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नलपुर का जैन शिलालेख
श्री रतनलाल कटारिया
यह शिलालेख भीमपुर में पाया गया था इस वक्त राल मे श्री कस्तूरचन्द जी 'सुमन' जैन ने "भीमपुर का ग्वालियर म्युजियम मे है । इसमें कुल पक्तिया ४० और जैन अभिलेख" शीर्षक से इस सम्पूर्ण शिलालेख को कुल सस्कृत श्लोक ७० है जिनमे छन्दों का प्रयोग इस 'अनेकान्त' अप्रेल ७० के प्रक मे प्रकाशित करवा दिया प्रकार हुपा है :
किन्तु इसमे एक भी इलोक शुद्ध नही दिया गया है । वसततिलका १०, इन्द्रवशा १, स्वागता २ उप- कस्तूरचन्द जी सा० शिलालेख को शुद्ध पढ ही नहीं पाये जाति १२, रथोद्धता ३, अनुष्टुप् ३२, शार्दूल-विक्रीडित है। फिर भी उन्होने अपने उक्त लेख मे यह आकाक्षा की ४, मालिनी १, मंदाकाता २, शालिनी १, इन्द्रवज्रा २= है कि कोई विद्वान् इसका हिन्दी अनुवाद कर दे । लेकिन ७०।
महा अशुद्ध श्लोको का कोई विद्वान् क्या हिन्दी अनुवाद यह शिलालेख नलपुर (नरवर) का है, 'देखो इलोक करेगा । आपने इस शिलालेख का अगले अक में भाषा १४। इसका लेखन काल वि० स० १३१६ का है 'देखो शास्त्रीय अध्ययन प्रस्तुत करने की भी सूचना की है। श्लोक ४०'। यह नरवरगढ़, शिवपुरी (ग्वालियर-मध्य किन्तु जब एक भी श्लोक शुद्ध नही है जिससे कोई अर्थ प्रदेश) के पास है । "कादबिनी" दिसबर ६६ मे एक लेख ही नहीं बैठता ऐसी हालत में कोई क्या हिन्दी अनुवाद कुन्दनलाल जी जैन, दिल्ली ने "बुदेला सरदार ऊदल की और क्या भाषा शास्त्रीय अध्ययन प्रस्तुत करेगा ? ससुराल नरवरगढ़" शीर्षक से प्रकाशित करवाया है। क्या कीचड से धोने पर कभी शुद्धता पा सकती है ? इस लेख में बताया है कि-स० १२६५ में गजरथ मैं उनके प्रयत्न और भावना की पालोचना नही करता प्रतिष्ठा भट्टारक विष्णुसेन के द्वारा नलपुर मे हुई। यहा किन्तु वस्तुस्थिति की समीक्षा कर रहा हूँ-उनकी अपेक्षा जैन पुरातत्व की विपुल सामग्री विखरी पड़ी है-अनेक तो पं० परमानन्द जी शास्त्री ने शिलालेख को काफी ध्वस्त जैन मन्दिर है।
शुद्ध पढ़ा है अगर वे अपनी प्रतिलिपि को ही अनेकान्त ___ "राजस्थान के जैनसत" पृ० १७२ मे लिखा है :- मे प्रकाशित करते तो श्रेष्ठ रहता किन्तु वह प्रतिलिपि "स. १८४१ में भट्टारक जगत्कीर्ति द्वारा नरवर में प्रति- हमारे पास होने से शायद वे ऐसा नही कर सके। ष्ठा महोत्सव हमा।" इन सब से जाना जाता है कि नल- शास्त्री जी की प्रतिलिपि को ही मलाधार से परिपूर सैकड़ों वर्षों से बराबर जैन संस्कृति का एक भव्य शुद्ध कर मय हिन्दी अनुवाद के हम प्रागे प्रस्तुत कर रहे क्षेत्र रहा है। नलपुर को नलगिरि, नलपुरगिरि भी कहीं- है। जिससे विज्ञ पाठक कस्तूरचन्द जी सा० के प्रस्तुत कही लिखा गया है नलपुरगिरि का ही अपभ्रंश नरवर- किये पाठ को और इस पाठ को परस्पर मिलान कर गढ़ है।
शुद्धता की परीक्षा कर सकेंगे। श्री पं० परमानन्द जी शास्त्री ने इस शिलालेख की इलोको के छंद निर्णय मे भी कस्तूरचन्द जी सा० ने हूबहू छाप तथा उसको पढ़कर उतारी गई हस्तलिखित कुछ गलतियों की है जो इस प्रकार हैंप्रति दोनों ४-५ महीने पूर्व हमारे पास सम्पादनार्थ और श्लोक ५ इन्द्रवजा की बजाय इन्द्रवंशा होना चाहिए हिन्दी अनुवाद करने के लिए भिजवाई थी किन्तु समया- श्लोक ६ रथोद्धता की बजाय स्वागता होना चाहिए। भाव से हमारी भोर से इसमें विलंब हो गया। इसी अंत- श्लोक १७, १८, (१९), २७, २८, ३६, ४२ और ६५