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माली रासो
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सिरियच-डालो फल घणा सिर पूणि माली खाइ। गहि वैराग कुवालडो खोदिसु चारित कूप । सुख लव-दुख-सागर-मरपो अंति कुमरण मराइ॥७ भाव रहंट व्रत बैलकर दयाकंघइ भुत जूप ॥१७ नारय-डाल भयावणी फल केवल दुख देइ । ,
समता कल विड़ ढोकियो प्रभय सु ऊगण देई । उपरा उपरी खंडि गइ खिणि विश्राम म होइ ।। ' अनुभव हाथि जुटूपड़ो, सुरति करे कर लेह ॥१९ इय चहुंगति फल भोगवइ, खात न भाजइ भूख । उपशम (लेज-नेज) लगाइयो वांधि क्षमा घटमाल । सुख सुपनइ परतरवरइ बहुडि चढचो भव-रूख
काढ़ि दया-जल निर्मली सोचिय काय कयार ॥२० जिम सु जुवारी जुवा बिना एक घडी न रहाइ । वीज रतन को जतन करि, करि दिढ़ संजम वाड़ि । जिम जिम हारइ पापि यों तिम तिम तहि फडि जाइ॥१० शील सदा रख बालडो चरत मयण मृग ताडि ।।२१ चहुंगति-कन्या कर ग्रह्यो लावो लगन लिखाइ ।
क्रोध दवागिनि वरजियो वरजियो मान तुषार । माली दुखको दोरड़ो जाणि कि भावरि लेइ ? ॥११ माया वेली मति चढो जिनि देप्रो लोभ टपार ॥२२ माली मधुकर लोभियो चहुंगति कुसुमह लोण । जिम सु अंकुरो वरधतो अंतर करइ न कोइ । विषय तणई वसि रुण-रुणई फिरि फिरि दु.खह खोण ॥१२ समय समय जीवमालिया धर्म महातर होई ॥२३ कर्म मृदगी मांदल्यो जहि छडि देसी बधाउ ।
सत्यरु शौच तिहां जडी मद्दउ जाणि कि पान । नाचण हारो बापुडो नहिं छदि देसी पांउ ॥१३
प्रज्जउ साख सुहावणी तप तरुवर परिमाण ।।२४ जो जिह कइ वसि बधियो सो तिहं करचो करेइ । त्यागसु चहु दिसि मोरियो पाकिचन तन मान । कमहं वसिडा जीवडो किमहि न दुःख सहेइ ।।१४ बंभ सुशीतल छांहडी ज्ञान कुसुम महकत ॥२५ जइ दुखी वोहह मालिया ! सुख की साध करेइ । धरम महातर होय थे वह विस्तार लहेय । तो सुणि एक कहाणरी जिम पुण पुण न मरेइ ॥१५ अविनाशी सुखकारणे मोख महाफल देय ॥२६ काया कयारो किन करइ बोज सुदर्शन बोइ ।
भणे जिणदास सुराषि ज्यों दरसण बीज संभाल । सोंचण कारण मालिया धर्म प्रकुरो होइ ।।१६
वछितफल जिह लागसी किसही भउ तवि काल ॥२७
सन् १६७१ की जनगणना के समय धर्मके खाना नं. १ म जैन लिखाकर सही आंकड़े इकट्ठा करने में सरकार की मदद करें। ,