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________________ ५४, वर्ष २५ कि.. अनेकान्त व्यक्ति ऐतिहासिक भी हैं । जैसा कि ऊपर निर्दिष्ट किया ही हैं कि जो मूल मे पाए विषय-विशेष की ही व्याख्या जा चुका है, कुछ जीवनियां विशेष रूप से जैन हैं तो अन्य नहीं करती है कि जो मूल के साथ अनुयोग-द्वार मादि से जेनधर्म सापेक्षता रंगित भारतीय सामान्य कथा-जीवनियों नियुज्य हैं, अपितु मावश्यक विवरण देकर मूल पाठ के का संस्करण विशेष है विवरण को सम्पूरित भी करती है। दस प्रागमों पर भागमों में ही कुछ साक्षियां ऐसी मिल जाती हैं कि निज्जुत्तियाँ है। कुछ स्वतत्र निज्जुत्तियां जैसे कि पिण्ड, ये नमूने के कथानक किस प्रकार परम्परागत स्मरण रखे मोध प्रौर माराधना भी है। पहली दो तो दशवकालिक गये थे। अब तो ये सभी कथानक प्रायः गद्य मे ही प्राप्त भौर मावश्यक निज्जुत्तियों की सम्पूरक प्रतीत होती हैं, हैं, परन्तु उनके बीच-बीच में नामो की शृखला पद्य परन्तु अन्तिम का परिचय तो एक उल्लेख" मात्र गाथामो मे दे दी गई हैं। फिर उवासगदसामो म भी कुछ से ही मिलता है । मोर एसा सभव लगता है । गाथाए ऐसी मिलती है कि जिनसे उन गुरुमो को कि कि उसको भगवती माराधना, मरणसमाही" आदि जिन्ह व कहानियां समय पर व्योरेवार सुनानी पड़ती थी, शास्त्रो मे मभिनिविष्ट कर लिया गया होगा। व्याउन्हे स्मरण रखना सहल ही रहे। नायाधम्मकहामा जस च्यान-विशेष की परम्परागत परिस्थितियो का एक से पायमो की टीकामो में ऐसी सारगभित गाथाए दा गई माधक बार उब्लख निज्जुक्तियो में दिया गया है। जैसे है कि जनम कथानको का सक्षप भी किया हुमा हे मार कि उस भाद्रंक जिसका सुयगडाग मे मध्याय है] का उनका उद्देश्य या उपनय भी कह दिया गया है। यह कि जिसका गासाल प्रादि से वाद-विवाद हुमा था जैसा कहना कठिन है कि ये गाथाएँ शास्त्रों के वतमान पाठा कि ऊपर उल्लख किया गया है, व्योरा नियुक्ति ही से के बाद के सक्षप है या कि मूल पाठो मे ही एसी गाथाए प्राप्त होता है। इन निर्यक्तियो मे कई महत्व के सदर्भ पहले से थी। पहला विकल्प यद्यपि प्रविचाय ता नहा मोर उल्लेख है कि जिसके कारण बाद की चूणियो, ही है, फिर भी दूसरे विकल्प का सामान्य नियम रूप स भाष्यो और टीकामों में स्पष्ट और पूर्ण व्याख्या करने के स्वीकार करने की मार ही मरा झुकाव है। समराइच्च- लिए लम्बे-लम्बे कथानक देना भावश्यक हो गया था। कहा का सम्पूर्ण कथानक हरिभद्र द्वारा उन कुछ गाथाम्रो उनके कुछ उदाहरण यहाँ देना उचित होगा । उत्तराध्ययन के आधार पर ही रचा गया था कि जो हम माज भा निर्यक्ति मे धनमित्र, हस्तिमित्र, स्वप्नभद्र प्रादि का मागमों में प्राप्त है। ऐसी गाथाएँ कहानिया का मोखिक उल्लख भिन्न-भिन्न परिषह, जो कि २२ है, वीरता से परम्परा की यद्यपि पूर्व साक्षी देती है, परन्तु व स्वयम् भाग ११, सं. ४ मोर भाग १२ स०२;चारपेण्टियर ही उन लिखित रचनामों की प्राधारभूत है कि जो हम उत्तराध्ययन, उप्पासल, १६२२, इन्ट्रो. पृ. ४८-५२; पाज प्राप्य हैं। चतुरविजयजी: मनकान्त भाग ३, पृ. ६७३-६८४ । (मा) प्रागमोसर और मागमानुकूल स्तर का साहित्य २३ मूलाचार [माणिकचन्द्र दि० ज० ग्रन्थमाला स० १८, जैन साहित्य का अन्य स्तर जिसका हमे प्रादि कालीन बंबई स. १९७७ सस्क.] प्रक्ष्या. ५, श्लो. ८२ पृ. वर्णनात्मक साहित्य के सर्वेक्षण में विचार करना चाहिए, २३३। निज्जत्तियों का है जो कि कुछ-कुछ उन टीकामों जैसी २४ मरणसमाही की पन्त की गाथाएं अत्यन्त महत्वपूर्ण २२ नियुक्तियों के सम्बन्ध में निम्नलिखित ग्रन्थों का और मनोरजक हैं । इस प्रन्थ में न केवल भाव ही अध्ययन किया जाए। लायमनः दशवकालिकसूत्र अपितु गाथा तक प्राचीन माठ ग्रन्थों से ले लिए गए ए नियुक्ति, जैण्डी एमजी, ४६, १०५८१-६६३ । हैं-१. मरण-भित्ति, २. मरणविसोही, ३. मरणमौर उबरशिकठ ऊबर डी मावश्यक लिटरेचर, समाही, ४. संलेहणासूय, ५. भत्तपरिण्णा, ६. पाउरहैम्बर्ग १९३४; घाटगे : दी दशवकालिक, एण्ड पच्चक्खाणं, ७. महापच्चक्खाणं पोर . माराहणा सूमातांग-नियुक्ति, इण्डियन हिस्टारिकल पवारटी पडण्णा ।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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