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विलासवईकहा एक पारचयात्मक अध्ययन
ने मल्लाहों द्वारा उन्हें प्रामंत्रित कर जहाज पर उचित सरण कर राजकुमार वहाँ पहुँचा । परन्तु विलासवती को स्थान दिया। उन दोनों ने प्राश्रमवासियों से विदा प्राप्त न पाकर मूच्छित हो गया। (२४-२५) मूर्छा दूर होने की। (१०-११) विदा होते समय विलासवती ने पाश्रम पर वह अजगर के पास इस हेतु गया कि उसे भी निगल निवासियों से वियुक्त होने के दुख को बहुत अनुभव ले और अजगर के उदर में वह विलासवती से मिल सके। किया। (१२) एक दिन पूर्व प्रातःकाल मे सार्थवाह पुत्र अजगर अपराधी की तरह कांप गया। राजकूमार ने (सम्भवतः सानुदेव स्वयं) ने धक्का देकर सनत्कुमार को क्रोधपूर्वक उसके सिर पर यष्टिका प्रहार किया। वह समुद्र में गिरा दिया। एक काष्ठफलक के सहारे तैरता प्राघात से उलटा हुआ तो कम्बल उसके उदर से बाहर हुआ वह पांच दिन में मलय पहुँच गया । वह विलासवती पा गया । (२६) उसने कम्बल अपने वक्षस्थल पर रख के प्रति विषयासक्त था और विलासवती के शुद्ध चरित्र और अर्जुनवृक्ष की शाखा मे फन्दा लगाकर मरना चाहा। से अनभिज्ञ था। विलासवती मेरे वियोग मे जीवित नही (श्लोक पृ० ३३६.१५-३५८.१३)। राजकुमार मरा रहेगी, इसलिए सनत्कुमार एक नीम के वृक्ष में फन्दा नहीं, केवल एक निद्रा सी आ गई। स्वप्न मे एक ऋषि डाल कर एकात में फासी लगा कर मरना चाहता था। ने पुण्य करने का उपदेश दिया। (२७-२९) जिससे कि (१४) उसी समय एक हंस पक्षी दृष्टिगत हुआ। उसने वह अगले जन्म मे विलासवती को प्राप्त कर सके । उसे विलासवती के पुनर्मिलन की भविष्यवाणी कर मरने से मलय पर्वत श्रृंखला में स्थित मनोरथपूर्ण गिरि शिखर
रोका। (इस वर्णन प्रसंग मे हंस पक्षी का अति सुन्दर पर जाने को और शिखर से गिरकर मर जाने को कहा। वर्णन किया गया है) । (१५.१८) [श्लोक पृ० ३५०.१६ क्योकि इस प्रकार की मृत्यु निश्चित ही अगले जन्म में
-३५४.१२] । इन्ही विचारो मे व्यस्त सनत्कुमार अभीष्ट फलदायक होती है। वह ऋषि के द्वारा सकेतित समुद्रतट के समीप पहुँचे । उसने देखा कि एक काष्ठ- दिशा को प्रस्थान कर गया। (३०-३१) [श्लोक १० फलक तैरता हुआ पा रहा है और विलासवती उस पर ३५८.१४-३६०.१०] । तैरती हुई दृष्टिगोचर हुई । विलासवती ने सनत्कुमार को षष्ठ सन्धि-तीसरे दिन वह वृक्षो और जंगली विगत घटना बताई कि सार्यवाह बाद में कितना पछताया पशुमो से परिपूर्ण मलय पर्वत पर पहुँच गया। शिशर से और स्वय समुद्र मे डबने का विचार किया। रात्रि को अग्रिम जन्म में अपनी प्रेमिका से मिल सक, ऐसा निदान जहाज मध्य भंवर मे फंस गया। भाग्य से मैं काष्टफलक करके वह पर्वत से कूद पड़ा, परन्तु मध्य में ही एक के सहारे जीवित रही । सत्य है "जो जाको खोदे कुना विद्याधर ने ग्रहीत कर उसे बचा लिया। विद्याधर ने वाका कूप तैयार ।” परन्तु सब कर्म की बलिहारी है, उससे सर्व वृत्तान्त पूछ।। (१-२) राजकुमार ने सर्व दूसरो को दोष देना व्यर्थ है। (१६-२१) बिलासवती वृत्तान्त विस्तार से कहा और जीवित रहने पर अपने बहुत प्यासी थी। सनत्कुमार उसे पाश्ववर्ती झील के को प्रभाग्यशाली माना। (३) विद्याधर ने ऐसे स्नह समीप परन्तु वह बहुत थका हुआ था अतः वह अधिक (मोह) को सब दुःखों का कारण बतलाया। (४) उसने चल न सका । तब वह अर्जुन वृक्ष के नीचे विश्राम कर कहा-दान, शील, तप प्रादि से ही ऐसे मनोरथ सफल पत्रपुट में पानी लेने गया तथा विलासवती को चमत्कृत हो सकते है । (५) उसने दृष्टान्तरूप में एक प्रार्थना कथा कम्बल मोढ़ा गया। [श्लोक ३५३.१३-३५६.१४] । सुनाई। [श्लोक ३६०.११-३,२.४१)। इस मलय. वह पानी और कुछ सन्तरे लेकर वापिस लोटा । सनत्कु- मण्डल प्रदेश मे एक सिंहा नाम की कुरूपा स्त्री रहती थी, मार ने इससे प्रकट होने एवं पानी पीने को कहा। (२२- वह अपने पति से बहुत प्रेम करती थी परन्तु वह उसे २३) उसने देखा कि वह वहां उपस्थित नही थी। एक नहीं चाहता था । पति उससे कभी न मिलने के इरादे से अजगर कम्बल सहित उसे निगल गया था। अजगर के इस शिखर से कूदा भोर मरा। प्रतः पर्वत शिखर, पैर के निशान रेत पर पड़े हुए थे। उन चिह्नों का अनु- मागामी भव में पति से पनः मिलने के लिए कदापी