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________________ ग्वालियर के काष्ठासंधी कुछ भट्टारक यादि के लिये दिवाकर थे। बाह्य और माभ्यन्तर तप के पुष्कर गण के भट्टारक गुणकीति की प्राम्नाय में साहू मर माकर थे। बुध जनों में शास्त्र अर्थ के चिन्तामणि थे। देव की पुत्री देवसिरी ने पंचास्तिकाय टीका की प्रति दीक्षा परीक्षा में निपुण, प्रभावयुक्त, मदादि से रहित, लिखवाई थी। माथुरान्वय के ललामभूत, राजामों के द्वारा मान्य प्राचार्य सं०१४६६ में माघ सुदी ६ रविवार के दिन राजथे। तपश्चरण से उनका शरीर क्षीण हो गया था। कुमारसिंह की प्रेरणा से गुणकीर्ति ने एक धातु की मूर्ति रावान्त के वेदी, पापरहित, विद्वानों के प्रिय, माया मान की प्रतिष्ठा कराई थी। मादि पर्वतों के लिए वज, हेयोपादेय के विचार में अग्रणी, सं०१४७३ में भ० गुणकीर्ति द्वारा एक मूर्ति की काम रूप हस्तनियों के लिए कंठीरव (सिंह) थे। स्यावाद प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। इनका समय सं० १४६० से १५१० के द्वारा वादियों के विजेता, रत्नत्रय के धारक, माथुर- तक है। राजा डूगरसिंह के राज्य काल में जैन मूर्तियों संघ रूप पुष्कर के लिये शशी थे। दम्भादि से रहित, के उत्खनन का जो महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुआ उस सब वस्तु तत्त्व के विचारक और जगतजन के कल्याणकर्ता थे। का श्रेय भ० गुण कीर्ति को ही है। इनके द्वारा अनेक सं० १४६० में वैशाख सुदि १३ के दिन खडेलवाल वंशी मूर्तियों की प्रतिष्ठा और निर्माण कार्य हुआ है। इन्होंने पंडित गणपति के पुत्र पंडित खेमल ने पुष्पदन्त के उत्तर. क्या-क्या अथ रचना की यह कुछ ज्ञात नहीं हो सका। पुराण की एक प्रति भ० पद्मनन्दि के आदेश से भ० गुण- यश:कोति-भ० गुणकीति के लघु भ्राता और शिष्य कीति को प्रदान की थी। थे । प्राकृत संस्कृत और अपभ्रंश भाषा के विद्वान, कवि वीरमदेव के राज्य मे भ० गुणकीति के आदेश से और सुलेखक थे। जैसा कि पार्श्वपुराण के निम्न पद्य से पद्मनाम कायस्थ ने यशोधर चरित्र की रचना की थी। स्पष्ट है :सं० १४६८ में प्राषाढ वदि २ शुक्रवार के दिन ग्वालियर "सु तासु पट्टिभायरो विप्रायमत्थ-सायरो, मे उक्त वीरमदेव के राज्य काल मे काष्ठासघ माथुरान्वय रिसि सु गच्छणायको जयत्तसिक्खदायको, श्रीमाथुरान कललामभूतो, भूनाथमान्यो गुण जसक्खु कित्ति सुन्दरो प्रकंपुणायमंदिरो॥ पास पुराण प्रश. कीति सूरिः । तहो बंधउ जसमुणि सीसु जाउ, -समयसार लिपि प्र० कारजाभंडार पायरिय पणासिय दोसु राउ। (ख) श्रीमान् तस्य सहस्रकीर्तियतिनः पट्टे विकृ -हरिवंश पुराण ष्टेऽभवत् । भव्य कमल संबोह पयंगो, क्षीणांगो गुणकीतिसाघरनघां विद्वज्जनानां तह पुण सु-तव-ताव तबियंगो। प्रियः । णिच्चोग्भासि य पवयण अंगो, मायामानमदादिभूघरपवी रावान्तवेदी गणी, ३. संवत्सरेस्मिन् विक्रमादित्य गताब्द १४६८ वर्षे प्राषाढ़ हेयादेय विचारचारुधिषण: कामेभकंठीरवः ३२ वदि २ शुक्रदिने श्री गोपाचले राजा वीरमदेव विजय यत्तेजोगुणबद्धबुद्धि मनसो मूलाभवन्तो नुताः। राज्य प्रवर्तमान श्री काष्ठासघे माथुरान्वये पुष्कर१. संवत् १४६० वैशाख सुदी १३ खंडिल्लवाल वंशे गणे प्राचार्य श्री भावसेनदेवाः तत्पट्टे श्री सहस्रकीति पंडित गणपति पुत्र पं० खेमलेन एषा पुस्तिका भट्टा- देवाः तत्पट्टे भट्टारक श्री गुणकीतिदेवास्तेषामाम्नाये रक पद्मनन्दिदेवादेशेन गुणकीतिये प्रदत्तं ।। संघइ महाराज वधू साधू मारदेव पुत्री देवसिरि तया -उत्तरपुराण प्रशस्ति भामेरभंडार इदं पचास्तिकाय सार अथ लिखापितम । २. उपदेशेन ग्रंथोऽयं गुणकीर्ति महामुनेः । -कारंजाभंडार कायस्थ पपनाभेन रचितं पूर्व सूत्रतः ॥ १.सं. १४८६ वर्षे प्राषाढ़ वदि गुरुदिने गोपाचल -यशोधर रचित प्रश. दुर्गे राजा इंगरसी (सि)ह राज्य प्रवर्तमाने श्री
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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