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________________ गोम्मटसार को पंजिका टीका परमानन्द शास्त्री प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चकवर्ती द्वारा संकलित सार कर्मकाण्ड का जो अंश त्रुटित-सा है। मूल और गोम्मटसार नाम का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं । जिसे उन्होंने उत्तर प्रकृतियों के नामादि सम्बन्धित जो गद्यसूत्र छूटे गंगवंशीय राजा राचमल्ल द्वितीय के सेनापति एवं महा- हुए हैं । वे यथा स्थान दिए जा सकते हैं।' मात्य रणरंगमल्ल आदि अनेक विरुद सम्पन्न राजा गोम्मटसार एक सैद्धान्तिक ग्रंथ है, उसमें जीवस्थान चामुण्डराय के लिए बनाया था। यह प्रथ षड्खण्डागम गुणस्थान प्रादि का, और कर्म बन्ध आदि का सुन्दर मौर धवलादि सिद्धान्त ग्रंथों का सार लेकर बनाया गया विवेचन किया गया है। इस ग्रंथ पर अनेक टीका-टिप्पण है' इस ग्रंथ के दो विभाग है, जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड । लिखे गए है। प्राकृत टीका भी अपूर्ण रूप से अजमेर के इस समूचे ग्रंथ का नाम गोम्मटसार है। दोनों ग्रंथों की शास्त्र भंडार में उपलब्ध है। अभचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती गाथा संख्या दो इजार के लगभग है। इस ग्रथ की पुरानी की मन्द प्रबोधिका टीका है, एक टीका कनडी मे केशव ताडपत्रीय प्रतियां मूडबिद्री के सिद्धान्त वसिदि के शास्त्र वर्णी की है । उसका नाम जीवतत्त्व प्रदीपिका है, जिसका भण्डार में अवस्थित है। वर्तमान में प्रकाशित गोम्मटसार अनुवाद नेमिचन्द्र नाम के विद्वान ने संस्कृत में किया है। की गाथानों का उक्त प्राचीन प्रतियों से मिलान नहीं अभयचन्द्र की मन्द प्रबोधिका मे गोम्मटसार की 'पंजिका' किया गया है, इसलिए ग्रंथ के कुछ पाठ स्थल शकास्पद टीका का उल्लेख है। उसकी एक प्रति मेरे पास है। बने हुए हैं। प्रत एक बार मूडबिद्री की प्रतियों से जो सवत् १५६० की लिखी हुई है। इस पंजिका टीका गोम्मटसार की गाथानों का मिलान कराना आवश्यक के कर्ता गिरिकोति है। पंजिका की प्रति १८ पत्रात्मक है। उससे जहाँ ग्रंथ का मूल पाठ संशोधित होगा वहाँ है । प्रादि अन्त पत्र एक ओर लिखा हुआ है । एक पेज उसका संशोधित पाठ भी प्रामाणिक होगा। और गोम्मट में १६ पक्तियाँ है । और अक्षरों की संख्या ५५-५६ है १. श्रीमदप्रतिहतप्रभावस्याद्वादशासन गुहाभ्यन्तर ग्रंथा सख्या ५००० श्लोक प्रमाण बतलाई है । इस पंजिका निवासि प्रवादिमदांधसिंधुरसिंहायमान सिंहनंदि में गाथानों का आदि वाक्य सूचित किया है, पूरी गाथा मुनीन्द्राभिनंदित गंगवश ललाम राजसज्ञनेक गण. कही भी नहीं दी। कितनी ही गाथाओं को नामधेय श्रीमद्राचमल्लदेव महीवल्लभ महामात्य पद 'सुगम' लिखकर छोड़ दिया है। उनकी कोई पजिका विराजमान रणरगमल्लासहायपराक्रम गुणरत्नभूषण नही दी। ऐसी गाथाए बहुत कम है जिनका पंजिका में सम्यक्त्वरत्ननिलयादि विविध गुणनाम समासादित अच्छा विवेचन किया गया है। हां, पजिका में लिपि कीतिकान्त श्रीमच्चामुडराय भव्य पुण्डरीक द्रव्या- सम्बन्धि अशुद्धियाँ है, फिर भी ग्रन्थ महत्वपूर्ण है । यदि नुयोग प्रश्नानुरूपं महाकर्म प्रकृति प्राभत प्रथम इस ग्रंथ की कोई दूसरी प्रति उपलब्ध हो जाय तो इसके सिद्धान्त जीवस्थानास्य प्रथम खडार्थसग्रह गोम्मट- सशोधन करने मे सहायता मिल सकती है। संभवतः सार नाम धेय पच संग्रह शास्त्र प्रारंभमाण; समस्त २. देखो, अनेकान्त वर्ष ८ कि० सैद्धान्तिक चूडामणिः श्रीमन्नेमिचन्द्र सद्धान्त चक्रवर्ती ३. अथवा सम्मूर्छन गर्भोपपादानाश्रित्यजन्म भवतीतितद्गोम्मटसार प्रथमावयव भूत । (मद प्रबोधिका गोम्मट पंचिकाकारादीनामभिप्रायः, गो० जी० मन्दटीका उत्थानिका से) प्रबोधिका टीका गा०५३
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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