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अनेकान्
मे रहा हो। उसके बाद नागभट्ट II शासक बना हो तथा उसे हटाकर गोविन्द धारावर्ष ने मालवा पर अपना अधि कार किया हो ।
१. एपिग्राफिया इण्डिका, भाग १, पृ० ३५१ २. तत्वप्रभावमहनीयतमस्य तस्य शिष्योऽवभवज्जगति
उद्योतनम्ररि द्वारा उल्लिखित उज्जयिनी के राजा प्रवन्ति की पहचान यशोवर्मन के उत्तराधिकारी प्रवन्तिवर्मन से भी की जा सकती है। प्राचीन ग्वालियर राज्य से प्राप्त रनोड अभिलेख से ज्ञात होता है कि अवन्तिवर्मन नाम का एक राजा हुमा है, जो कि धर्म का अनुयायी था तथा मत्तमयूरनाव (वुश्दर) का समकालीन था। डॉ प्रकाश ने विस्तृत एवं सूक्ष्म अध्ययन के आधार पर अवन्तिवर्मन का समय ७६२ ई० से ७६७ ई० के मध्य निश्चित किया है। तथा यशोवर्मन के पत्र ग्राम एवं वतवर्मन को एक माना है, जिसका ग्वालियर राज्य पर शासन था । अवन्तिवर्मन का पुत्र पुण्डुक था, सम्भवतः जिसे उद्योतनसूरि ने दृढ़वर्मन कहा है ।"
इस अवन्तिवर्मन से उद्योतन द्वारा उल्लिखित अवन्ति राजा की पहचान करना अधिक उपयुक्त है। क्योंकि इसका समय भी उद्योतन के समय से मिलता-जुलता है।
मत्तमयूरनाथः ।
निःशेष कल्मषमषीमपहृत्य येन सङ्क्रामितम्परमहो नृपतेरवन्तेः ।
- कार्पस् इन्सक्रिप्शनस् इण्डीकरुम, भाग ४, पृ० २१३, दलोक ४९
तथा उसका राज्य भी ग्वालियर स्टेट में था, जो सम्भव है उज्जयिनी तक फैला रहा हो ।
३. In any case, it is Patent that this saint lived in the latter half of the eight cen tury and his contemporary Avantivarman flourished at that time.
- प्रास्पेक्टस् ग्राफ इंडियन कलचर एण्ड सिवि लाइजेशन, पृष्ठ ११३-१५
Y. It appears that this king (Ama) is the same as Avantivarman, the rular of the Gwalior region, mentioned above. His real name was Avantivarman and surname Ama. वही, पृष्ठ ११६
५. वही, पृ० १९६
उक्त प्रश्नों के इन समाधानों से चौथा प्रश्न कि वत्मराज प्रतिहार प्रवन्ति का शासक था - यह मान्यता स्वयमेव अर्थहीन हो जाती है ! वत्सराज राजस्थान के विभिन्न स्थानों का शासक रहा तथा उसका प्रवन्तिजनपद से कोई सम्बन्ध नहीं था- इस विषय मे डॉ० दशरथ शर्मा एवं डॉ० हीरालाल जैन ने सतर्क प्रमाण प्रस्तुत किये है, जिनका डॉ० ए० एन० उपाध्ये ने निम्नलिखित शब्दो मे अनुमोदन किया है ।
I agree with Dr. Dasharatha Sharma and Dr. H. L. Jain that Vatsaraja need not be connected with Avanti the name of the rular of which is not obviously mentioned by Jinasena.
इस मान्यता को कुवलयमाला के एक प्रसंग से और बल मिलता है। उद्योतन ने वत्सराज की राजधानी जालोर मे रहकर कुवलयमालाकहा की रचना की है । वत्सराज उस समय वहाँ का प्रतापी राजा था। उद्योतन ने अनेक देशो के व्यापारियो के रूपरंग एवं स्वभाव का वर्णन करते हुए मालवा के व्यापारियों का वर्णन किया है कि शरीर से काले, ठिगने, क्रोधी, मानी एवं रौद्र स्वभाव वाले मालव 'भाउप भइणी तुम्हे' शादि शब्दों का उच्चारण कर रहे थे। यदि उस समय का वत्सराज का मालवा पर शासन होता तो उसके राज्य मे रहने वाला लेखक मालवो के सम्बन्ध में ऐसे शब्द लिखने का साहस न करता । इस वर्णन से तो यह स्पष्ट लगता है कि वत्सराज श्रौर मालव राज्य के बीच अच्छे सम्बन्ध नही थे, जो तात्कालिक राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बहुत स्वाभाविक था ।
न कालेज बीकानेर (राजस्थान)
६. वही, पृ० १२५ - २८५ ।
७. इण्ट्रोडक्शन टू कुवलयमालाकहा, डॉ० ए० एन० उपाध्ये १० १०७
८. तणु साम-मउह दे हे कोवणए माण-जीविणो- रोद्द | 'भाउय भइणी तुम्हे' भणिरे ग्रह मालवे दिट्ठ | कु. १५२.६