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________________ ४८, वर्ष २३ कि०१ अनेकान्त रूपवती ने गुप्तचरों द्वारा उनका पता लगवाया, तब लिए तत्पर हो गया। महाराजा ने उसका समादर किया। सही हाल विदित हो गया कि पृथ्वीचंद की पत्नी नारा- इस तरह वृषभसेना ने पूर्वोपार्जित पुण्य फल से लोक यणदत्ता ने अपने पति को छुडवाने के वास्ते तेरे नाम से में यश प्राप्त किया और उसने अपने जीवन को सफल ये दानशालाएं स्थापित की थी। वृषभसेना ने राजा से कह बनाने के लिए शुभ कृत्यों द्वारा लोक का कल्याण करते कर पृथ्वीचन्द को छुडवा दिया । पृथ्वीचन्द ने विनयी वन हुए भविष्य में शास्वत उस अक्षय पद को प्राप्त करने का राजा उग्रसेन का प्रादर किया और उनकी आज्ञा मानने के श्रेय भी सम्पन्न किया। (पृ० ४५ का शेष) ६. सती सीता में वही प्रशस्तगुण (प्रात्मविश्वास) खुल गया । सती कमलथी और मीरावाई के पास भी वही था जिसके प्रभाव से रावण जैसे पराक्रमी का सर्वस्व विपहारी अमोघ मंत्र था जिससे विष शरवत हो गया और स्वाहा हो गया । सती द्रोपदी मे यही वह चिनगारी थी फुकारता हुआ भयंकर सर्प सुगन्धित सुमन हार बन गया। जिसने एक क्षण के लिए ज्वलन्त ज्वाला बन कर चीर १०. बडे-बड़े महत्वपूर्ण कार्य, जिन पर ससार खींचने वाले दुःशासन के दुरभिमान द्रुम (अभिमान रूप आश्चर्य करता है आत्मविश्वास के बिना नहीं हो सकते । विह वृक्ष) को दग्ध करके ही छोडा । सती मैना सुन्दरी में अतः हमें अपने प्रात्मविश्वास को सुदृढ करके ही मोक्षभी वही प्रात्मतेज था जिससे वज्रमयी फाटक फटाक से मार्ग को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। साहित्य-समोक्षा १ जैन साहित्य का वृहद इतिहास-भाग ५, लेखक टीका टिप्पण कितने लिखे गये है। इन सबकी भी जानअंबालाल शाह, सम्पादक दलसुख मालबणिया, प्रकाशक कारी सहज ही हो जाती है। इस दृष्टि से यह भाग भी पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध सस्थान, जैनाश्रम हिन्दू यूनि- अपने पूर्वभागो के समान ही उपयोगी है। वसिटी वागणसी-५ । साइज डिमाई पृ० सख्या ३२० इस ग्रंथ को प्रस्तावना मे 'प्राचीन भारत को विमानमूल्य पन्द्रह रुपया। विद्या नाम का डा० एस० के० भारद्वाज द्वारा लिखित प्रस्तुत ग्रन्थ जैन साहित्य के वृहद् इतिहास का ५वां एक महत्वपूर्ण लेख दिया गया है, जिससे स्पष्ट हो जाता भाग है । इसमे लाक्षणिक साहित्य (व्याकरण) का परि- है कि पूर्व काल मे भारत में विमान-विद्या थी और उसके चय करते हुए कोश, अलंकार, छन्द, नाट्य छन्द ज्योतिष सस्थापक विद्याघर कहलाते थे। विमान कई तरह के और शकुन साहित्य का भी परिचय कराया गया है। यह होते थे। उनके संचालन का सब भार बे वहन करते थे। सब परिचय दग प्रकरणों में किया गया है। लेखक ने इस लेखक ने अनेक, ग्रंथो, प्रमाणो के आधार पर विमानसम्बन्ध में अच्छा थम किया है। प्रत्येक विषय का परि- विद्या के सम्बन्ध में अच्छा प्रकाश डाला है। इससे ग्रथ चय जहाँ अपने में सक्षिात और खलाबद्ध है वहाँ वह की उपयोगिता बढ़ गई है। उस विषय को सामान्य जानकारी भी कराता है। इससे जैन साहित्यके सम्बन्ध में जो ग्रंथ प्रभी तक प्रकाश विद्वानो को यह स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि व्याकरण में आए है. वे बहत सावधानी से लिखे गये हैं। विद्वानो साहित्य पर अब तक कितने ग्रंथ रचे गये और उन पर और लायबेरियो को प्रथमगाकर अवश्य पढ़ना चाहिए। -परमानन्द शास्त्री
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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