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________________ इतिहास के परिप्रेक्ष्य में पवा जी (पावागिरि) डा० भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु', एम. ए., पी-एच. डी., शास्त्री दिनांक १४ अप्रैल से १८ अप्रेल १९७० ई० तक प्राचीन अभिलेखों में इस स्थान का उल्लेख 'पावकबन्देलखण्ड में पवा जी (जिला झांसी) नामक तीर्थ क्षेत्र गढ' नाम से मिलता है। प्रारम्भ में यह तोमर वशीय पर विशेष प्रायोजनों और समारोहों के साथ श्री बाहुबलि शासकों के प्राधीन रहा और १५वी शताब्दी के अन्त मे जिनेन्द्र पंच कल्याणक एवं गजरथ महोत्सव का प्रायोजन इस पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। किया गया है। यह स्थान सिद्ध क्षेत्र माना जाता है तथा सभी जैन पवा जी उ० प्र० मे झासी जिले की ललितपुर तह- सम्प्रदायो द्वारा इसकी उपासना की जाती है। इसकी मील में एक छोटा सा ग्राम है। यह ललितपुर और झासी प्राचीनता के सम्बन्ध मे कोई पुरातात्त्विक या अभिलेखीय समय में स्थित तालबेहट से उत्तर की ओर नो मील प्राचीन साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। तीसरा स्थान हैहै। यह स्थान ललितपुर से तीस मील तथा झांसी से ३. पावागिरि-निर्वाणकाण्ड की तेरहवी गाथा' मे मनीस मील दूर है। मध्य रेलवे के झांसी, तालबेहट, उल्लेख मिलता है कि पावागिरि नामक स्थान से सुवर्ण नई या ललितपुर में से किसी भी स्टेशन से यहाँ मोटर भद्र प्रादि चार मुनियो ने मुक्ति प्राप्त की। यह स्थान या अन्य बाहनो द्वारा पहुँचा जा सकता है। बासी चलना नदी के तट पर था। और कडेसरा से भी पवा पहुँचने के लिए साधन मिलते है। इसी सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि-'सस्कृत. जन जगत् मे 'पावा' नाम से प्रचलित चार स्थान निर्वाण-भक्ति' में न तो चलना नदी का नाम पाया है प्राप्त है। उनमें से पहला है और न पावागिरि का ही । उसमे केवल उल्लेख है 'नद्यापावापर-बिहार प्रदेश मे गुणावा से तेरह माल स्तटे जितरिपश्च सवर्णभद्रः। दूर स्थित यह स्थान चौबीसवें तीर्थकर भ. महावीर निर्वाण काण्ड की उक्त गाथा के प्रकाश में, अब भी स्वामी के निर्वाण स्थान के रूप में समादत है। यहाँ यह निर्णीत नहीं हो सका है कि-वस्तुत: चलना नदी तालाब के मध्य में एक विशाल जिनालय, जिसे 'जल कोन है ? और उसके तट पर अवस्थित पावागिरि कौन मन्दिर' कहते है, मे भ. महावीर, गौतम स्वामी एवं सा है ? इस सन्दर्भ में जो कुछ प्रयत्न हुए है, उनके सघर्मा स्वामी के चरण चिन्ह प्रतिष्टित हैं । दिगम्बर और अनुसार :श्वेताम्बर सभी जैन सम्प्रदाय इसे अत्यन्त श्रद्धा-भावना से (अ)-वर्तमान मध्य प्रदेश में इन्दौर और बडवानी पूजते हैं। दूसरा है के निकट मौजूद 'ऊन' नामक स्थान को भी 'पावागिरि' २. पावागढ़-पश्चिम रेलवे के बम्बई-दिल्ली मार्ग नाम से प्रसिद्ध किया गया। यद्यपि वहां बारही शताब्दी पर बडौदा से २३ मील प्रागे चापानेर स्टेशन है। वहाँ का जैन पुरातत्त्व उपलब्ध है, किन्तु किसी भी साक्ष्य से से एक लाइन पानी माइन्स तक जाती है, इस लाइन पर यह स्पष्ट नहीं है कि इस स्थान का नाम कभी 'पावा' चांपानेर रोड से बारह मील पर पावागढ़ स्टेशन है। या 'पावागिरि रहा है। जैन परम्परा में प्रचलित यह पावागढ़ क्षेत्र एक विशाल गिरि-दुर्ग के मध्य अवस्थित / गारन्दुग क मध्य मवास्थित (ऊन) तीसरा 'पावागिरि है। है। यह पर्वत-शिखर लनभग २५०० फीट ऊंचा है तथा दुर्ग के सात द्वार पार करने के पश्चात् तीर्थ-स्थल पर १. पावागिरि वर सिहरे सुवण्णभद्दाइ मुणिवरा चउरो। पहुँचते है। चलणा गई तडग्गे णिव्वाणगया णमो तेसि ।।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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