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________________ साहित्य-समीक्षा १.जन शोष और समीक्षा-डा. प्रेमसागर जैन विशेष जानकारी नहीं मिल सकी है। मलग्रथ संस्कृत के एम. ए. पी.एच. डी. बड़ौत, प्रकाशक ज्ञानचन्द बिन्दूका, २५२ पद्यों में समाप्त हुआ है। क्षुल्लक जी ने अनुवाद मंत्री श्री दि० प्रतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी, जयपुर। अच्छा किया है। इस प्रथ की प्रस्तावना के लेखक डा. पृ० २३६, मूल्य सजिल्द प्रति का १०) रुपया। कस्तूरचन्द जी कासलीवाल है इस तरह यह प्रथ बहुत प्रस्तुत पुस्तक मे १० निबन्ध दिये गये है। जो । उपयोगी बन गया है । इसके लिए क्षल्लक जी धन्यवाद विभिन्न समयों में लिखे गये है। उनके नाम इस प्रकार के पात्र है । उनको साहित्यिक लगन श्रेष्ठ है और मौजहैं-१. भगवान महावीर और उनके समकालीन साधक, मावाद जैन समाज की ग्रन्थ प्रकाशन योजना भी उपयोगी २. जैन समाधि और समाधिमरण, ३. जैन भक्ति काव्य, और अनुकरणीय है। स्वाध्यायप्रेमियों को इसे मगा कर ४. जैन अपभ्रश का हिन्दी के निर्गण भक्ति काव्य पर पढ़ना चाहिए। प्रभाव। ५. हिन्दी के आदिकाल में जैन भक्ति परक ३. जिन सहस्रनाम-प्रदीप - सम्पादक प्रकाशक कृतियाँ, ६. जैन परिप्रेक्ष्य में मध्ययुगीन हिन्दी काव्य । अशोक भाई, मत्री श्रमण संस्कृत प्रचारक समिति, देहली। ७. कविवर बनारसीदास की भक्ति साधना, ८. मध्य- इस पुस्तक मे दो सहस्रनामो का संकलन हिन्दी कालीन जैन हिन्दी कवियो की शिक्षा-दीक्षा, ६. मध्यका- अर्थ और मूल के साथ किया गया है। प० आशाधर जी लीन जैन हिन्दी कवियो की प्रेम साधना, १०. मध्यका- के सहस्रनाम का अर्थ भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित कालीन जैन हिन्दी काव्य मे शान्ता भक्ति । सहस्र नाम से दिया जान पड़ता है। जिनसेनाचार्य के इनका विषय नाम से स्पष्ट है। ये मब निबन्ध प्रायः सहस्र नाम का अर्थ सामान्य रूप में दिया गया है हा, पत्रों प्रादि में प्रकाशित हो चुके है । उनमे जिस-जिस विषय दोनो के मत्रो का उल्लेख अवश्य है, पुस्तक स्वाध्याय की चर्चा की गई है उस पर लेखक ने अच्छी तरह विचार प्रेमियो के लिए उपयोगी है । प्राशा है प्रेमीजन उसे मंगा किया है । लेख अच्छे और प्रभावक है। महावीर तीर्थ- कर अवश्य पढ़ेंगे। क्षेत्र कमेटी ने इन निबन्धों को पुस्तकाकार प्रकाशित कर ४. महावीर जयन्ती स्मारिका-इसके प्रधान सपासराहनीय कार्य किया है, इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र दक भवरलाल पोल्या का है और प्रकाशन राजस्थान जैन हैं। प्रकाशन सुन्दर है मंगाकर पढना चाहिए। सभा, जयपुर, मूल्य २) रुपया। २. आराधना समुच्चय-कर्ता रविचन्द्र मुनि, संपा. प्रस्तुत स्मारिका महावीर जयन्ती पर प्रकाशित होती दक और टीकाकार क्ष. सिद्धसागर जी, प्रकाशक दि० है। स्मारिका में अच्छे लेखो का चयन किया गया है। जैन समाज, मौजमाबाद (जयपुर, राजस्थान) मूल्य १) सभा के संचालक मोर सम्पादक मण्डल इसकी उपयोगिता रुपया। के लिए प्रयत्नशील है। आशा है भविष्य मे पत्रिका प्रस्तुत ग्रंथ का विषय उसके नाम से स्पष्ट है । ग्रंथ और भी समुन्नत हो सकेगी। इस उपयोगी प्रकाशन में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र और सम्यक्तप के लिए सम्पादक और प्रकाशक दोनों ही धन्यवाद इन चार आराधनामों के स्वरूप पर विचार करते हए के पात्र है। माराधना का उपाय और उसके फल का निर्देश किया है। ५. अणुव्रत (साधना विशेषांक)-सम्पादक रिषभमलग्रन्थ के कर्ता मुनि रविचन्द हैं। उनके सम्बन्ध में कोई दास रांका। प्रकाशक बालचन्द जी म. भा. अणुव्रत
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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