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________________ ६६ पर्व २३ कि.२ अनेकान्त मदन को दरगाडा दृष्टिगोचर होती 'पू लोनून और इन्द्र माथुरन्वय पुष्कर गण के भट्टारक मलयकीति गुणभद्र की अकबर के शासनकाल में हजरत गदनशाह भी तिजारा माम्नाय में अग्रवालवंशी गर्गगोत्रीय साहतोला भार्या रानी माये। इनका भी मजार तिजारा के उत्तर में 'टपूकलां' पुत्र जिनदास वली शोभा, उसके पांच पुत्र थे। महादास, सड़क के दाहिनी पोर बना हुमा दृष्टिगोचर होता है। गेल्हा, नुगेराज, जुगराज और साधुसिंह । इनमें मन्तिम पाजी मदन की दरगाह के लिए बादशाह ने १५० बीघा पुत्र साधुसिंह के परिवारवालों ने (साधू लोनून और इन्दु जमीन प्रदान की थी। श्री ने अपने पढ़ने के लिए एवं ज्ञानावरणी कर्मक्षयार्थ जय- अकबर राजनीति का अच्छा विद्वान था, उसने अपनी मित्र हल का वर्धमानकाव्य लिखवाया था, जिसकी प्रति सल्तनत को बढ़ाने और उसकी स्थिरता के लिए हिन्दू जैन सिद्धान्त भवन पारा में विद्यमान है। राजानों से अच्छा सम्पर्क स्थापित किया था। राजपूतों अकबर के शासनकाल में रिवाड़ी निवासी हेमू (शेर- से भी स्नेह बढ़ाया, उन्हें अपने शासन में अच्छे अच्छे शाह सूरी का भतीजा) का अकबर द्वारा बध करा देने मोहदों पर नियुक्त किया। इन सबके सहयोग से प्रकार पर तिजारा में मलानमीर मुहम्मद को भेजा गया। का साम्राज्य एवं विभव जहां वृद्धिंगत हुमा, वहां उसने उसने हेमू की सारी सम्पत्ति पर अधिकार कर लिया, उदारता का भी प्राश्रय लिया । जैनधर्म पर उसकी मौर तिजारा तथा अलावलपुर के सभी पठानों को मरवा गहरी श्रद्धा पड़ी, उसका कारण जैन साधु हीर विजयजी दिया। अकबरने हसनखां मेवाती की भतीजी से शादी की, का सम्बन्ध था, वह उन्हें बहुत मानता था। उनके उपऔर मिर्जा हिन्दाल को पुन. तिजारा का शासक बनाया। देश से उसने अहिंसा पर यकीन किया, प्रौप अपने राज्य१ अथ सवत्सरेस्मिन श्रीनृपविक्रमादित्य राज्ये संव र काल में उसने कभी मांस ब शराब को प्रेरणा हित नहीं त्सर १६०० तव वर्षेफाल्गुनमासे कृष्णपक्षे द्वितीयायां तिथी दिया, जीवहिंसा को रोकने का प्रयत्न किया । पौर खास कर जैन पर्वो पर हिंसा न करने के फर्मान जारी किये। शुक्रवासरे श्री तिजारास्थान वास्तव्यो साहि पालमुराज्य यह सब कार्य उसने मानवता की रक्षा के लिए किया । प्रवर्तमाने श्रीकाष्ठासंघे माथुरान्वये पुष्करगणे भट्टारक इसी से लोक में उसकी महती प्रशंसा हुई। उसके बाद श्रीमलयकीर्तिदेवाः तत्प? भट्टारक श्रीगुणभद्रदेवाः तदाम्नाये अग्रोतकान्वये गगंगोत्रे साहुतोल्हा भार्या रानी तस्य शाहजहां दिल्ली का बादशाह बना। इसने भी अपने पिता की नीति पर चलने का प्रयास किया। यह भी एक पुत्र: जिनदासः तस्य भार्या शोभा, तत्पुत्राः पञ्च । प्रथम कलाप्रिय शासक था। इसके शासनकाल में खलीलउल्ला पुत्र साधुः महादास, द्वितीयपुत्रः साधुगेल्हा, तृतीयपुत्र: खां को तिजारा का हाकिम बनाया गया । इसने गदनशाह साधु नुगराजः, चतुर्थ पुत्रः तेजगुः, तस्य भार्या लाडो, जिनदास द्वितीयपुत्र: गेल्हा तस्य भार्या खीमाही । तस्य ___ की खानगाह का निर्माण कराया। शाहजहां ने सं० १६८५ पुत्रः दोमानु, तस्य भार्या भागो, तस्य पुत्रः नगराजः । से १७१५ मक राज्य किया था। तस्य भार्या घणपालही, पुत्राः चत्वारः प्रथमपुत्रो जीबन्दुः शाहजहां के बाद राज्य का शासनभार जहांगीर को तस्य भार्या भीख्यो द्वितीय पूत्रः प्रमियपालः। ततीयपुत्रः प्राप्त हुपा । इसने भी अपने पिता की धार्मिक नीति का गजः चतुर्थो दरगहमलुः । जिणदासपुत्रः चतुर्थः जगराजः, अनुसरण किया, जो उसकी सहिष्णुता और उदारता पर तस्य भार्या धीनाही, तस्य तृतीय वच्छ: तस्य पार्या आधारित था। यह भी एक कलाप्रिय शासक था। इसके धोनाही तस्य पुत्रः वुच्छा तस्य भार्या वादिनी, द्वितीयपूत्रः राज्यकाल में जैन संस्कृति पर भनेक कार्य सम्पन्न हए । मसक तृतीय तोतू। जिनदास पंचमपूत्रः साधसिंह तस्य नये ग्रंथ भी बनाए गए । धार्मिक स्वतंत्रता भी रही। ["] भार्या ..... । दूतस्य भार्या लक्ष्मणही तस्य...। किन्तु औरंगजेब के शासन समय मैं सन् १७०७ में चतुर्थ भार्या कपूरी। एतेषां मध्ये साधुसोनून इन्द्रश्री तास चौधरी इकरामखां नामक खानजादा ने तिजारा के मुगल "शानावरणी कर्मक्षयार्थ मात्मपठनाथं च वर्षमानकाव्यं हाकिम के नक्कारा व निशान छीन लिए और उसे वहां -प्रशस्तिसग्रह, मारा, पृ०१७ से निकाल दिया। मौर सेना ने उसे पकड़ कर उसका वध PPIR.." मग शिर
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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