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भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य
डा० ए. एन. उपाध्ये एम. ए. पी. एच. डी.
[गत किरण २ से प्रागे] कथात्मक रचनात्रों का सर्वेक्षण
वर्डस]' से ही उल्लेख किया गया है। कही-कही एक ही कितने ही भण्डारो मे ऐसे अनेक हस्तलिखित प्रथ दृष्टान्त की एक से अधिक कथाए दी गई है । उदाहरणार्थ हमे मिलते है जो कथानको के संग्रह है और उनके नाम चौथी गाथा में यह कहा गया है कि पूजा-प्रणिधान में भी हमे वृहटिप्पणिका,' जैनग्रन्थावली और जिनरत्न- प्रात्मा स्वर्ग-सुख प्राप्त करता है जैसे कि जिनदत्त, सूरकोग' मी मूचियो में मिलते है। मन्तिम मूची एकदम सेना, श्रीमाली और गरनारी ने प्राप्त किया था। प्रथम दिनाप्त और परिपूर्ण है और इसके मकलनकार है प्राचार्य की १७ गाथानो मे, जिनका अध्ययन ही मैने किया है, ह. द. वेलनकर। यह सूची बडे ही परिश्रम से तैयार मब कथाए-जिन पूजा और साधू-दान पर ही है। इन की गई है। इमे निघट राज [कैट लोगस कट लोगोरम् गाथानो की सम्कृत टीका में दष्टान्त कथाएं प्राकृत में दी कहना ही उपयुक्त होगा। जो सर्वेक्षण यहां प्रस्तुत किया गई है और गद्य-पद्य दोनो ही का मिश्र प्रयोग उनमें किया जा रहा है. वह प्रधानतया इमी निघण्ट राज पर ही गया है। प्राचार्य जिनवियजजी ने मुझे सूचना दी है कि वर्षमाधारित है जिसके कि अग्रिम फरमो का उपयोग संक- मानमूरि के शिष्य श्री जिनेश्वरमूरि ने ही ये गाथाएं और लमकार एवम् प्रकाशक दोनों ही के सौजन्य से, करने का उनकी कथा की रचना इस वर्तमान रूप मे की है हालाकि सुयोग मुझे प्राप्त हो गया था। हस्तप्रतियो के सूक्ष्म परी- यह भी असम्भव नही है कि उन्होने प्राचीन सामग्री भी क्षण बिना एक कथाकोश का दूसरे से विभेद करना दुरुह इसमे सम्मिलित कर दी हो।' कथाकार ने भागमांश और काम है। इसलिए मैने इस सर्वेक्षण मे उन्ही ग्रन्थो का
४. एक कथाकोश हरिभद्र का भी कहा जाता है। देखो, विचार किया है कि जो विभेद किये जा सकते थे और
जैन साहित्यनो इतिहास, पृ० १६८। परन्तु अभी जिनके विषय मे कुछ विशेष सूचना भी प्राप्त हो सकती
तक न तो कही यह उपलब्ध ही हुआ है और न इक
का पता ही लगा है। १. कथाकोश [कथानककोश या कथाकोश-प्रकरणम्]
"] ५. पेटर्सन [प्रनिवेदना 6, पृ. ४४] कहता है : 'माशा-हटिप्पणिका के अनुसार यह २३६ गाथाओं का एक
पल्ली में सं. १०६२ मे रचित एक लीलावती कया प्राकृत ग्रन्थ है। इसकी प्रारम्भिक गाथा ही मे लेखक
और डिण्डियानक ग्राम में एक कथानककोश है । देसाई ने घोषणा कर दी है कि वह कुछ ऐसे नायस, दृष्टान्त
के मतानुमार [जैन माहित्यनो इतिहास, पृ०२०८], बा प्रादर्श कथाएँ कहेगा कि जिनसे मुक्ति प्राप्त हो
उसने स. १०८२-१०६५ के बीच एक कथाकोश की सकती है। गाथाओं में कथानों का 'शब्दघोष [कैच
रचना की थी। वृहट्टिप्पणक मे स. ११०८ दिया है। १. जनसाहित्य सशोधक, भाग २ खन्ड २।
इसलिए इस कथाकोश को ११वी सदी के द्वितीयपार्ट २.जैन श्वेताम्बर कान्फस, बम्बई द्वारा स. १९६५ में का समय दिया जा सकता है। विण्टरनिटज [भासाइ. प्रकाशित ।
पृ. ५४३] ने ई० १०६२ का समय दिया है । ऐगा ३ भाण्डारकर मोरियंटल रिसर्च इस्टीटयूट, पूना द्वारा लगता है कि उसने संवत् को सन् भूल से मान बीघ्र ही प्रकाशित किया जा रहा है।
लिया है।