कर यह प्रमाणित कर दिया कि पदार्थ मात्र परिउत्तराध्ययन जैसे शास्त्रों में पढ़ते हैं । परमार्थपेक्षी मनुष्य णमनशील है और इसके फल स्वरूप गजा जियमत्तु सद्धर्म और स्त्रियाँ जैसे कि शिवराज, सुदर्शन, शंख, सोमिल, में श्रद्धाशील हो गया। नगरजनों के लाभ के लिए निज जयन्ती प्रादि [भगवती सूत्र में] महावीर के पास अनेक धन खर्च से बनाई पुष्करणी एवम् उसके क्रीडा-स्थलो व वार जाते हैं और उनसे सैद्धांतिक प्रकाश प्राप्त करते है। सामग्रियों के प्रति प्रतीव भासक्ति के कारण ही नन्द ने कितनी ही कहानियों में जो कि स्पष्टतया उपदेश उसके मेडक रूप से अगला जन्म पाया। जब उधर महाहै, संयमों और व्यसनों के माचरण से होने वाले अच्छे वीर का विहार हुआ तो वह उनके दर्शनों को जाते-जाते और बुरे परिणाम दृष्टान्त द्वारा व्यक्त किए गए है। मार्ग में श्रेणिक राजा के अश्व के खुर तले कुचला जाकर
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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