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________________ बस जनपद का गजनैतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास २४ थे परन्तु योद्धा लोग कसा बटनदार कोट और लम्बे जुते १३वीं शती ई. में निर्मित हैं। पहनते थे। स्त्रियां साडी पहनती थीं, अपने वक्ष पर मूर्त कला के अवशेषो मे चमकीली पालिश वाले मगिया धारण करती थीं और सिर पर पल्ला ढंकती थीं। अशोक के पाषाण स्तम्भ प्राचीनतम है । जैनों के मायागअपने शरीर के विभिन्न प्रगो को वे विविध प्राभूषणो से पट्ट, प्रासनपट्ट और मूर्तियां बौद्धों के प्रार्यपट्ट, बोधिसत्व अलंकृत करती थी, शारीरिक सौष्ठव के प्रति सजग थी, एवं बुद्ध की मूर्तियों तथा भारहुत से प्राप्त प्रस्तगकन, श्रगार-प्रसाधनो की शौकीन थी और उनकी रुचि शिवलिग और शिव-पार्वती की मतियाँ, विष्णु और उसके परिष्कृत थी। जन-जीवन मामान्यत: प्रामोद-प्रमाद मय अवतारो की मूर्तियाँ, त्रिदेवो की मूर्तियां और कृष्ण की था। नगर सुनियोजित थे और उनमें व्यापारिक माल, लीलामो का प्रस्तरांकन इस प्रदेश में प्राप्त मतिकला के भोज्य पदार्थों एवं मनोरजन के साधनो की प्रचुरता थी। विविध उदाहरण प्रस्तुत करते है। विशेष रूप से कोमम और भीटा से लगभग १००० कौशाम्बी मे नगर प्राचीर की खुदाई के परिणाम ई० पूर्व मे १००० ई. के बीच निर्मित बहुत सी मृणमूनियाँ स्वरूप लगभग दूसरे सहस्राब्द ई० पू० के मध्य में पहले। मिनी हे जिनमें कुछ तो स्वतः पूर्ण मूर्तियां हैं और कुछ सहस्राब्द ई. के मध्य के बीच हुए नगर की किलेबन्दी के माचे द्वारा बनाये गये पट्ट है । जिस पर विविध प्राकृतियाँ ऋमिक विकास का अनुमान लगाया जा सकता है। अकित है। यह मृणमूर्तिया सामाजिक जीवन को सुन्दर कडा का किला और कालिजर का पहाडी किला गुप्त झांकी प्रस्तुत करती है। इनसे मिट्टी में मूर्ति ढालने की पश्चात युग के दुर्ग स्थापत्य के विशिष्ट उदाहरण है। कला के क्रमिक विकास का भी परिचय मिलता है कि कौशाम्बी में हुए उत्खनन से प्राचीन भारत में प्रासाद किस प्रकार प्रारम्भ मे मतियां हाथ से बनाई जाती थीं, स्थापत्य के विकास पर भी प्रकाश पड़ना है। कोसम फिर साँचे से बनाई जाने लगी और अन्ततः हस्तपोर भीटा में की गई खुदाई से निजी एव सार्वजनिक कौशल द्वारा स्वाभाविक गढन प्रदान की जाने लगी। भवनो तथा बाजार हाट क निर्माण की विधि पर भी ___ अब तक प्राप्त वस्तुओं मे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकाश पडा है। घोमिताराम के अवशेषो में प्रकाश में प्राभूपण ताबे, कांसे, मोने, शाम्ब मीपी, हाथी दात, शीशे, पाये स्तूप तथा भारहुन का स्तूर बोद्ध स्तूप स्थापत्य के मुल्यवान पापाणो पोर रत्लो के बनाये जाते थे परन्तु विशिष्ट उदाहरण है। कौशाम्बी में खुदाई के फलस्वरूप चाँदी के नही बनाए जाते थे। विभिन्न प्रकार के प्राभूघोमितागम का जो नक्शा प्रकाश में पाया है वह उक्त षणों का प्रयोग स्त्री-पुरुष दोनो ही करते थे। मनको विहार के हजार वर्षों गेहा क्रमिक विकास को प्रकट (गुरियो) का कितनी ही प्रकार से प्रयोग किया जाता करता है और यह बौद्ध विहागे का प्राचीनतम प्रत्यधिक था और वे शंख सीपी, शीशे, मूंगों कार्नेलियन, टोपाज, पूर्ण एव सक्षन अधुनाजात चित्र प्रस्तुत करता है। प्रगेट (सुलेमानी पत्थर), वड्यं (नीलम) पोर सोने के शलकत (चट्टान में काटकर बनाये गये) स्थापत्य के बन जाते तथा कभी.सीमातिविशिष्ट उदाहरणो में लगभग दूसरी शती ई० पू० मे उन्हें चित्रित भी किया जाता था। निर्मित पभोसा स्थित जैन निशिया, दूसरी शती ई० में बनी जो सिक्के इस प्रदेश में प्राप्त हुए हैं उनमें चादी व बान्धोगढ़ स्थित बौद्ध पावास-गुफाये और गुप्त काल में तांबे के पांच-मार्क मिक्के, बिना अभिलेख के ढले हए निमित परन्तु १०६० ई० मे अन्तिम रूप प्राप्त कालिजर सिक्के, नगर-निगम या श्रेणी के नाम से अंकित सिक्के स्थित नीलकण्ठ मन्दिर के नाम से विख्यान शिवालय को तथा गजा के नाम से अंकित सिक्कं सम्मिलित है। गिना जा सकता है। ईट चूने से बने मन्दिरो के विशिष्ट अशोक-पश्चात् व कनिष्क-पूर्व तथा कनिष्क-पश्चात् व उदाहरण गढवा का वैष्णव मन्दिर और बडा कोटरा में समुद्रगुप्त-पूर्व युग के अधिकाश राजामो का नाम मात्र एवं मऊ के निकट स्थित शेव मन्दिर है जो सभी १२वी- इन्हीं सिक्कों के माध्यम से ज्ञात हमा है।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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