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________________ भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य डा० ए. एन. उपाध्ये एम. ए., डी. लिट् [गत किरण १ से आगे] अब पइन्नयो [प्रकीर्णकों का विचार करें कि जिनमें अवस्था में ही उनकी मृत्यु हो गई और सर्वोच्च पद उसने से कुछ में पार्मिक व्यक्तियों एवं वैराग्य-वीरों की कथाओं प्राप्त कर लिया, तो देवों ने उस पर सुगंध जल की वर्षा के खम ही उल्लेख है"। पोयणपुर मे पुष्फचला नामक की। उस जल से भरा गंधवटी का तालाब पाज भी उस एक प्रार्या थी। उसके धर्मशिक्षा गुरू थे अन्नियाउत्त। स्थान पर है। [म. १६०, म.४३५-३६, संथा० ६५. नौका में गंगा नदी पार करते हुए वे नदी में गिर गये। ६६] । इलापुत्त भी संसार अनासक्ति का एक उत्कृष्ट और उनकी समाधिपूर्वक मृत्यु हुई और उनने सर्वोच्च पद उदाहरण है। [म०४८३] | कुणाला का राजा वेसमणप्राप्त किया। [संथा० ५६-५७] । कयदी के अभयघोष दास के रिट्ट नाम का एक मिथ्यात्वी मंत्री था। उसहसेण ने अपने पुत्र को राज-पाट दे दिया और श्रमण होकर नाम के विद्वान गुरू का एक पढ़ा-लिखा और गुणवान संयम आराधना करते एवं सामयिकादि ग्यारह अगों का सिंहसेण नाम का शिष्य था। शास्त्र-विवाद में पराजित पारगामी होकर उनने सारी पृथ्वी पर विहार किया। होकर बदला लेने की दुष्ट बुद्धि से इस मिथ्यात्वी मंत्री जब वे विहारान्त पाटवी-नगर को लौटे तो चंडवेग ने ग्दुि ने एक रात्रि में उसहसेण को अग्नि में भस्म कर उनके शरीर का घात किया। हाथ-पैर प्रादि अग काटे दिया । जब अग्नि चारों ओर से उन्हें जला रही थी, तो जाते हुए उनकी मृत्यु हो गई। मौर उनने सर्वोच्च पद उनने पूर्ण समाधि मरण कर मोक्ष लाभ किया। [संथा० प्राप्त किया । [संथा० ७६-७८] । उज्जयनी के अवन्ती ८१-८८] । कण्डरीय और पुण्डरीय" जो क्रमशः नीच सुकुमाल ने एक दिन सायकाल नलिनी विमान का वर्णन और उच्च गोत्र में जन्म लेने वाले थे, अपने एक दिन के सुना और तत्क्षण उस स्वर्ग का स्मरण उसे हो पाया ही दृढ निश्चय स्वरूप अणुत्तर-विमान में चले गये। एवम् वह प्रवजित हो गया। श्मशान के बाँसकुज के [म० ६३७] 1 मित्रों में रहते हुए भी, मरण समय शरीर एकान्त स्थान में जाकर उसने ध्यान लगा लिया। इस छोडने वाली जीव-प्रात्मा अकेली ही जाती है जैसे कि ध्यानस्थ मुनि के शरीर को तीन दिन-रात मांसभक्षी कान्ह की मृत्यु समय गई। कान्ह ने क्रोध को क्षमा से शृगाल नोचते, खाते और घसीटते रहे तो भी वह मुनि जीत लिया था। [म. ३७७, ४६६-९७]"। राजा भग्गि ध्यान से जरा भी विचलित नहीं हुमा। शैल जैसा निश्चल का पुत्र भिक्षु कत्तिय शरीर से गदा, परन्तु हृदय का रहकर उसने सब परिषह का सहन किया और इस समाघि महान् था। जब वह रोहिडय नगर में भिक्षा के लिए चर्या कर रहा था, कुंच ने उसे बल्लम फेंक कर पाहत १२ महत्व के नामों का विचार करते हुए, उन्हें यहाँ वर्ण कर दिया। उसका कष्ट सहते हुए उसने समाधि पूर्वक क्रम से लिया गया है। संदर्भ निर्देश प्रागमोदय समिति, बबई १९२७ के सस्करण के हैं। यहाँ म से प्राण त्याग दिया और उच्च पद प्राप्त किया। [संथा. भत्तपरिन्ना, म से मरणसमाही पोर संथा से संथारग ६७-६६, काम्ट्रज ने म० १६० मे इसका उल्लेख देखा . निर्देश किया गया है। इस संबंध में कुर्तवान कैम्पट्ज १३ तुलना करो नायाधम्मकहामो, २० भोर देखो ऊपर का ऊबेर डीए वाम स्टर्बीभास्टन हैण्डलण्डेन पाल्टनं पृ. १६। पाइन्ना डे 'जन-कनन'। १४ तुलना करो अन्तगडदसामो, ५वीं वर्ग, पैरा १
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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