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________________ नलपुर का जैन शिलालेख १८१ ५६. श्रावक शिरोमणि, पडित श्रीहुल साहू थे । ६६. काश्यपगोत्री पायिक शिल्पी के पुत्र बामदेव ने यह ५७. माथुरवंशी सम्यग्दृष्टि सत्यनारायण थे । प्रशस्ति उत्तीर्ण की। ५८. भार्गववशी विद्वान् शम्भु साहू थे। ७०. माथुरवशी लोकोपकारी.........।मबत् १३३६ ५६. दयालु जौणपाल और जिन भक्त निहुणपाल थे। ६०. सात व्यसनो के त्यागी धर्मात्मा माधव और राशल -प्राभार प्रदर्शनसाहू थे । (१) श्लोक न० २१, २५, २६ और ४६ इन चार ६१ विद्वान् यशस्वी तेजू शाह थे। श्लाको के अनुवाद में मान्यवर पं० पन्नालाल जी साहि६२. शाह मालू के पुत्र छीहुल और विहुल साह थे। त्याचार्य सागर से सहयोग लिया गया है। उन्होंने यह भी ६३. पोरवाड वंश में अद्भुत साहू थे। सूचित किया है कि-"श्लोक नं. ५ और २० में गेह६४. ये मब जिनमंदिर बनवाने वाले एक ही गोठ के सेठ णाद्रि का अर्थ उदयाचल नहीं है, कवि सप्रदाय मे रोहण गिरि का अर्थ-'जिसमें मेघों की गर्जना से रत्न उत्पन्न माहूकार खूब वैभवशाली हों। होते है' लिया गया है। इस सबके लिए मैं उनका प्राभारी ६५. जब तक आकाश में चन्द्र सूर्य तारे है तब तक जिन मन्दिर सुशोभित रहे । ६६. केयगण में देवगुप्त स्वामी हए उनके शिष्य वीरचंद्र (२) पंडित दीपचन्द्र जी पाडया का तो इस कवि हुए। महान् कार्य मे प्राद्यत पूर्ण सहयोग रहा है अतः उनका क्या ६७. उन मे ज्ञान प्राप्त कर विद्वान् देवचन्द्र ने यह प्रशस्ति प्राभार स्वीकार करूं-जो कुछ इसमे 'सत्य शिवं सुदर' ___बनाई। है वह सब उन्ही का प्रमाद है। ६८ शरद-मोमा के पुत्र वास्तव्यगोत्री कायस्थ शेखर ने () अगर विशेषज्ञ विद्वानो को कोई गलती दष्टिवेदी को यह प्रशस्ति लिखी। गत हो तो अवश्य सूचित करे में उनका आभारी हाऊंगा। विशेष-अगर कोई सज्जन या सस्था इस कृति को अलग ट्रेवट रूप से छपाना चाहे तो छपा सकते है। हमारी अनुमति है। (सन् १६७१ की जनगणना के समयधर्मके। खाना नं. १० में जैन लिखाकर सही आँकड़े। इकट्ठा करने में सरकार की मदद करें। amta
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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